राग रतलामी/ छोटे भूरिया को पटखनी दे चुके डामोर को ही मिली बडे भूरिया को हराने की ज़िम्मेदारी ,बंटाधार युग का पुनरागमन
-तुषार कोठारी
रतलाम । पूरे मुल्क में सियासत का पारा सूरज की गर्मी से कांपिटिशन करता हुआ नजर आ रहा है। जैसे जैसे सूरज की गर्मी में तेजी आ रही है,वैसे वैसे राजनीति का तापमान भी बढता जा रहा है। लेकिन ये सारी गरमाहट कल तक केवल बुध्दुबक्से और अखबारों में ही नजर आ रही थी। जमीन पर कहीं कोई गरमाहट नजर नहीं आ रही थी। जिन स्थानों पर उममीदवार तय हो गए है,वहां तो राजनीति धीरे धीरे जोर पकडने लगी है,लेकिन कल तक रतलाम धार जैसी जगहों पर ऐसा लग ही नहीं रहा था कि चुनाव होने वाले है। रतलाम झाबुआ सीट पर पंजा पार्टी ने पहली ही लिस्ट में भूरिया जी को घोषित कर दिया था,लेकिन फूल छाप वालों को ऐसा कोई मिल ही नहीं रहा था,जो उन्हे टक्कर दे सके। इसका नतीजा यह था कि राजनीति का माहौल ही नहीं बन पा रहा था। फूल छाप वाले जयस पर ध्यान लगाए बैठे थे। उन्हे लग रहा था कि जयस से सैटिंग हो गई तो नैया आसानी से पार हो जाएगी। जयस वाले दोनो हाथों में लड्डू पकडे बैठे थे। पहले पंजा पार्टी ने उन्हे ठेंगा दिखाया। जब पंजा पार्टी ने जयस को ठेंगा दिखा दिया तो लगा था कि अब फूलछाप वालों की सैटिंग हो ही जाएगी। इसी उम्मीद में सरकारी अस्पताल के एक डाक्टर ने कई सारें सपने भी संजो लिए थे। लेकिन आखिरकार फूल छाप वालों की भी समझ में आ गया कि जयस के चक्कर में पडने से अच्छा है कि अपने ही माल पर भरोसा किया जाए।
सरकारी इंजीनियर रहे डामोर जी लंबे समय से फूल छाप के टिकट की जुगाड में थे। उनका दांव तो लोकसभा पर ही था,लेकिन विधानसभा चुनाव में भी उन्होने तीन तीन जगहों पर दावेदारी लगा के रखी थी। फूलछाप वालों ने झाबुआ सीट पर उन्हे टिकट दे दिया था और डामोर जी ने छोटे भूरिया को राजनीति के पहले ही मुकाबले में धूल चटा दी थी। बडे भूरिया जी लंबे समय से छोटे भूरिया को अपनी विरासत सौंपने की तैयारी में लगे हुए थे। इसलिए पूरे संसदीय इलाके में उन्होने छोटे भूरिया को सक्रिय कर के रखा था। विधानसभा चुनाव में वे छोटे भूरिया के लिए टिकट भी ले ही आए थे,लेकिन जीत हासिल करना टिकट लाने से कहीं कठिन होता है। छोटे भूरिया जीत हासिल नहीं कर पाए। छोटे भूरिया की हार बडे भूरिया जी के लिए भी जोर का झटका था,लेकिन पंजा पार्टी में उनकी हैसियत काफी बडी और काफी पुरानी है। इसलिए छोटे भूरिया की हार के बावजूद पंजा पार्टी ने उन्हे टिकट देने में कोई देरी नहीं की। अब चुनौती फूल छाप वालों के सामने थी,कि बडे भूरिया के सामने किसे अडाया जाए? चेहरे की तलाश में कई चेहरे सामने आए,इनमें छोटे भूरिया को हराने वाले डामोर जी का नाम भी आया। लेकिन फूल छाप ने नियम बनाकर रखा था कि जो विधायक है,उन्हे आम चुनाव में नहीं उतारा जाएगा। इसलिए डामोर जी का नाम पीछे हटता जा रहा था। दूसरी तरफ पंजा पार्टी के कई जानकारों का कहना था कि छोटे भूरिया को हराने वाले डामोर में ही बडे भूरिया जी को झटका देने की ताकत है। जब पंजा पार्टी के नेताओं का आकलन फूल छाप वालों के पास पंहुचा,तो उन्होने अपने ही बनाए नियम को तोड दिया और बडे भूरिया जी को झटका देने के लिए डामोर जी को उतार दिया। अब तो पंजा पार्टी वाले भी कह रहे है कि मुकाबला मजेदार होगा। फूल छाप पार्टी में लंबे समय से एक मान्यता चली आ रही थी कि मामांचल यानी झाबुआ सीट अगर जीत गए तो समझों कि सरकार भी पूरे बहुमत की बनेगी। यह बात 1977 में सही साबित हुई। फिर 2014 में भी यही साबित हुआ। आजादी के बाद पहली बार 2014 ही वह चुनाव था,जब मामांचल पर फूल छाप का कब्जा हुआ और यही वह साल भी था,जब पूरे देश पर फूल छाप ने पूरे बहुमत से सरकार बनाई। अब देखना है कि छोटे भूरिया को पटखनी दे चुके डामोर जी बडे भूरिया को पटखनी दे पाते है या नहीं……।
बंटाधार युग का पुनरागमन
पन्द्रह साल पहले सूबे में दिग्गी राजा का राज हुआ करता था और उस युग को बंटाधार युग की संज्ञा दी जाती थी। उस जमाने में पूरे पूरे दिन बिजली गुल रहा करती थी,रात रात भर भी गुल रहा करती थी। राजा कहता था अंधेरा कायम रहे। राजा अंधेरे को कायम रखना चाहता था, लेकिन सूबे की रियाया ऐसा नहीं चाहती थी,इसलिए 2003 में जनता ने मि.बंटाधार के नाम से प्रसिध्द राजा को हटा कर फूल छाप वालों को राज सौंप दिया। फूल छाप वालों ने दो ढाई साल के बाद मामा को राज सौंपा और मामा के राज में सूबे की जनता बिजली गुल होने जैसी समस्याओं को पूरी तरह भूल गई। मामा के राज में सडक़ें अच्छी हो गई,अंधेरे का राज समाप्त हो गया। पहले खरीदे गए इन्वर्टर आदि धूल खाने लग गए। पन्द्रह सालों में सूबे के लोग नए तरीके से जीवन जीने लग गए। अब पन्द्रह साल बाद मामा की बिदाई हो चुकी है और नाथ जी कुर्सी पर काबिज है। लेकिन अब धीरे धीरे लोगों को फिर से बंटाधार युग की वापसी महसूस होने लगी है। बिजली जो कभी जाती नहीं थी,अब दिन में कई कई बार जाने लगी है। बार बार बिजली जाने की वजह से कई उपकरण खराब होने लगे है। हद तो शनिवार को हो गई,जब जिला अस्पताल की मर्चुरी में रात भर बिजली गुल हो गई। नतीजा यह हुआ कि एक शव फूल कर बुरी तरह सडने लगा। मृतक के परिजनों ने जब इसे देखा तो जमकर हंगामा हुआ। पूरे मामले की जड में बिजली ही निकली,जो आजकल बार बार जाने लगी है। इसी से लोगों को बंटाधार युग के वापस लौटने का खतरा महसूस होने लगा है।