शोकसभा की रिहर्सल कर ले भाजपा भी
प्रकाश भटनागर
उनका नाम याद नहीं आ पा रहा । हास्य विधा के धनी कवि थे। तुकबंदी में माहिर। एक कवि सम्मेलन में बोले, अखबारों में खबरों के एक-दूसरे से सटे शीर्षक कभी-कभी भयंकर स्थिति बना देते हैं। एक खबर की हैडिंग है, राजीव गांधी ने पाकिस्तान से रिश्ते सुधारने की इच्छा जताई, और ठीक बगल के समाचार के ऊपर लिखा है, बेनजीर भुट्टो फिर गर्भवती हुईं। एक दैनिक अखबार में आज आस- पास लगी दो खबरों के शीर्षक को भी पढ़कर कसैलेपन से भरा व्यंग्य लिखने की इच्छा हो रही है।
एक खबर है, कांग्रेस विधायक का सुबह इस्तीफा, शाम को रूपाणी सरकार में मंत्री बने। दूसरी का शीर्षक है, महारानी बीमार, मंत्रियों ने शोकसभा की रिहर्सल की। पहली खबर गुजरात की है और दूसरी यूनाइटेड किंगडम की। लेकिन शीर्षक उन्हें आपस में जोड़ते हैं। कुंवरजी बावलिया के कांग्रेस से निकलते ही उन्हें मंत्री पद देना भाजपा की कमजोरी का प्रतीक है। पार्टी विद डिफरेंस के शोक गीत का द्योतक है।
यदि नरेंद्र मोदी और अमित शाह के राज्य में आपको किसी मौकापरस्त आयातित नेता को ऐसी तवज्जो देना पड़ रही है तो इसे आपकी दरिद्रता का प्रतीक ही कहा जा सकता है। इससे जाहिर है कि आपका कांग्रेस मुक्त भारत वाला नारा ताकत नहीं, इस पार्टी से डर का पर्यायवाची है। यदि कांग्रेस से गुरेज है तो कांग्रेसी से कैसा प्रेम! क्या मोदीजी ने जुमलों के साथ-साथ शुद्धिकरण की कोई त्वरित प्रकिया भी सीख ली है।
इधर, किसी ने आपकी विरोधी पार्टी छोड़ी, उधर वह तमाम दुगुर्णों से निजात पाकर आपकी पार्टी में पद एवं सम्मान का प्रतीक बन गया। यदि कमल की छवि वाला भगवा रंग का अंगोछा पहनने मात्र से कोई सुखराम, मुकुल रॉय, नरेश अग्रवाल और बावलिया आपके हिसाब से शुद्ध हो जाता है तो यकीन मानिए यह वैसा ही साबित होगा, जैसे पापियों के पाप धोने के नाम पर गंगा नदी खुद किसी सड़ांध मारते नाले में तब्दील होती जा रही है। बावलिया प्रकरण से साफ है कि आप अपनी लकीर बड़ी करके कांग्रेस का अस्तित्व मिटाने की क्षमता वाले नहीं हैं। आप वही पैरेसाइट हैं, जो किसी अन्य से मिला भोजन लेकर उसे खत्म करता है और खुद की ताकत बढ़ाता है।
ऐसा होने के बाद आप किस मुंह से किन्हीं अन्य दलों के लिए अवसरवादी गठबंधन जैसी बात कह पाने का साहस पता नहीं कहां से लाते हैं? सत्ता की भूख या इसे हवस कहना भी उचित होगा, में भाजपा ने पहले रंग बदले। लेकिन कश्मीर और अब गुजरात में तो वह केंचुली बदलने जैसा आचरण करने पर आमादा हो गई है। अमित शाह मोदी विरोधी गठबंधन को बाढ़ से बचने के लिए एक साथ आने वाले जीव-जंतुओं की संज्ञा देते हैं। तो शाह जरा यह भी बता दें कि रंग तथा केंचुली बदलने जैसे आचरण किसी जीव के पेटेंट हैं या फिर भाजपा के!यूनाइटेड किंगडम में एक रानी मृत्यु शैया पर है। अपनी उम्र के चलते। भारत में भाजपा की मूल भावना भी अंतिम सांसें गिन रही है।
महबूब मुफ्ती, मुकुल रॉय, नरेश अग्रवाल और कुंवरजी बावलिया जैसे प्रसंगों के चलते। सात समुंदर पार अफसरों ने महारानी की शोक सभा की रिहर्सल शुरू कर दी है। भाजपाइयों को चाहिए कि वे भी पार्टी की स्थापना के समय के सिद्धांतों के लिए मर्सिया लिखने का अभ्यास शुरू कर दें। क्योंकि वह समय दूर नहीं दिखता, जब भाजपा और शेष राजनीतिक दलों के बीच का विराट अंतर (चाल-चरित्र के लिहाज से) पूरी तरह समाप्त हो जाएगा। भारत को कांग्रेस से मुक्त करने के प्रयास से समय मिले तो पार्टीजनों को चाहिए कि वे भाजपा को कांग्रेस सहित समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल, जनता दल यूनाइटेड और उन जैसी फितरत वाले अन्य दलों के वायरस से निजात दिलाने की चिंता कर लें। या फिर कम से कम शोकसभा की रिहर्सल कर ही ली जाए।
यह काम वायरस हटाने की तुलना में कुछ अधिक आरामदेह ही साबित होगा। आरंभ में जिस कवि की बात कही थी, उनकी फिर याद आ रही है। खबरों के अपूर्ण शीर्षक पर उन्होंने कहा था, घाघरा खतरे के निशान से ऊपर। वह नदी को लेकर समाचार के अधूरेपन पर तंज था और यहां जो लिखा है……। आगे मोदी- शाह समझदार हैं, इसलिए बाकी व्याख्या की जरूरत महसूस नहीं हो रही।