लिंगायत को अल्पसंख्यक का दर्जा: सिद्धारमैया सरकार का प्रस्ताव गुमराह करने वाला, ऐसा नहीं होने देंगे: शाह
बेंगलुरु,04अप्रैल(इ खबरटुडे)। कर्नाटक में वीरशैव लिंगायत समुदाय को अलग धर्म का दर्जा देने के सिद्धारमैया सरकार के प्रस्ताव को केंद्र की मंजूरी मिलना मुश्किल है। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने इसके संकेत दिए हैं। उन्होंने इसे बीएस येदियुरप्पा को कर्नाटक का अगला मुख्यमंत्री बनने से रोकने की साजिश बताया है। बता दें कि राज्य में 12 मई को विधानसभा चुनाव हैं। नतीजे 15 मई को घोषित किए जाएंगे।
चुनाव से पहले सिद्धारमैया की साजिश
– अमित शाह मंगलवार को कर्नाटक दौरे पर पहुंचे। यहां उन्होंने मीडिया से कहा, “वीराशैव-लिंगायत समुदाय पर सिद्धारमैया सरकार के प्रस्ताव पर कई लोगों ने चिंता जताई है। यह और कुछ नहीं, बल्कि चुनाव से पहले लोगों को गुमराह करने की साजिश है, ताकि बीएस येदियुरप्पा को अगला मुख्यमंत्री बनने से रोका जा सके। हम ऐसा नहीं होने देंगे।”
केंद्र सरकार के पाले में है गेंद
– सिद्धारमैया सरकार ने 19 मार्च को लिंगायत और वीरशैव समुदाय को अलग धर्म का दर्जा देने का सुझाव मंजूर किया था। यह मंजूरी नागभूषण कमेटी के सुझाव और राज्य अल्पसंख्यक कानून की धारा 2डी के तहत दी गई। अब इसे अंतिम मंजूरी के लिए केंद्र सरकार के पास भेजा गया है।
फैसले के क्या मायने?
– भाजपा के मुख्यमंत्री पद के दावेदार बीएस येदियुरप्पा भी लिंगायत हैं ऐसे में पार्टी का इस समुदाय में खासा दबदबा है।
– राज्य की कांग्रेस सरकार इस फैसले से येदियुरप्पा का जनाधार कमजोर करना चाहती है।
– बीजेपी लिंगायतों को हिंदू धर्म का ही हिस्सा मानती रही है। ऐसे में बीजेपी फिलहाल कांग्रेस के इस दांव की काट तलाश रही है।
बदलता रहा लिंगायतों का रुझान
– 1980 के दशक में लिंगायतों ने राज्य में तब जनता दल के नेता रामकृष्ण हेगड़े पर भरोसा जताया था। बाद में यह समुदाय कांग्रेस के वीरेंद्र पाटिल के साथ आया। 1989 में कांग्रेस की सरकार बनी। पाटिल मुख्यमंत्री चुने गए, लेकिन राजीव गांधी ने उन्हें इस पद से हटा दिया था। इसके बाद लिंगायत फिर से हेगड़े के सपोर्ट में आ गए। 2004 में हेगड़े की मौत के बाद लिंगायतों ने बीजेपी के बीएस येदियुरप्पा को अपना नेता चुना। जब बीजेपी ने 2011 में येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री पद से हटाया तो इस समुदाय ने बीजेपी से दूरी बना ली।
कौन हैं लिंगायत?
– करीब 800 साल पहले बासवन्ना नाम के समाज सुधारक थे। उन्होंने जाति व्यवस्था में भेदभाव के खिलाफ आंदोलन छेड़ा था। वेदों और मूर्ति पूजा को नहीं माना।
– एक्सपर्ट पैनल के मुताबिक, बासवन्ना के विचारों को मानने वालों को ही लिंगायत और वीरशैव कहा जाता है।
– हालांकि, लिंगायत खुद को वीरशैव से अलग बताते हैं। उनका कहना है कि वीरशेव बासवन्ना से भी पहले से हैं। वे शिव को मानते हैं, जबकि लिंगायत शिव को नहीं मानते।
– लिंगायत अपने शरीर पर गेंद की तरह एक इष्टलिंग बांधते हैं। उनका मानना है कि इससे मन की चेतना जागती है।
कर्नाटक विधानसभा का गणित?
कुल सीटें: 224
बहुमत: 113
वोटर: 4.96 करोड़
किस जाति का कितना दबदबा?
लिंगायत: 18%
कर्नाटक में 17 से 18% आबादी लिंगायत समुदाय की है। इनका 100 विधानसभा सीटों पर प्रभाव है। 224 में से 52 विधायक इसी समुदाय से हैं। इन्हें बीजेपी का वोटबैंक माना जाता है। पर इस बार सिद्धरमैया ने लिंगायतों को अल्पसंख्यक धर्म का दर्जा देने का प्रस्ताव पास कर बीजेपी के लिए चुनौती खड़ी कर दी है।
वोकालिगा: 12%
राज्य में वोकालिगा की आबादी 12%है। इनका 80 विधानसभा सीटों पर प्रभाव है। पूर्व पीएम एचडी देवेगौड़ा इसी समुदाय से हैं। उनकी पार्टी जेडीएस का इन पर काफी प्रभाव है। इस समुदाय से राज्य में 6 सीएम हुए हैं। अमित शाह, अनंत कुमार, सदानंद गौड़ा वोकालिगा के चुनचुनगिरी मठ भी जा चुके हैं।
कुरबा: 8%
तीसरा प्रमुख मठ कुरबा समुदाय से जुड़ा है। राज्य में कुरबा आबादी 8% है। इसका मुख्य मठ श्रीगैरे, दावणगेरे में है। सीएम सिद्दारमैया इसी समुदाय से हैं। उनके वोट बैंक अहिंदा (अल्पसंख्यक, पिछड़ा वर्ग, दलित) को तोड़ने की कवायद में अमित शाह चित्रदुर्ग में दलित मठ शरना मधरा गुरु पीठ गए थे।