राग रतलामी- जिससे थी इलाज की उम्मीद,उसी ने बढाई बीमारियां,स्टेशन रोड नहीं अब पैलेस रोड……..
-तुषार कोठारी
रतलाम। नगर सरकार के बजट पर अब सोमवार को भाई लोग चर्चा करेंगे। मैडम जी की कौंसिल ने सात सौ तिरयासी करोड 78 लाख रु. के अफसरों द्वारा बनाए गए बजट में 63लाख का लाभ होने वाला था,कौंसिल ने दस लाख रु. और खर्च करने के फार्मूले ढूंढ निकाले और अब 53 लाख रु. लाभ का बजट परिषद में रखा जाएगा। शहर के लोगों को इससे कोई फर्क नहीं पडता कि बजट कब आया,क्यों आया,कैसा आया,कितने लाभ या हानि का आया। उन्हे तो बारिश में जाम होती सडक़ें,गंदगी से जाम हो रही नालियां,उजडें हुए बाग बगीचे और सूखे हुए नलों का रोना है। बजट में फायदा 63 लाख का हो या 53 लाख का.लोगों को तो हर दिन उन्ही समस्याओं से जूझना है। अच्छी खासी बारिश हो चुकी है,लेकिन सुबह सवेरे नल के इंतजार में जाग रहे लोगों को जब माइक से नल नहीं आने की घोषणा सुनाई देती है,तब लोगों को बजट नहीं,बजट पेश करने वाले और उस पर बहस करने वाले याद आते है। उन्हे याद आता है कि चुनाव के वक्त कितनी मिन्नतें करके वोट मांगे गए थे,कितने सुहाने सपने दिखाए गए थे।
करीब पांच साल पहले जब मैडम जी फूल छाप के टिकट से वोट मांगने आई थी,लोगों को उम्मीदे थी कि लोगों का इलाज करने वाली मैडम जी शहर की बिमारियों का भी इलाज करेंगी। लेकिन हुआ सब कुछ उल्टा पुल्टा। जिससे इलाज की उम्मीदे थी,उसी ने बीमारियां बढा दी। पूरे पांच साल इंतजार में ही गुजर गए कि शायद अब कुछ अच्छा होगा,लेकिन अच्छा होने का समय न आना था और ना आया।
उम्मीदे तो यह भी कि मैडम जी के आने के बाद नरक निगम की तस्वीर बदलेगी और कुछ काम तो बिना लिए दिए भी हो जाएगें। लेकिन यह उम्मीद भी गलत साबित हुई। मैडम जी ने इस मामले में भी कोई कसर नहीं छोडी। उन्होने अपने सारे पूर्ववर्तियों को इस मामले में पीछे छोड दिया। पहले वाले तो थोडी बहुत निभा भी लेते थे,लेकिन मैडम जी ने किसी को भी नहीं निभाया।
किसी ने ठीक ही कहा कि उनकी सबसे बडी उपलब्धि यही है कि उन्होने अपना कार्यकाल पूरा कर लिया। पांच सालों में उनके पास कहने के लिए कुछ भी नहीं था,इसलिए उन्होने कभी खबरचियों को भी नहीं बुलाया। शहर के लिए कोई विजन होता,तो बताते…।
और अब आखरी बजट भी आ गया। जो अफसरों ने बना दिया,मानना तो उसी को था,लेकिन अपना असर दिखाने के नाम पर दस लाख रु. के अतिरिक्त काम जोड दिए। इन पर अमल होगा या नहीं और होगा तो कब होगा? ऐसी बातों की चिंता उन्होने पिछले साढे चार सालों में नहीं की,तो अब आखरी वक्त में चिंता क्यों करेंगे?
चिंता में तो फूल छाप पार्टी के लोग डूबे हुए है। पहले सूबे की सत्ता से बाहर हो गए,अब मैडम जी की बदौलत शहर सरकार से भी बाहर होने के आसार बन रहे हैं। मैडम जी ने कुछ किया होता,तो वोट मांगने में आसानी होती,लेकिन मैडम जी ने करने के नाम पर बस इतना किया कि सारे कामों के भाव बढा दिए। अब फूल छाप वाले क्या करेंगे? शहर सरकार के चुनाव में मोदी जी तो आने से रहे। मामा जी भी सदस्यता की रसीदें काटने में व्यस्त है। वोट मांगने अब कौन जाएगा और कोई जाएगा भी, तो वोट किस मुंह से मांगेगा?
स्टेशन रोड नहीं,अब पैलेस रोड…..
पिछले कार्यकाल में उन्होने विकास पुरुष की उपाधि हासिल कर ली थी। उनके पास दिखाने के लिए कई सारे काम थे। फोरलेन से लेकर मेडीकल कालेज तक सब कुछ उन्होने अपने खाते में लिखवा लिया था और इसी के दम पर विकास पुरुष की उपाधि भी मिल गई थी। लेकिन इस बार मामला गडबडा गया है। सूबे की सत्ता अब पंजा पार्टी के हाथों में और फूल छाप वाले अब विपक्ष में है। विपक्ष की राजनीति करने वालों को सडक़ पर उतर कर संघर्ष करना पडता है। यही वे नहीं कर पाते। कडी धूप में सडक़ पर नारेबाजी करना उनके बस की बात नहीं। पहले की बात और थी। पहले वाले नेता को तो पूरे समय यही करना पडता था। इसलिए वे इन कामों के विशेषज्ञ हो गए थे। किसी कार्यकर्ता का विवाद हो या जनहित का कोई मुद्दा,उन्हे सडक़ पर आने में देर नहीं लगती थी। वे तो इंतजार में ही रहा करते थे कि कब मौका मिले और कब वे अपना जौहर दिखाएं। लेकिन अब जमाना बदल गया है। इधर फूल छाप विपक्षी पार्टी बनी और उधर पुलसियों ने फूल छाप से जुडे छात्र नेताओं पर डंडे बरसा दिए। बस फिर क्या था,पुराने नेता को मौका मिल गया थाने पर जाकर जोर आजमाईश करने का। जमकर आंदोलन हुआ। उनके विडीयो भी खूब वायरल हुए। विकास पुरुष के लिए ऐसा करना आसान नहीं है। कहां तो वे मंत्री बनने के सपने संजो रहे थे और कहां ये जुलूस प्रदर्शनों की राजनीति। फूल छाप वाले भी कहने लगे है कि अब,जब तक सरकार नहीं बनती तब तक उनसे कोई उम्मीद नहीं की जा सकती। ऐसा कोई काम हो तो स्टेशन रोड नहीं पैलेस रोड ही जाना पडेगा।
पिंक जिला रतलाम……
चुनाव के दिनों में निर्वाचन आयोग ने कुछ मतदान केन्द्रों को पिंक बूथ बनाया था। इन मतदान केन्द्रों पर अधिकारी से लेकर कर्मचारी तक सभी कामों पर महिलाओं को तैनात किया गया था। निर्वाचन आयोग ने महिला सशक्तिकरण को दर्शाने के लिए यह व्यवस्था की थी। इन पिंक बूथों पर निर्वाचन का काम सुव्यवस्थित ढंग से संपन्न हुआ था। लगता है निर्वाचन आयोग से प्रेरित होकर पिंक बूथ की ही तरह अब रतलाम भी पिंक जिला बन गया है। इन दिनों से डीएम,एडीएम और एसडीएम,जिला प्रशासन के सर्वाधिक महत्वपूर्ण तीनों पदों पर महिला अधिकारी तैनात है। प्रथम नागरिक भी महिला है। ऐसे में अब जिले को पिंक जिला कहने में क्या हर्ज है?