May 20, 2024

राग रतलामी- कोरोना के कहर में मोटी कमाई का जरिया बनी कोरोना की दवा, आदिवासियों के महकमे में जारी है स्टेट्स वार

-तुषार कोठारी

रतलाम। कोरोना का कहर सुरसा के मुंह की तरह बढता जा रहा है। कोरोना की रफ्तार काबू से बाहर होती जा रही है और हर दिन तीन चार दर्जन नए कोरोना मरीज सामने आ रहे हैं। कोरोना के शुरुआती दौर में कोरोना से जितना डर पनपा था,अब उससे कहीं ज्यादा डर फैला हुआ है। आम आदमी के लिए कोरोना का डर जहीं कठिनाईयां खडी कर रहा है,वहीं कुछ तबके ऐसे भी है,जिनके के लिए कोरोना का कहर कमाई का नया जरिया बन गया है। इसमें सभी तरह के कुछ कुछ लोग शामिल है। कहीं सरकारी अफसर कोरोना के बजट की मलाई उडा रहे हैं.तो कुछेक डाक्टर और अस्पताल भी कोरोना की कमाई काट रहे है। दवा वालों के लिए भी कोरोना काल अच्छा मौका साबित हुआ है। शहर में कोरोना के इंजेक्शनों की कालाबाजारी का सिलसिला भी अच्छा चला। हांलाकि अब इस कालाबाजारी को रोकने के कुछ इंतजाम भी किए गए हैं,लेकिन ये कितने कारगर साबित होंगे यह अभी तय नहीं है।
कोरोना काल में सब तरह के उदाहरण देखने को मिले है। लोगों के सेवाभाव और दयालुता के नए नए कीर्तिमान गढे गए हैं तो वहीं कुछेक मामलों में मानवता को शर्मसार करने की घटनाएं भी सामने आई हैं। यह कहानी हर शहर हर कस्बे की है। जहां कई सारे लोग मानवता की सेवा करते दिखाई देते हैं तो कुछेक मानवता को शर्मसार करते नजर आते है।
कोरोना से निपटने के काम में आने वाले इंजेक्शन रेमेडीसिविर से भी कई दवा वालों को अच्छा फायदा हुआ। कोरोना के इंजेक्शनों की कीमतें भी अलग अलग कंपनी ने अलग रखी है। इनमें जमीन आसमान का अंतर है। एक कंपनी जहां अट्ठाईस सौ रु. में इंजेक्शन बेच रही है,तो कोई कंपनी साढे चार हजार में वही इंजेक्शन दे रही है। ये तो कंपनी की प्रिन्टेड एमआरपी का अंतर है। इंजेक्शन की कमी के नाम पर इसकी कीमत छपी हुई कीमत से कहीं अधिक वसूली जा रही थी।
शहर में जब कोरोना के इंजेक्शनों की कालाबाजारी की खबरें जोर पकडने लगी तो जिला इंतजामिया और दवा वालों की एसोसिशन ने इस पर अंकुश लगाने की योजना बनाई। उन्होने कुछ दवा दुकानों को इसके लिए अधिकृत किया कि वे सबसे कम कीमत वाले कोरोना के इंजेक्शन छपी हुई दर से भी कम कीमत पर बेचेंगे। इंजेक्शन बेचने वालों को इसका सारा रेकार्ड भी रखना होगा और यह सारी जानकारी दवाईयों का हिसाब किताब रखने वाले महकमे को भी देना होगी। इस योजना से उम्मीद जगी कि अब लोगों को दवा के लिए अधिक कीमत नहीं चुकाना पडेगी। ये योजना कितने लोगों को फायदा पंहुचा पाएगी यह सामने आना अभी बाकी है,लेकिन अब यह भी कहा जा रहा है कि इस योजना के कारण,अब दूसरे दुकानदारों ने कोरोना के इंजेक्शन रखना बन्द कर दिया है और इसका नतीजा यह हो रहा है कि जिसे इसकी तत्काल जरुरत है,उसे समय पर कोरोना के इंजेक्शन उपलब्ध नहीं हो पा रहे। कोरोना के गंभीर संक्रमण वाले मरीजों के लिए यही इंजेक्शन सबसे ज्यादा कारगर माना जा रहा है। ऐसे में इसकी सप्लाई सामान्य बनी रहना और मरीजों को समय पर उपलब्ध हो जाना बेहद जरुरी है। उम्मीद की जाए कि जिला इंतजामियां इस पर पूरी निगाह रखेगा और इस इंतजाम को चाकचौबन्द रखेगा,जिससे कि कोरोना के किसी भी मरीज को इस इंजेक्शन के अभाव में जान का खतरा ना झेलना पडे।

फूल छाप की राह पर चली पंजा पार्टी

दो बत्ती चौराहे पर जब भारत माता की जय और वन्दे मातरम के नारे लग रहे थे,तो सुनने वालों को लगा कि फूल छाप पार्टी वाले कोई प्रोग्राम कर रहे है। जब नजदीक जाकर देखा गया,तो पता चला कि ये फूल छाप वालों का नहीं पंजा पार्टी का प्रोग्राम है। तब जाकर लोगों को समझ में आया कि अब पंजा पार्टी भी फूल छाप की राह पर चल पडी है। पहले सुन्दरकाण्ड और बजरंग बली की जय जयकार की गई। अब वन्दे मातरम और भारत माता की जय के नारे लगाए जा रहे है। प्रोग्राम असल में पंजा पार्टी के जवानों का था,लेकिन उसमें बुजुर्ग पंजा पार्टी के नेता भी मौजूद थे। पंजा पार्टी के युवा तुर्को की टोटल तादाद से ज्यादा वर्दी वाले मौजूद थे। पंजा पार्टी वाले कोई सदबुध्दि हवन कर रहे थे। इस सदबुध्दि हवन से किसको सदबुध्दि मिलेगी यह तो सामने नहीं आया,लेकिन ये जरुर साफ होने लगा है कि फूल छाप की राह पर चलने से पंजा पार्टी में बरसों से सक्रिय रहने वाले चाचा लोग बेहद नाराज होने लगे है। उनका कहना है कि जब पंजा पार्टी भी फूल छाप की राह पर चलने लगी है,तो पंजा पार्टी में रहने से क्या फायदा..?

आदिवासियों के महकमे में स्टेट्स वार

अब तक तो ये माना जाता था कि सोशल मीडीया आमतौर पर नई पीढी के लोगों का शौक है,जिसमें रोजाना व्हाट्सएप का स्टेट्स बदलना और कमेन्ट्स को लाइक और शेयर करने जैसे शौक शामिल हुआ करते थे। जबकि बडी उम्र के लोगों,सरकारी कर्मचारियों और अफसरों के लिए सोशल मीडीया सूचनाओं के आदान प्रदान का जरिया हुआ करता था। लेकिन आदिवासियों वाले महकमे के बडे साहब ने इस धारणा को बदल दिया है। इन साहब को स्टेट्स स्टेट्स खेलने का बडा शौक है। हाल के दिनों में इस महकमे में साहब के व्हाट्सएप स्टेट्स बडी चर्चाओं में रहे हैं। साहब स्टेट्स बदल बदल कर अपने चहेते कर्मचारियों की जानकारी महकमे के लोगों से साझा कर रहे थे। पहले उन्होने स्टेट्स में लिखा कि उनका सपोर्ट चौधरी के साथ है,फिर उन्होने स्टे्टस बदला और लिखा कि अब उनका सपोर्ट मनीष के साथ है, फिर स्टेट्स बदला और लिखा मनीष भी गडबड है इसलिए उनका सपोर्ट भेरु को है। साहब के स्टेट्स बार बार बदलते रहे। इन तीन बन्दों के अलावा उन्होने महकमे के तमाम लोगों को गद्दार भी घोषित किया और बाकायदा महकमे वालों से कहा कि उनका स्टेट्स चोरी करले। महकमे के कारकूनों को साहब की आदत पता है। साहब के स्टेट्स को देखकर ही वे अपना काम करते है। साहब के स्टेट्स से उन्हे पता चल जाता है कि फिलहाल साहब की दलाली कौन कर रहा है? मजेदार बात यह है कि स्टेट्स स्टेट्स खेलने की आदत पर साहब को उनसे भी बडे साहबों की लताड भी कई बार मिल चुकी है। लेकिन साहब है कि मानते नहीं। साहब की हरकतों से नाराज महकमे के लोग अब उनके खिलाफ मोर्चा भी खोलने की तैयारी कर रहे हैं।

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