October 15, 2024

राग रतलामी/ फिर से जोर पकडने लगी है फूल छाप की आपसी खींचतान,स्टेशन रोड के जवाब में पैलेस रोड

-तुषार कोठारी

रतलाम। लंबे समय से शांत नजर आ रही फूल छाप पार्टी में अब खींचतान की हलचलें होती हुई नजर आ रही है। जब तक फूल छाप की सरकार थी, पार्टी में आपसी खींचतान के किस्से रोजाना की बात थी,लेकिन अब सरकार तो रही नहीं,इसलिए फूल छाप की खींचतान भी कम हो गई। थोडी उठापटक तब नजर आई थी,जब जिले के नेताओं की नियुक्ति होना थी। लेकिन स्टेशन रोड वाले भैयाजी ने अपने दमखम का उपयोग करते हुए लुनेरा दरबार को दोबारा से जिले की मालकियत दिलवा दी। पहले इसमें थोडा सा पंगा पड गया था। फूल छाप वालों ने हर पद के लिए उम्र की सीमा तय कर दी थी। लुनेरा के दरबार इस सीमा के बाहर थे। इस चक्कर में काफी दिनों तक मामला अटका रहा था,लेकिन भैया जी की जोर आजमाईश काम आई और वही हुआ जो भैया जी चाहते थे।
तब से अब तक तो शांति बनी हुई थी,लेकिन हाल में पैलेस रोड़ वाले साहब जी ने एक पत्र लिख कर मामले को गर्म कर दिया है। पैलेस रोड वाले साहब लम्बे समय से मौन धारण किए हुए थे,लेकिन अब वो मुखर हो गए है। उन्होने फूल छाप के सबसे बडे नड्डा जी को चि_ी लिखी है। इस चि_ी में उन्होने जिले के मुखियाओं की नियुक्ति में आयु सीमा के साथ छेडछाड किए जाने पर नाराजगी जताई है।
वास्तव में फूल छाप पार्टी ने पहले जिले के मुखिया के लिए पचास साल की आयु सीमा तय की थी,लेकिन बाद में इसे बढाकर पचपन साल कर दिया था। इसके बाद भी कुछ जिले के मुखिया इससे भी ज्यादा उम्र के बना दिए गए। रतलाम के मामले में भी दरबार को निपटाने में लगे लोगों ने इसी को अपना हथियार बनाया था। दरबार के स्कूल वाले रेकार्ड तक भाई लोग लेकर आ गए थे। इस रेकार्ड के मुताबिक दरबार पचपन की सीमा भी पार कर गए थे। सबूत ढूंढकर लाने वालों को बडी उम्मीद थी कि इस सबूत के सहारे दरबार की नियुक्ति को निरस्त करवा कर भैयाजी को झटका दे पाएंगे। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। हुआ इसका उलटा। झटका भैया जी ने ही दे दिया। भैयाजी ने लुनेरा दरबार को फिर से फूल छाप की कमान दिलवा दी।
इस पूरी कहानी में पैलेस रोड वाले साहब चुप्पी साधे बैठे थे। लेकिन अब वो एकाएक मुखर नजर आ रहे हैं। उन्होने सीधे राष्ट्रीय प्रमुख को चि_ी लिख भेजी है। उन्होने अपनी चि_ी में पहले तो इस बात के लिए फूल छाप की तारीफ की है कि आयुसीमा के कारण नए लोगों को आगे आने का मौका मिलेगा। फिर उन्होने कहा कि जिले के लिए पचास की सीमा को बढाकर पचपन करना ठीक नहीं था। इसके बाद साहब ने यह भी लिखा कि जिन की उम्र के प्रमाणपत्र दे दिए गए थे,उन्हे पार्टी ने हटाया नहीं। यह बेहद गलत है। मतलब साफ है कि पैलेस रोड वाले साहब ने सीधे सीधे लुनेरा के दरबार पर हमला बोला है और इस बहाने से भैयाजी को भी झटका देने की कोशिश की है।
अब तक फूल छाप में यह माना जा रहा था कि पैलेस रोड वाले साहब को अब फूल छाप के मामलों में ज्यादा रुचि नहीं बची है। लेकिन इस चि_ी के बहाने उन्होने साफ कर दिया है कि उन्होने अभी मैदान नहीं छोडा है। आने वाले दिनों में स्टेशन रोड और पैलेस रोड की जंग फिर से छिड सकती है और फूल छाप की राजनीति पर नजर रखने वालों के लिए इसे देखना बेहद रोचक रहेगा।

खिलाफत की जहालत

सीएए की खिलाफत को लेकर पूरे देश भर में जहालत देखने को मिल रही है। शाहीनबागियों का असर अब यहां तक आ चुका है। शहर के भी एक इलाके में शाहीन बाग बनाया गया है। हांलाकि इसे बनाने वाले बेहद परेशान है,क्योंकि उन्हे तनिक सा भी मीडीया अटेंशन नहीं मिला। मीडीया की सुर्खियों में अगर नहीं आ पाए,तो आन्दोलन का क्या मजा। लेकिन अब शुरु कर दिया है,तो बन्द कैसे करें? मजेदार बात यह भी है कि इन लोकल शाहीनबागियों को उन्ही के लोगों का भी पूरा समर्थन हासिल नहीं है। केवल एक ही इलाके के लोग इसमें शामिल है,जबकि अन्य बडे इलाकों के लोग उन पर कोई ध्यान नहीं दे रहे हैं। यही कारण है कि मीडीया ही नहीं प्रशासन भी उन्हे महत्व देने को तैयार नहीं। लगातार हो रही उपेक्षा से त्रस्त यहां के नेता धरने में असर पैदा करने के चक्कर में पंजा पार्टी के एक भोपाली नेता को भी लेकर आए। भाषण करवाया,प्रेस कान्फ्रेन्स भी करवाई,लेकिन खबरची पंहुचे ही नहीं। नतीजा फिर वही हुआ कि कहीं कोई खबर नहीं छपी। बहरहाल,उनका दुखडा अपनी जगह है,लेकिन इसका एक असर तो दिखाई देने लगा है। जनगणना में मकानों की गिनती करने गए कर्मचारियों को कुछ इलाकों में दिक्कतों का सामना करना पडा। खिलाफत की जहालत में डूबे जाहिल लोगों ने अपने मकानों पर नम्बर नहीं लिखने दिए। कुछ जगहों पर जहां नम्बर लिख दिए गए थे,वहां मिटा दिए गए। कर्मचारियों को ट्रेनिंग में बताया गया था कि कोई भी व्यक्ति जनगणना के काम में अवरोध उत्पन्न नहीं कर सकता,क्योंकि यह दण्डनीय अपराध है। कर्मचारी नजरें लगाए बैठे है कि शहर की जनगणना में जो अवरोध पैदा कर रहे है,उन पर कोई कार्रवाई होगी या नहीं? एक सवाल यह भी जोर शोर से पूछा जा रहा है कि पिछले कई दिनों से लोकल शाहीनबाग पर भी भोजन की व्यवस्था चल रही है,तो इसे फण्डिंग कहां से मिल रही है? वर्दी वालों को इस सवाल का जवाब जरुर ढूंढ कर रखना चाहिए,जिससे कि हालात बिगडने पर नियंत्रण में आसानी रहे।

मास्टर साहब का अडियलपन

स्कूल के दिनों में छात्र सेना का प्रशिक्षण व्यक्ति को जीवनभर काम आता है। यही वजह है कि सरकारी स्कूलों में एनसीसी की गतिविधि चलाई जाती है। पिपलौदा के स्कूली बच्चे भी इस बात को समझते है,इसलिए वहां एनसीसी यूनिट प्रारंभ करवाने की कोशिशें की जा रही थी। सांप पकडने में माहिर एक शिक्षक ने इसके लिए रजामन्दी भी दे दी। एनसीसी वालों को जैसे ही शिक्षक की रजामन्दी होने की जानकारी मिली,उन्होने स्कूल के बडे मास्टर साहब को पत्र लिख कर शिक्षक को एनसीसी से जुडने की स्वीकृती देने को कहा। लेकिन बडे मास्टर साहब की उस शिक्षक से कोई व्यक्तिगत खुन्नस थी। नतीजा यह हुआ कि बडे मास्टर साहब स्वीकृती नहीं देने पर अड गए। एनसीसी वाले, बडे मास्टर साहब की स्वीकृती मिलने का इंतजार कर रहे है,ताकि पिपलौदा के स्कूली बच्चों के लिए एनसीसी का प्रशिक्षण शुरु किया जा सके। लेकिन बडे मास्टर साहब को बच्चों के प्रशिक्षण से कोई लेना देना नहीं है,उन्हे अपनी व्यक्तिगत खुन्नस निकालना है। समस्या यह है कि अगर बडे मास्टर साहब ने स्वीकृती नहीं दी,तो एनसीसी की यह यूनिट पिपलौदा से छिन जाएगी। अब मामला बडे अफसरों के हाथ में है । देखना है कि बच्चों की किस्मत जोर मारती है या मास्टर साहब की खुन्नस।

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