राग रतलामी/जब तक रहेगा रिपोर्टो का इंतजार,तब तक कोरोना का खतरा रहेगा बरकरार
-तुषार कोठारी
रतलाम। कोरोना का कहर उतार पर बताया जा रहा है,लेकिन रतलाम के लिए यह कितना सही है,कोई नहीं जानता। वैसे तो सौलह में से ग्यारह लोग कोरोना योद्धा का खिताब हासिल कर घरों को लौट गए हैैं और अब केवल पांच संक्रमित ही बचे हैैं,लेकिन खतरा अब भी टला नहीं है।
लोगों की नजरें हर शाम को जारी होने वाले मेडीकल बुलेटिन पर लगी रहती है और सरकारी इंतजामिया बुलेटिन को इस तरह जारी करता है,जैसे सबकुछ ठीक हो गया हो। लेकिन बात इतनी सीधी नहीं है। कोरोना काल को चालीस दिन गुजर गए हैैं लेकिन अब भी हर दिन कम से कम डेढ सौ रिपोर्टों का इंतजार किया जाता है।
जिले से हर दिन बडी तादाद में कोरोना संदिग्धों के सैैम्पल जांच के लिए भेजे जा रहे हैैं,लेकिन उनकी जांच रिपोर्ट धीमी गति से आ रही है। लाक डाउन का वक्त गुजरता जा रहा है,लेकिन ब्लड रिपोर्ट्स का इंतजार लम्बा होता जा रहा है। शहर में पहले सिर्फ दो इलाके कन्टेनमेन्ट हुए थे,लेकिन फिर दो नए इलाके भी इसमें जुड गए। कन्टेनमेन्ट का आंकडा चार पर ही नहीं रुका। कुछ दिन गुजरे तो और दो नए इलाके इसमें जुड गए। अब शहर में कुल छ: इलाके कन्टेनमेन्ट हो गए है।
दूसरे इलाकों में रहने वालों को जब पता चलता है कि कन्टेनमेन्ट इलाकों में रहने वाले लोग रोक के बावजूद किसी ना किसी तरीके से बाहर निकल आ रहे हैैं तो उनका डर और बढ जाता है।
हाल ही में मिले कोरोना पाजिटिव का इलाज करने वाले कुछ डाक्टरों के होम क्वारन्टीन होने की खबर ने भी लोगों को डराया है। डर इस बात का भी है कि लाक डाउन के आखरी दिनों में नए नए संक्रमित सामने आने से लाकडाउन और लम्बे समय तक चलता रहेगा। खुली हवा में सांस लेने का मौका कब मिलेगा यह कोई नहीं जानता। अब राहत बस इसी से है कि लाक डाउन में कुछ ढील मिलने वाली है। पान गुटके और मदिरा के शौकीनों के लिए भी अच्छी खबरें आ गई है।
संभाग के बडे अफसर भी शहर का मुआयना करके जा चुके हैैं लेकिन कोई भी ये बताने को तैयार नहीं है कि अभी कितने दिनों तक लाकडाउन की बन्दिशे झेलना पडेगी। कुल मिलाकर शहर पर अभी भी कोरोना का खतरा बरकरार है। जब तक शहर में कोरोना की जांच शुरु नहीं हो जाती,रिपोर्टो का इंतजार जरुरी है और जब तक रिपोर्टो का इंतजार जारी रहेगा,खतरा भी तब तक बना रहेगा।
बदल गया ïवक्त…..
वक्त ही बदला है,वरना ऐसा कतई नहीं हो सकता था,जो हो गया। एमएलए साहब को क्रिकेट खेलना कभी इतना भारी नहीं पड सकता था,कि क्रिकेट खेलने के लिए केस बन जाए। पुराना वक्त होता तो क्रिकेट खेलने की खबरें अखबारों की सुर्खियों में रहती,लेकिन नए वक्त में क्रिकेट खेलने पर केस बनने की खबरें छाई हुई है।
्रवो वक्त सूबे में पंजा पार्टी की सरकार का था। पंजा पार्टी की सरकार थी,इसलिए पंजा पार्टी के एमएलए साहब सरकार की नाक हुआ करते थे। इधर कोरोना का कहर छाया और उधर पंजा पार्टी पर भी गाज गिर गई। सूबे में पंजा पार्टी को धक्का देकर फूल छाप ने कब्जा जमा लिया। फूल छाप के आते ही पंजा पार्टी वालों का बुरा वक्त शुरु हो गया। जो अफसर कल तक हर काम पूछ पूछ कर किया करते थे,वे ही अब फूल छाप वालों के कहने पर केस बनवा रहे है।
इंतेहा हो गई इंतजार की….
दो हफ्ते का वक्त कम नहीं होता। और अगर दो हफ्तों तक इंतजार करना पड जाए तो यह वक्त और ज्यादा लम्बा लगने लगता है। मैडम जी ने जब से सुना था कि सरकार कमेटी बना रही है,जिसमें पहले वाले प्रथम नागरिकों की अध्यक्षता होगी,तभी से उनका इंतजार शुरु हो गया था। लेकिन अब तो उन्हे वही गाना याद आ रहा है….इंतेहा हो गई इंतजार की….। जानकार लोगों का कहना है कि अब इस इंतजार के खत्म होने की कोई उम्मीद भी नहीं है। मामा ने जल्दबाजी में बोल दिया था,लेकिन बाद में फूल छाप वालों ने ही इस पर नाराजगी जता दी,तो मामा जी ने इस किस्से को ही छोड दिया। इसलिए अब ये इंतजार खत्म नहीं होने वाला।