November 24, 2024

मंदिर में नहीं जा सकते दलित, पर चढ़ावे से कोई परहेज नहीं

इंदौर 23 नवम्बर(इ खबरटुडे)।21वीं सदी के इंदौर के पास एक गांव में सवर्णों और दलितों की शव यात्राओं के लिए अलग-अलग रास्ते। इंदौर के देपालपुर के दौलताबाद गांव का एक राम मंदिर भी इसी तरह के भेदभाव से ग्रस्त है। दलित लोग मंदिर में नहीं आ सकते…। यह बात तो पुरानी हो चली है। इतने समय में समाज काफी बदला, लेकिन लोगों की मानसिकता नहीं। राम मंदिर में दलितों के जाने पर तो रोक है, लेकिन उनकी दक्षिणा से परहेज नहीं है।

यह देपालपुर विधानसभा के दौलताबाद गांव का राम मंदिर है। इस मंदिर के साइड में लकड़ी का एक गेट लगा हुआ है, जहां से सिर्फ सवर्णों को जाने की इजाजत है। दलित सिर्फ दूर से भगवान के दर्शन कर सकता है। यदि वह दान-दक्षिणा चढ़ाना चाहता है तो सामने लगी जाली से चढ़ा सकता है। कुछ साल पहले ही गांव के अंबाराम के यहां ब्याह हुआ। बहू-बेटे ने मंदिर में मत्था टेकना चाहा, लेकिन उसे पीट दिया गया। तब से दलितों के लिए यह मंदिर बंद हो गया।

बेटमा से देपालपुर की तरफ जाने वाले 7 किलोमीटर दूरी पर बसा यह गांव राजपूत और धाकड़ बहुल है। यहां दलितों के दो अलग-अलग मोहल्ले हैं। दोनों में कोई विकास नहीं है। प्रशासन आज तक इनके घरों में शौचालय तक का निर्माण नहीं करा पाया। सवर्ण बहुल गांव होने से दलितों की रोजी-रोटी भी इन्हीं के काम धंधों पर टिकी है। इसलिए भी कोई इस सामाजिक कुरीति के खिलाफ आवाज नहीं उठा पाता। हालांकि अब कुछ ग्रामीण सुरेश, भगवान, मांगीलाल और अन्य आगे आना चाहते हैं और आवाज भी उठाने लगे हैं।

राम आखिर सवर्णों के ही क्यों ?

हमारे इलाकों में दलितों के साथ लगातार अन्याय हो रहा है। हमें राम मंदिर में जाने ही नहीं दिया जाता, जबकि सवर्णों के लिए यहां जाने के लिए खुली छूट है। राम सिर्फ सवर्णों के लिए ही बने हैं क्या? मैंने कई बार कई जगह शिकायत की, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। विधायक भी इस ओर पहल नहीं करते। दौलताबाद और सेजवानी दोनों गावों में ऐसे हालात हैं। -पोप सिंह मालवीय, जनपद सदस्य और प्रदेश सचिव, बलाई समाज संगठन के प्रदेश सचिव

पहले तो और भी कड़े नियम थे

दलितों के खिलाफ ये कुरीतियां सदियों से चली आ रही हैं। अभी भी गांव वाले इसे बंद नहीं करते। पूरा गांव ऐसा भेदभाव करता है। मैं, क्या कहूं। पहले तो और भी कड़े नियम थे। अब तो हमने कई प्रथाएं बंद कर दी हैं। वैसे मंदिर में दलितों का जाना गांव वालों ने बंद कर रखा है। उनकी मर्जी से ही यह खुल पाएगा। मैं अकेला भी कुछ नहीं कर सकता। – दिनेश धाकड़, पूर्व सरपंच और धाकड़ समाज युुवा नेता

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