राग-रतलामी/ लक्ष्मी पूजन का त्यौहार,लेकिन मन्दिर वाली महालक्ष्मी के श्रृंगार पर तकरार,श्रध्दा पर प्रहार
-तुषार कोठारी
रतलाम। दीपो का यह त्यौहार लक्ष्मी जी की पूजा का भी त्यौहार है। देश भर में हर कोई आज के दिन लक्ष्मी जी की पूजा करता है। रतलामी बाशिन्दे भी बेशक अपने घरों में लक्ष्मी जी की पूजा करते है। लेकिन मन्दिर वाली महालक्ष्मी जी पर तकरार जारी है और इसी चक्कर में श्रध्दा पर प्रहार भी जारी है। पता नहीं झगडा पुजारियों का है या किसी विघ्रसंतोषी को कोई समस्या है। लेकिन कुल मिलाकर महालक्ष्मी जी के मन्दिर पर सरकारी शिंकजा कस गया है। मन्दिर में पूजा के लिए रुपए और गहने रखने वाले श्रध्दालुओं पर नजर रखी जा रही है। किसी को कुबेर पोटली में अंधविश्वास नजर आ रहा है,तो किसी को मन्दिर पर उमडने वाली श्रध्दालुओं की भीड से दिक्कत हो रही है। किसी को मन्दिर में आने वाले चढावे से परेशानी है। महालक्ष्मी जी की पूजा अर्चना पर सरकारी कायदे थोपे जाने की तैयारियां हो रही है।
जिस मन्दिर की वजह से देश के नक्शे पर नामालूम से इस शहर के चर्चे दूर दूर तक होने लगे थे और दीपावली के मौके पर हर नेशनल न्यूज चैनल पर इस शहर की खबरें आने लगी थी,उस मन्दिर को पिछले साल से नजर लगने लगी थी। चुनावी आचार संहिता को हर कहीं लागू करने के पागलपन में अफसरों ने पिछली दीवाली पर श्रध्दालुओं द्वारा मन्दिर में रखे गए गहनों और नगदी को अपने कब्जे में ले लिया था। चुनाव आयोग ने चुनाव में नगदी के दुरुपयोग को रोकने के लिए किसी भी व्यक्ति के एकसाथ पचास हजार से अधिक नगद राशि साथ में रखने पर रोक लगाई थी। लेकिन अफसरशाही की अकलमन्दी ने इसे मन्दिर के श्रध्दालुओं पर भी थोप दिया था। बात बात में सडक़ों पर जिन्दाबाद मुर्दाबाद करते हुए निकल पडने वाले तमाम नेता चुनाव आयोग के डण्डे से डरे रहते है। इसलिए उस वक्त सब के सब चुप्पी साधे रहे और लक्ष्मी जी की श्रध्दा के वशीभूत होकर मन्दिर में नगदी और गहने रखने वाले श्रध्दालुजन अपराधियों की तरह अपनी नगदी और गहने वापस पाने के लिए चक्कर लगाते रहे।
लेकिन ये बात पिछले साल की थी। इस साल चुनावी आचार संहिता नहीं है। लेकिन शहर के कुछ ज्ञानचंदों और विघ्रसंतोषियों को इस बार भी महालक्ष्मी जी से परेशानी हो रही थी। नतीजा ये हुआ कि इस मामले को लेकर सोशल मीडीया पर खुसुर पुसुर चलने लगी। मन्दिर सरकारी है,इसलिए सरकारी कारिन्दे भी फौरन सक्रिय हो गए और मन्दिर पर अफसर तैनात कर दिए गए,जो हर बात पर नजर रख रहे है। विघ्रसंतोषियों की कोशिश तो ये थी,कि मन्दिर पर लगने वाले मजमे को ही खत्म कर दे। किसी अतिविद्वान को कुबेर पोटली में अंधविश्वास नजर आने लगा तो उसने इसी पर रोक लगाने की मांग कर डाली। किसी ने आरती के समय तय करने की बात उठा दी,तो किसी ने हवन पूजन के लिए सरकारी इजाजत को जरुरी बनाने की मांग कर ली।
लेकिन इन अति विद्वानों ने इस तथ्य को भूला ही दिया कि लक्ष्मी जी की पूजा की परंपरा आज कल की नहीं है। लक्ष्मी जी के मन्दिर में अपनी लक्ष्मी दुगुनी करने को अमेरिका इग्लैण्ड में भले ही अंधविश्वास समझा जाए,लेकिन भारत के घर घर में दीवाली के दिन लक्ष्मी पूजा की जाती है और कुबेर पोटली को अंधविश्वास बताने वाले भी अपने घरों पर लक्ष्मी पूजा करते ही है। उनसे पूछा जाए कि जब लक्ष्मी पूजा अंधविश्वास नहीं है,तो कुबेर पोटली या मन्दिर में गहने नगदी रखना अंधविश्वास कैसे हो सकता है।
इन अतिविद्वानों को यह भी समझ में नहीं आया,कि इस छोटे से शहर को महालक्ष्मी जी की नोटों और गहनों से होने वाली अद्वितीय साज सज्जा ने ही देशभर में विख्यात किया है। पिछले कुछ सालों से देश के हर नेशनल न्यूज चैनल और राष्ट्रीय अखबारों में दीवाली के दिनों में महालक्ष्मी मन्दिर की खबरें विशेष स्थान पाती रही है। इसी ख्याति का असर था कि महालक्ष्मी मन्दिर के दर्शनों के लिए इस शहर में बडी संख्या में बाहर से श्रध्दालुजन आने लगे। बडी बात ये भी थी कि बरसों से मन्दिर में सैकडों लोग अपनी नगदी और लाखों की कीमत के गहने रखा करते थे,लेकिन लक्ष्मीपूजा के बाद कभी भी किसी को भी अपनी नगदी या गहने वापस लेने में कोई समस्या नहीं आई। ना तो किसी की रकम कम हुआ और ना किसी का गहना गुमा। यह सबकुछ आस्था की बदौलत ही चलता रहा।
आज दुनिया का हर देश टूरिज्म के महत्व को समझने लगा है और पर्यटन के विकास और पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए नए नए जतन करने लगा है। यही स्थिति शहरों की भी है। कोई प्राकृतिक पर्यटन को प्रमोट कर रहा है,तो कोई ऐतिहासिक पर्यटन पर ध्यान दे रहा है। इसी में नई शाखा धार्मिक पर्यटन की भी चालू हो चुकी है। रतलाम कोई बडा तीर्थस्थल नहीं है फिर भी महालक्ष्मी मन्दिर दूर दराज के श्रध्दालुओं को आकर्षित करने लगा है। महालक्ष्मी जी से प्रभावित हो कर बाहर से रतलाम में आ रहे श्रध्दालुओं की वजह से रतलाम को हर तरह का लाभ ही होता है। बाहर से आया व्यक्ति यहां आता है,तो रतलामी सेव चखता है,दाल बाटी भी खाता है और लगे हाथ रतलाम का सोना भी खरीद सकता है। लेकिन शहर के विघ्रसंतोषियों को केवल पुजारी का चढावा ही नजर आ रहा है। अफसरों को भी केवल नियम कायदे दिखाई दे रहे है। होना तो यह चाहिए था कि दीवाली पर उमडने वाली भीड के लिए सुविधाएं जुटाने की व्यवस्था की जाती। महालक्ष्मी मन्दिर को और अधिक प्रमोट किया जाता। मन्दिर में अपनी नगदी और गहनें रखने वालों को भी प्रोत्साहित किया जाता। लेकिन ये रतलाम है और यहां समझदारी की बातें कम ही समझ में आती है। और तो और,हिन्दू धर्म के नाम पर नेतागिरी चमकाने वालों में से भी किसी को इस घटना में धर्म पर आघात नजर नहीं आया। किसी को भी यह नहीं लगा कि प्रशासन श्रध्दालुओं की श्रध्दा पर शिंकजा कस रहा है। किसी ने इस बात पर आपत्ति नहीं ली कि मन्दिर में पूजा के लिए रखी जाने वाली नगदी और गहनों की संख्या पर नियंत्रण क्यो किया जा रहा है। यह श्रध्दालु की श्रध्दा पर निर्भर है कि वह मन्दिर में कितनी राशि पूजा के लिए रखता है। इस पर सरकारी सीमा कैसे लगाई जा सकती है।
उन श्रध्दालुओं को सलाम किया जाना चाहिए,जिन्होने विघ्रसंतोषियों और सरकारी कारिन्दों की तमाम हरकतों के बावजूद महालक्ष्मी जी का वही श्रृंगार करवाया,जिसके लिए वे पूरे देश में जानी जाती है।