यदि नेताजी स्वतंत्र भारत में लौट आते तो….?
(23 जनवरी-सुभाष बोस जयन्ती पर विशेष)
-डॉ.डीएन पचौरी
इतिहास बनता है बनाया नहीं जाता। मानव के आदिकाल से किए गए कार्यकलापों का लेखा जोखा ही इतिहास है। मानव और पशु में सबसे बडा अन्तर यही है कि मानव का इतिहास होता है,पशु का नहीं। इतिहास को बदला नहीं जा सकता किन्तु मानव अपने विवेक और बुध्दि से ये कल्पना तो कर ही सकता है कि यदि ऐसा हुआ होता तो?या वैसा कुछ हुआ होता तो क्या होता? इसी तारतम्य में सोचा जाए कि नेताजी सुभाषचन्द्र बोस यदि स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद लौटकर भारत आ जाते तो….? नेताजी की अनुपस्थिति ने भारतीय जनमानस को कितना उद्वेलित किया था,इस बात का पता इसी से चलता है कि उनकी मृत्यु की सूचना के तीन दशक बाद तक जहां कहीं खबर फैलती कि नेताजी प्रकट होने वाले है,तो हजारों की भीड वहां एकत्रित हो जाती और एक बार नहीं कई बार ऐसा हुआ था। कभी कानपुर,तो कभी लखनऊ तो कभी दिल्ली में ऐसी अफवाहे उडती रही किन्तु कथित तौर पर उनका देहावसान तो 18 अगस्त 1945 को ताइवान में विमान दर्घटना में हो चुका था।
यदि नेताजी 1950 के पूर्व लौटकर भारत आ जाते तो भारत में वर्तमान संविधान लागू नहीं होता। नेताजी के आने पर कट्टर गांधीवादी पटेल के साथ जुड जाते किन्तु कुछ असन्तुष्ट कांग्रेसी तथा कांग्रेस विरोधी ताकते जिनका कोई नेता नहीं था नेताजी की छत्रछाया में आ जाते। अत: पटेल ग्रुप और नेताजी ग्रुप दो बडे संगठन होते तथा नेहरु जी हाशिये पर चले जाते। ये बात निर्विवाद सत्य है कि नेताजी कट्टर राष्ट्रवादी और महात्मा गांधी के विचारों के विरुध्द चलने वाले,शायद जिन्ना के बाद दूसरे भारतीय थे। बोस का विचार था कि बिना बल प्रयोग किए केवल अंहिसा से देश को आजादी प्राप्त नहीं होगी। कुछ कांग्रेसी भी मन ही मन नेताजी के विचारों से सहमत थे,इसीलिए 1939 में कांग्रेस अधिवेशन में जब सुभाषचन्द्र बोस को अध्यक्ष बनाने की बात आई तो गांधी ने बोस के विरुध्द पट्टाभि सीतारमैया को खडा किया किन्तु मुथु राम लिंगम थेवर ने बोस का पक्ष लिया और पूरे दक्षिण भारत का समर्थन बोस को मिला जिससे उन्होने पूर्ण बहुमत के साथ गांधी जी के प्रत्याशी को हराया। किन्तु बोस पार्टी में किसी प्रकार का टकराव नहीं चाहते थे। अत: उन्होने अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था। नेहरु जी को तो पटेल ने ही 13 विरुध्द 2 वोट से 1946 में हरा दिया था अत: नेताजी लौटकर आते तो नेहरु जी को गद्दी नहीं मिलती। उनका हाशिये पर आना तय था।
रही संविधान की बात तो नेताजी यदि पूर्ण बहुमत से 1950 के पूर्व राजनीति में आते तो भारत में प्रजातंत्र लागू नहीं होता। उनका कहना था कि सदियों से अशिक्षा,अज्ञान,अंधविश्वास,भूख,गरीबी,
बेरोजगारी तथा दयनीय दरिद्रता और परतंत्रता की बेडियों में जकडे भारत की दशा को प्रजातंत्र में नहीं सुधारा जा सकता। वो सामाजिक असमानता को दूर करने के लिए रुस जैसी समाजवादी संरचना के पक्षधर थे।
सन 1950 के बाद जब भारत का संविधान लागू हो चुका था और सरदार पटेल इस संसार से जा चुके थे,यदि उस समय नेताजी भारत आ जाते तो क्या होता..? 1952 के आम चुनाव में पंडित नेहरु को वे कडी टक्कर देते और शायद उन्हे हराकर गैर कांग्रेसी सरकार के प्रथम प्रधानमंत्री बनने का गौरव प्राप्त करते। नेहरु जी बोस को अपना सबसे बडा राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी मानते थे। यही कारण था कि 1941 में नेहरु जी ने कहा था कि यदि बोस सेना लेकर भारत आया तो मै पहला आदमी होउंगा तो तलवार लेकर उसका मुकाबला करुंगा।
जो भी होता,किन्तु बोस अब तक के प्रधानमंत्रियों में सर्वश्रेष्ठ प्रधानमंत्री सिध्द होते। इसके ३ कारण है। पहला बोस अत्यन्त कुशाग्रबुध्दि वाले व्यक्ति थे क्योकि वे भारतीय प्रशासनिक सेवा जो उस समय आईसीएस कहलाती थी,में चयनित होने वाले 6 प्रत्याशियों में से चौथे नम्बर पर थे। इनकी परीक्षा इग्लैण्ड में होती थी और सुभाष बोस इसमें सफल होने वाले शायद दूसरे भारतीय थे। दूसरा उनका गुण उनकी वीरता और शौर्य। अंग्रेजों की कैद से भागकर दूसरे देशों रुस,जर्मनी,जापान जाकर अंग्रेजों के विरुध्द जनमत तैयार करना तथा जापान में आई.एन.ए.(इण्डियन नेशनल आर्मी) या आजाद हिन्द फौज तैयार करना उसी पराक्रमी महापुरुष के वश की बात थी। अब तक कोई ऐसा प्रधानमंत्री नहीं आया जो स्वयं सेना का कमाण्डर रहा हो जैसे नेताजी रहे थे।
तीसरा उनका गुण होता,उनकी आयु जो स्वतंत्रता प्राप्ति के समय 50 वर्ष थी और उनमें निर्णय लेने की अद्भुत क्षमता होती अन्यथा भारत के अधिकांश प्रधानमंत्री तो बुजुर्ग ही रहे है,जो कोई भी कठोर निर्णय लेने में अक्षम रहे है। वर्तमान प्रधानमंत्री के कार्यकाल को देखकर तो लगता है कि
देश में इस पद की आवश्यकता ही नहीं है और ये देश बिना प्रधानमंत्री के ही चल सकता है। सुभाषचन्द्र बोस भारत की राजनीति के जाज्वल्यमान सितारे सिध्द होते और अपने त्रिगुण उचित आयु में सफल मार्गदर्शन,पराक्रम और शौर्य तथा बुध्दि और सैन्य संचालन के अनुभव से हो सकता है कि पाकिस्तान पर विजय प्राप्त कर अखण्ड भारत का निर्माण कर चुके होते। कुछ भी हो उनकी उपस्थिति से देश एक नई दिशा की ओर चलता किन्तु नियती के आगे किसी की नहीं चलती।