May 18, 2024

राग रतलामी/ हर कोई हुआ परेशान,लेकिन दरबार के लिए फायदे का सौदा साबित हुआ कोरोना

-तुषार कोठारी

रतलाम। कोरोना से हर कोई परेशान हुआ। हर किसी को कोरोना ने तकलीफ दी। लेकिन कुछ चमत्कारी लोग ऐसे भी हैं जिनके लिए कोरोना किसी वरदान से कम साबित नहीं हुआ। शहर सरकार के बड़े दरबार भी ऐसे चमत्कारी व्यक्ति है जिनके लिए कोरोनावायरस वरदान से कम नहीं रहा। कोरोना काल में दरबार को कई जिम्मेदारियां मिली और हर जिम्मेदारी में बड़ा फायदा भी मिला। खाने के पैकेट और सड़कों के सैनिटाइजेशन से लगाकर चौराहों पर हाथ धोने के लिए टंकिया लगाने तक, हर मामले में फायदा ही फायदा।

शहर सरकार के दरबार पहले से ही चमत्कारी व्यक्ति रहे हैं। उनका सबसे बड़ा चमत्कार तो यही है कि जिस कुर्सी पर वह बैठते हैं उनकी लायकी उस से छोटी कुर्सी की है। लेकिन वे बरसों से, अपनी हैसियत से बड़ी कुर्सी पर विराज रहे हैं। जिले की बड़ी मैडम जी ने उन्हें रवाना करने की तमाम कोशिशें भी की। लेकिन दरबार ने बड़ी मैडम जी की तमाम कोशिशों पर पानी फेरते हुए कुर्सी को जकड़े रखा। पंजा पार्टी की सरकार में दरबार के कनेक्शन सरकार के भीतर तक बताये जाते थे और इस पर भी उनके पास कुर्सी को जकड़े रहने के लिए भारी भरकम खर्चा करने की हैसियत भी थी। इन दोनों खासियतों का ही असर था कि मैडम जी की तमाम कोशिशें धरी की धरी रह गई और दरबार यहीं के यहीं जमे रह गए।

दरबार ने यही जमे रहने के लिए जमकर खर्चा किया था, इसलिए उसकी भरपाई करना भी लाजमी था। इसीलिए वो खर्चे की भरपाई में लगे हुए थे,कि इसी बीच कोरोना आ टपका। दरबार के लिए कोरोना का आना अच्छा ही साबित हुआ। कोरोना से निपटने की तैयारियों में शहर सरकार को कई सारी जिम्मेदारियां दी गई और साथ ही इसके लिए बजट भी दिया गया। इसे भी किस्मत ही कहा जाएगा कि कोरोना तब आया जब शहर की पूरी सरकार सिर्फ और सिर्फ दरबार के ही हाथों में है। ना कोई जनप्रतिनिधि ना कोई नेता। बस, दरबार भी जुट गए तैयारी में।

कोरोना से निपटने की तैयारी में काम भी बहुत सारे थे। गरीबों को भोजन बटवाना, शहर भर में कोरोनावायरस से बचाव के लिए कीटनाशकों का छिड़काव करवाना, लोगों के हाथ धुलवाने के लिए चौराहे चौराहे पर टंकिया रखवा कर साबुन पानी का इंतजाम करना। शहर सरकार के जानकार बताते हैं कि दरबार को हर काम में बड़ा फायदा मिला। शहर को कोरोना वायरस से मुक्त रखने के लिए सोडियम हाइड्रोक्लोराइड का छिड़काव किया जाना था। शहर की तमाम बड़ी सड़कों पर छिड़काव होता हुआ देखा गया। लेकिन दूरदराज की कालोनियों और गली मोहल्ले के लोग छिड़काव को सिर्फ अखबार के चित्रों में ही देखते रहे। कोरोना का असर इस छिड़काव के बाद भी खत्म नहीं हुआ और नए नए इलाकों में कोरोना के संक्रमित मिलते रहे। जानकार बताते हैं कि 5000 लीटर पानी में 50 लीटर सोडियम हाइड्रोक्लोराइड मिलाना था। लेकिन आधे से भी कम मिलाया गया। इसी का नतीजा था छिड़काव का कोई असर शहर में कहीं नजर नहीं आया। कई गली मोहल्लो और कालोनियों में तो छिड़काव की लारिया पहुंची ही नहीं लेकिन शहर सरकार के कागजों में पूरे शहर के चप्पे-चप्पे पर छिड़काव कर दिया गया।सारा फायदा दरबार को हुआ।

कोरोना से बचाव के लिए बड़ी मैडम जी ने सुझाव दिया था कि चौराहे चौराहे पर लोगों को साबुन से हाथ धोने की सुविधा उपलब्ध कराई जाए। दरबार ने इस पर फौरन अमल किया। कई चौराहों पर सफ़ेद टंकिया नज़र आने लगी। साबुन से हाथ धोने की व्यवस्था के लिए बकायदा लोहे के स्टैंड बनवाये गए और इन पर टंकिया टिकाई गई। तमाम अखबारों में इसके फोटो भी छपवाये गए। दरबार को पता था कि टंकिया लग भी जाएगी तो इन पर हाथ धोने कोई नहीं जाने वाला। इसलिए जरूरत सिर्फ टंकी दिखाने भर की है। एक बार टंकियों में पानी भर दिया गया। अब टंकियों में कहीं-कहीं पानी है लेकिन साबुन कहीं भी नहीं। दावे तो यह किए गए थे कि हर टंकी पर हर दिन हाथ धोने के लिए दो बार लिक्विड सोप की बोतल भरी जाएगी लेकिन किसी भी टंकी पर ऐसी कोई बोतल मौजूद नहीं है

टंकी पर रखी साबुन वाली बोतल से साबुन निकलने के लिए पेडल की व्यवस्था बनाई गई है। नल भी पेडल चलाने से ही चलता है। इतनी हाई फाई व्यवस्था है तो महँगी तो होगी ही। इसके लिए शहर सरकार ने लाखो खर्च भी किये है। ये अलग बात है की टंकियों की तादाद जितनी बताई जा रही होगी उससे कम ही होगी। फिर टंकियों में पानी भरने और साबुन खरीदने का भी खर्चा है। कोरोना से निपटने के लिए दिन रात एक कर रही मैडम जी को पता ही नहीं है कि कोरोना किस किस को कितना फायदा दिलवा रहा है। अगर मैडम जी इन टंकियों और छिड़काव के खेल को देख ले तो हो सकता है कि दरबार की अकड़ कुछ कम हो जाये और शहर को भी कुछ फायदा हो जाये।

छिन गई बादशाहत……

वर्दीवालों के बडे साहब घायल होने के बावजूद जल्दी काम पर लौट आए। ये उन्ही की हिम्मत का नतीजा था कि उन्होने जल्दी ही अपना काम सम्हाल लिया। बडे साहब रतलामियों में बेहद लोकप्रिय है इसलिए रतलामी बाशिन्दे इस बात से बडे खुश हुए कि साहब जह्दी स्वस्थ हो गए। लेकिन कुछ लोग ऐसे भी है जिन्हे उनका जल्दी काम पर लौट आना पसन्द नहीं आया। उनके घायल होने से महकमे की बादशाहत दूसरों के हाथों में थी और उन्हे उम्मीद थी कि कुछ और दिन इस बादशाहत का मजा लेंगे। वो मजा ले भी रहे थे,लेकिन बडे साहब जल्दी लौट आए और उनके लौट आने से इनकी बादशाहत जल्दी छिन गई। उन्हे बस इसी का मलाल है।

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