November 16, 2024

राग रतलामी/ वकील और दादाओं का नहीं,अब वर्दीवालों का कमाऊ पूत है जमीन का झगडा,जारी है पानी के लिए हाहाकार

-तुषार कोठारी

रतलाम। जमीनों के झगडे पहले या तो वकीलों के कमाऊ पूत हुआ करते थे,या दादा पहलवानों के। लेकिन अब जमाना बदल रहा है। अब जमीनों के झगडे वर्दीवालों के लिए कमाऊ पूत साबित हो रहे है। वर्दीवाले अगर अपनी वाली पर आ जाए तो फिर कोर्ट कचहरी की जरुरत ही नहीं रह जाती। कानून तो वैसे भी वर्दी वालों के हाथ में बन्द है। वर्दीवाले चाहे तो हत्या के प्रयास को सामान्य मारपीट में बदल दें और महिला के साथ होने वाले अपराध पर कोई कार्रवाई भी ना करें। हांलाकि ऐसा तब होता है,जब वर्दीवालों को इसकी कीमत पहले चुका दी गई हो। ये सारे पुलिसिया कमाल अभी कुछ दिन पहले ही पावर हाउस रोड पर देखने को मिले। दोबत्ती के दारोगा की सदारत में नए नए कमाल दिखाए गए। मामला एक जमीन पर कब्जे का था। कब्जा करने वाले ने दोबत्ती के दारोगा को पहले से सैट कर लिया और कब्जा करने जा पंहुचा। दारोगा ने भी पूरी ईमानदारी से साथ निभाया। कब्जा करने जा रहे लोगों के साथ उन्होने अपना बल भी भेजा। बल को साफ हिदायत थी,कि कब्जा करने वालों पर कोई कार्रवाई नहीं करना है। नतीजा यह हुआ कि दर्जनभर वर्दीवालों की मौजूदगी में धारदार हथियार भी चले और महिलाओं के कपडे भी फाड दिए गए। वर्दीवाले तो दारोगा जी का हुक्म बजाने के लिए मौजूद थे। वे सबकुछ चुपचाप देखते रहे। कब्जा करने वालों ने दूसरे पक्ष के एक व्यक्ति के सिर पर धारदार हथियार से जानलेवा वार भी कर दिया। लेकिन चूंकि आईपीसी की किताब वर्दीवालों के पास ही है,इसलिए केस सिर्फ मामूली मारपीट का बनाया गया। वर्दीवालों के पास इसका बचाव हमेशा मौजूद होता है कि मेडीकल आने पर धारा बढाएंगे। वर्दीवालों के सामने एक महिला के साथ अभद्रता भी हुई थी,लेकिन इस मामले में वर्दीवाले तब तक चुप बैठे रहे,जब तक कि उपरी दबाव नहीं आया। उपरी दबाव आया तो दो दिन बाद महिला की रिपोर्ट दर्ज की गई।
वर्दीवालों के कप्तान जब आए थे,तो उन्हे दबंग कहा जा रहा था। वे दबंग है भी,लेकिन उनके मातहत उन्ही की नाक के नीचे बडे बडे खेल,खेल रहे हैं। बडा सवाल अब यह पूछा जा रहा है कि सारे खेल में भुगतान कितना हुआ है? इसका जवाब या तो दारोगा के पास है या फिर देने वाले के पास। लेकिन ऐसे सवाल खडे होने से वर्दीवालों का गौरव कम जरुर होता है।

पंजा पार्टी-पांच बुलाए,पच्चीस आए

चुनावी दौड में फूल छाप वाले पिछडते जा रहे है,क्योंकि फूल छाप ने अभी तक नाम ही तय नहीं किया है। दूसरी तरफ पंजा पार्टी के भूरिया जी कई दिनों से घोषित हो चुके है,इसलिए उनकी तैयारियां भी शुरु हो चुकी है। ये अलग बात है कि उनकी तैयारियों में वजन नजर नहीं आ रहा। इस बार पंजा पार्टी भी फूलछाप वालों की लाइन पर चलने की कोशिश कर रही है। फूल छाप वालों ने मेरा बूथ सबसे मजबूत का फार्मूला चलाया,तो पंजा पार्टी ने भी इसी तर्ज पर काम आगे बढाने की कोशिश कर डाली। शहर के ढाई सौ से ज्यादा बूथों के लिए हर बूथ से पांच पांच कार्यकर्ताओं को बुलाकर बैठक रखी गई। हर बूथ से पांच आते तो हजार से ज्यादा लोग बैठक में पंहुचते। लेकिन पंजा पार्टी,तो पंजा पार्टी है। वहां फूल छाप के फार्मूले कैसे चलते। हांलाकि पंजा पार्टी वालों ने बैठक के साथ भोजन भी रखा था,ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग आएं। लेकिन पंहुचे केवल पांच सौ। एक बूथ से पांच के हिसाब से देखें तो महज सौ बूथों के लोग आए,डेढ सौ से ज्यादा बूथों के नदारद रहे। बैठक शुरु हुई तो पता चला कि जो आए हैं,वो भी सौ बूथों के नहीं है। कई बूथ ऐसे थे,जहां से पांच की बजाय पच्चीस आ गए। नेताओं ने उन्हे घुट्टी पिलाई। लेकिन कार्यकर्ताओं का ध्यान तो भोजन पर था। जैसे तैसे बैठक हुई। बस फिर क्या था,सब लोग भोजन पर टूट पडे। अब चुनावी जोड बाकी करने वाले हिसाब लगा रहे है कि यही हाल रहा तो शहर में पंजा पार्टी का क्या होगा…?

जारी है हाहाकार

बडी मैडम ने निगम के दरबार को बुलाकर सख्ती से समझाया कि शहर को ढंग से पानी बांटो। लेकिन दरबार तो अच्छों अच्छों को पानी पिला चुके है। उन्होने मैडम की नसीहत सुनी और चैंबर से निकलते ही भूला भी दी। दो दिन भी पानी ठीक से नहीं आया कि शहर के मोहल्लों में निगम के एलान शुरु हो गए। तथाकथित सम्माननीय जल उपभोक्ताओं को बताया गया कि उनके इलाके में जल प्रदाय आज की बजाय फिर किसी दिन किया जाएगा.गनीमत यही थी कि इस एलान में निगम ने नागरिकों को होने वाली असुविधा के लिए खेद भी व्यक्त किया। यहां तक कि नव संवत की शुरुआत वाले दिन भी शहर के कई ईलाकों में ऐसा ही ऐलान किया गया। नए साल में कई सारे लोग बेचारे बिना नहाए रह गए।
शहर के लोगों की नजरें अब बडी मैडम की ओर लगी है कि वे निगम के दरबार से व्यवस्था को सुधरवा पाएगी या नहीं….।

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