प्रत्येक पदार्थ अत्यन्त सूक्ष्म कणों से मिलकर बना है। परमाणु को भी तीन मूल कणों इलेक्ट्रान,प्रोट्रान,न्यूट्रान में विभाजित किया गया है। किन्तु ये प्रारंभ की बात है। आज परमाणु के ही लगभग १२ मूलकण है,जिनमें न्यूट्रीनो तो सबसे सूक्ष्म कण है। कण जितना सूक्ष्म होता है,उसका वेग तथा आवृत्ति अर्थात कम्पन संख्या अधिक होती है। न्यूट्रीनो का वेग तो प्रकाश के भी वेग से अधिक माना जा रहा है,जिससे आइंस्टीन का सापेक्षता का सिध्दान्त गलत हो सकता है। विद्युत कण,इलेक्ट्रान,प्रोटान,प्रकाश कण,फोटान आदि का वेग तीन लाख किमी प्रति सेकण्ड है,जबकि विचारों का वेग इससे हजारों गुना अर्थात अरबों खरबों किमी प्रति सेकण्ड होता है। विचार शक्ति को समझने के पूर्व कुछ वैज्ञानिक बातें स्पष्टतया समझ ली जाए तो विषय वस्तु समझने में आसानी होगी।
प्रथन तो सूक्ष्म कण की आवृत्ति या कम्पन संख्या जितनी अधिक होगी उसकी ऊर्जा या एनर्जी तथा भेदन क्षमता उतनी ही अधिक होगी। गामा तरंगे,जिनसे कैंसर की चिकित्सा की जाती है,एक्स किरणें दृश्य-प्रकाश तथा रेडियो तरंगे सभी विद्युत चुम्बकिय तरंगे हैं। किन्तु गामा तरंगों के कण की आवृत्ति सर्वाधिक है अत: ये एक फुट मोटे स्टील के आर पार चली जाती है। एक्स किरणों की कम है अत: हड्डियों के आरपार भी नहीं जा पाती,जबकि प्रकाश की और कम है,अत: ये पतली अपारदर्शी वस्तु के आरपार नहीं जा सकता। इसी संदर्भ में सोचिए कि विचार शक्ति की तरंगे अत्यन्त सूक्ष्म होती है,अत: उनकी भेदन क्षमता कितनी अधिक होगी।
दूसरी बात ध्यान देने योग्य है कि कणों की आवृत्ति जितनी अधिक होती जाती है,रंग में परिवर्तन होता जाता है। दृश्य प्रकाश सात रंगों से मिलकर बना है,जिनमें लाल रंग की आवृत्ति सबसे कम व तरंग लम्बाई सबसे अधिक है। जिससे इसका प्रकीर्णन अर्थात बिखराव सबसे कम होता है,जिससे ये दूर से स्पष्ट दिखाई देता है। यही कारण है कि खतरे के सिग्रल लाल रंग के होते है। आवृत्ति बढने व तरंग लम्बाई घटने से रंग पीला,फिर हरा,नीला,बैंगनी आदि होता जाता है। विचारों का भी अपना रंग होता है,जिसकी विवेचना करेंगे।
तीसरा बिन्दु आवृत्ति व तरंग लम्बाई का है। ये दोनो एक दूसरे की उल्टी होती है। साथ ही अत्यन्त सूक्ष्म किन्तु तीव्र गतिमान कण तरंग प्रकृति प्रदर्शित करते है। जैसे दृश्य प्रकाश कणों(फोटान कणों) व तरंगों के रुप में द्वैत प्रकृति प्रदर्शित करता है। जिन कणों की आवृत्ति अधिक होती है,उनकी तरंग लम्बाई कम होती है।
विचार शक्ति व टैलीपैथी
विचार के कम अत्यन्त सूक्ष्म होते है। इनकी तरंग लम्बाई न्यूनतम और आवृत्ति उच्चतम होती है। समय पर आधारित अर्थात प्रति सैकण्ड ऊ र्जा को ही शक्ति कहते है। विचार शक्ति मस्तिष्क से उत्पन्न तरंगों की ऊ र्जा पर निर्भर रहती है। कुच लोगों की विचार शक्ति उच्च होती है। उनकी सोच,उनका अभिभाषण,उनका व्यक्तित्व सभी प्रभावशाली होते है। स्वामी विवेकानन्द की विचारशक्ति ने पूरे विश्व को प्रभावित किया था।
हमारे ऋ षि मुनि विचार शक्ति को योग प्राणायाम द्वारा पुष्ट करते थे। एक मनुष्य के विचारों से दूरस्थ मनुष्य के विचार प्रभावित हो यही टैलीपैथी(टैली अर्थात दूर) है। हमारे देश में टैलीपैथी के प्रयोग सदियों से होते आए है किन्तु हम विदेशों के प्रयोग ही प्रमाणिकरण के लिए लेेते है। कछ वर्ष पूर्व रुस में मास्को में टैलीपैथी ज्ञाता एक व्यक्ति ने अपने मित्र के अनुरोध पर लेनिनग्राद में मित्र के निकट पार्क में बैंच पर बैठे व्यक्ति को सो जाने पर विवश कर दिया था। जब मित्र ने कहा कि हो सकता है कि वह व्यक्ति थकान के कारण सो गया हो ते मास्को के टैलीपैथी विशेषज्ञ ने तुरंत उस सोये व्यक्ति को फिर से जगा दिया था। सोये हुए व्यक्ति ने जागने के बाद बताया कि उसे ऐसा लगा जैसे कोई उससे कह रहा हो कि तुम जाग जाओ।
विचार शक्ति का प्रभाव
जिस व्यक्ति की विचारशक्ति प्रबल होती है,उसका मुक तेज से दमकता रहता है। वाणी आकर्षक तथा उसके नेत्रों में एक प्रकार का तेज होता है,जिससे हिंसक पशु भी उसकी ओर देखने का साहस नहीं कर पाते हैं। विचार शक्ति के प्रबल होने से व्यक्ति के मुखमम्डल के चारो ओर एक ओजस का निर्माण हो जाता है,जो सामने वाले व्यक्ति को तुरंत प्रभावित करता है। ऐसे व्यक्तियों के अनेकों अनुयायी भी बन जाते है। सिख व सिंधी समाज गुरुनानक का,जैन समाज महावीर स्वामी का,बौध्द समाज भगवान बुध्द का तथा मुस्लिम समाज मुहम्मद साहब का अनुयायी बना,जोकि इन महान व्यक्तियों की अपूर्व विचारशक्ति का ही परिणाम है। उच्च आवृत्ति की विचार तरंगों से ही बडे बडे धार्मिक ग्रन्थों का जैसे तुलसीदास की रामचरित मानस,वेदव्यास का महाभारत,श्रीकृष्ण के विचारों से गीता व मुहम्मद साहब की वाणी से कुरान का निर्माण हुआ। कविता कहानी,उपन्यास,लेख या जो भी साहित्य की रचना हो रही है वह विचारों का ही परिणाम है।
विचारों का रंग
विचारों का अपना रंग होता है। क्रोध में विचारों का रंग लाल होता है,जब अधिक क्रोध आता है तो ऊ र्जा व आवृत्ति बढने से रंग पीला होने लगता है। इसीलिए कहते हैं कि वह व्यक्ति गुस्से में लाल पीला हो गया। सृष्टि निर्माण के सृजन में प्राणी की वैचारिक आवृत्ति स्खलन के समय उच्चतम होती है,जिससे नीले हरे रंग के विचारों की उत्पत्ति होती है और यही सृष्टि का रंग है। वैसे विज्ञान के अनुसार वनस्पतियों का हरा रंग क्लोरोफिल के कारण तथा आकाश का नीला रंग प्रकाश के प्रकीर्णन के कारण होता है। सूर्य के प्रकाश में नीला रंग सबसे अधिक होता है,जिसकी तरंग लम्बाई न्यूनतम है। वायुमण्डल के कणों से टकराकर नीले रंग का प्रकीर्णन अर्तात बिखराव सर्वाधिक होता है,जिससे आसमान नीला दिखाई देने लगता है। भक्ति विषयक विचारों का रंग हल्का गुलाबी तथा तर्क वितर्क युक्त विचारों के रंग पीले होते हैं। क्योकि इनकी ऊ र्जा सामान्य व आवृत्ति न्यून होती है,किन्तु मस्तिष्क के लगातार प्रयोग से आवृत्ति लाल से अधिक होती है। विचारों में जैसी भावना होती है,वैसा ही रंग उस रुप में आ जाता है। भक्ति के विचारों का रंग गुलाबी व प्रेम करते समय आसमानी रंग उत्पन्न होता है। जिस प्रकार रेडियम का प्रत्येक परमाणु सदैव प्रकाशमान होता है वैसे ही अच्छे या बुरे विचार सबका अपना रंग होता है। जब कोई नवीन विचार मन में आता है तब हमारे मस्तिष्क में एक प्रकार का उजाला सा हो जाता है। हममें एक नई चेतना आ जाती है। विचारों के सूक्ष्म कण जो न्यूट्रीनों(अब तक ज्ञान सबसे सूक्ष्म कण) से भी सूक्ष्म होते है,रंगीन व प्रकाशयुक्त होते हैं। योगी व प्रखर मानसिक शक्ति वाले मनुष्य इनको आसानी से असली रुपरंग सहित देख सकते है।
निष्कर्ष
१.एक ही विचार बारम्बार पुष्टता से किया जाए तो मस्तिष्क में वैसे ही परमाणु पुष्ट हो जाते है और ज्ञान तंतुओं को उनके अनुसार चलने का स्वभाव पड जाता है। जिस प्रकार पतले धागे मिलकर मोटी रस्सी बनाते है एक ही प्रकार के विचारों से आदत का निर्माण होता है।
२.अच्छे विचार प्रकाश के समान होते हैं और बुरे विचार अंधकार के समान। जैसे थोडा सा प्रकाश बहुत सारे अंधकार को दूर कर देता है ठीक उसी प्रकार थोडे से अच्छे विचार बहुत सारे बुरे विचारों को नष्ट कर देते है।
३.जीवन में उत्थान पतन हमारे विचारों का ही प्रभाव है। प्रति श्वास औसतन दो से तीन विचार उत्पन्न होते है। अब हमे जो चाहिए,उन विचारों की आवृत्ति बढानी चाहिए। आरोग्य चाहिए तो बारम्बार आरोग्य के विचार धन चाहिए तो धन के विचार करने चाहिए। जो जैसा विचार करता है वैसा ही बन जाता है। हमारे विचारों का प्रभाव हमारे शरीर के अंगों पर पडता है। सब अंग विचारशक्ति से प्रभावित होकर कार्य करते है।
४.यदि स्वास्थ्य,नवजीवन,बल बुध्दि तथा ऐश्वर्य चाहिए तो मन में हर्ष,आनन्द,शान्ति,संतोष,प्रेम,दया आदि गुणों से युक्त विचारों का समावेश करना चाहिए। अच्छी विचारशक्ति से शरीर में यैवन,सौन्दर्य,उत्साह,स्फूर्ति उत्पन्न होने लगती है और व्यक्ति प्रगति के पथ पर अग्रसर हो जाता है।