शिवराज के लिए तगड़ा झटका है,इस तरह राग से उपजे द्वेष ने दिखाया दिल्ली का रास्ता
मेनन की पिक्चर पिटने से सर्वाधिक खुश हैं पार्टी के साधारण कार्यकर्ता कीर्ति राणा
भोपाल,13 अप्रैल (इ खबरटुडे)।मध्यप्रदेश से अरविंद मेनन को इस तरह रुखसत किया जाएगा इसकी उम्मीद तो खुद मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान को भी नहीं थी। कभी जब चौहान भाजयुमो के राष्ट्रीय अध्यक्ष हुआ करते थे तब मेनन कार्यालय मंत्री होते थे। तब की जोड़़ी सदाबहार फिल्म की तरह मध्यप्रदेश में चल रही थी|
लेकिन मेनन की पिक्चर इस तरह पिटने से मालवा-विंध्य क्षेत्र में यदि सर्वाधिक खुश कोई व्यक्ति है तो वह है पार्टी का आम कार्यकर्ता जो ‘चाल, चरित्र और चेहरा’ ध्येय वाक्य की संगठन मंत्री की मनमानी के चलते धज्जियां उड़ते देख रहा था। कैडर बेस कही जाने वाली पार्टी से सहमति, विमर्श, बैठक के निर्णय वाली व्यवस्था भंग होकर व्यक्तिवाद हावी होते जाने के साथ ही जिस कांग्रेस पार्टी को नरेन्द्र मोदी, अमित शाह समाप्त करने का सपना पाले रहे हैं उसी कांग्रेस की तर्ज पर मध्यप्रदेश में भाजपा चल पड़ी थी।
कहने को मध्यप्रदेश में सरकार के मुखिया शिवराज और संगठन के मुखिया नंदकिशोर चौहान (नंदू भैया) माने जाते रहे हैं लेकिन सत्ता और संगठन को कठपुतली की तरह नचाने की डोर उन्हीं अरविंद मेनन के हाथ में रही जिनके नाज-नखरे कैलाश-रमेश की जोड़ी उठाती रही और बाद में मेनन शिवराज के साथ तो हो गए लेकिन सारी आकांक्षाओं की पूर्ति के लिए मेंदोला दयालु बने रहे।
व्यापमं घोटाले में उमा भारती का नाम उछालने की साजिश हो या अभी सुप्रीम कोर्ट में प्रस्तुत पेन ड्राइव में किसके नाम हैं, यह सब तो भविष्य में स्पष्ट होगा लेकिन हाल ही निगम मंडलंो में जिस तरह नियुक्ति में ‘मेनन के मन’ की चली वही सारा राग उनकी तुरत-फुरत दिल्ली रवानगी के द्वेष रूप में उभरा है।
संघ की हार्ड लाइन की अनदेखी, रायशुमारी की अनिवार्यता, बैठकों का सिलसिला यह तो एक तरह से भुला ही दिया गया था। बैठकें होती भी थीं तो आदेश सुनाने के लिए। अब जब ये सारी बातें सार्वजनिक हो रही हैं तो करोड़ों की संपत्ति बनाने (समदडिय़ा ग्रुप पर आयकर के छापे), महाकौशल, जबलपुर में रागात्मक संबंध जैसे घटिया आरोप भी लगाए जाने लगे हैं। दक्षिण भारतीय अरविंद मेनन को ज्यादातर बड़े नेता-कार्यकर्ता ‘अन्ना’ के नाम से पुकारते रहे हैं पर राजेंद्र शुक्ला, विनोद गोठिया और रमेश मेंदोला उनके मिजाज को उनकी आवाज और आंख के इशारे से समझ जाने की कला में माहिर माने जाते हैं और शायद इसी वजह से कुछ मामलों में शिवराज से अधिक भरोसा इन लोगों पर रहा है।
संघ ने अरविंद मेनन को मध्यप्रदेश से मुक्त करने का मन बना लिया है यह जानकारी मुख्यमंत्री को भी हो चुकी थी। सीएम खेमे की रिक्वेस्ट थी कि बदलाव सिंहस्थ के बाद किया जाए तो बेहतर होगा लेकिन संघ ने जिस फौरी तरीके से निर्णय लिया उससे झटका लगना स्वाभाविक है, हालांकि इस निर्णय के सार्वजनिक होने से पहले सीएम ने सारे काम छोडक़र नागपुर भी गए लेकिन उनके ‘मन की बात’ कहां सुनी गई। मेनन को दिल्ली भेजा जाना भले ही रूटीन निर्णय हो लेकिन संघ के सामान्य कार्यकर्ता ऐसे फैसलों के लिए ‘लाइन अटैच स्वयंसेवक’ जैसा हास्यबोध करते रहते हैं।
और खालिस संघ से हैं नए संगठन मंत्री सुहास भगत
पीएम मोदी की इंदौर में यात्रा से पहले मेनन को दिल्ली भेजकर उनके स्थान पर जिन सुहास कुमार भगत को भाजपा का संगठन महामंत्री बनाया गया है। वे हैं तो मूल रूप से इंदौर के लेकिन अभी वर्षों से भोपाल में रह रहे हैं तथा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रांत प्रचारक हैं। वे खालिस संघ से अब भाजपा में भेजे गए हैं, मेनन संघ से नहीं थे लेकिन उन्हें संगठन मंत्री बनाए जाने पर संघ ने (पूर्णकालिक कार्यकर्ता को) प्रचारक का दर्जा दिया था। वे महानगर प्रचारक ग्वालियर और शिवपुरी में रहे हैं। दुर्गुणों से दूर सुहास भगत भोपाल में रहते संगठन और सरकार की नस-नस से वाकिफ हैं संघ के मध्य क्षेत्र के प्रमुख अरुण जैन के भी विश्वस्त हैं। उनकी कार्यशैली अब तक तेज तर्रार एवं कार्यकर्ताओं के मान-सम्मान का खयाल रखते हुए उन्हें साथ लेकर चलने की रही है। अब यह वक्त बताएगा वे उमा भारती के कितने नजदीकी रहे या शिवराज के साथ कैसे रहेंगे।
मेनन को अब चाहे जितनी खामियां सामने आएं लेकिन इस सत्य को नहीं झुठलाया जा सकता कि पांच साल पहले माखनसिंह चौहान की जगह संगठन मंत्री का दायित्व संभालने वाले मेनन की बदौलत ही शिवराज तीसरी बार वैसे ही सीएम बन सके जैसा उनसे पूर्व माखनसिंह के संगठन कौशल से बने। यही वजह है कि केंद्रीय सिंहस्थ समिति अध्यक्ष के रूप में माखनसिंह चौहान को दायित्व सौंप कर सीएम ने वही सारा कर्ज उतारा है।