November 15, 2024

भोजनानन्दी नहीं, भजनानन्दी बनो – लोकसन्तश्री

रतलाम 17 नवम्बर(इ खबरटुडे)। तन के लिए भोजन जरुरी है, वैसे ही मन की शुद्धि व शांति के लिए भजन करना जरूरी है । भोजन के लिए हम तैयार रहते हैं लेकिन भजन में कमजोर पडते हैं । भजन में जो डूब जाते हैं, उन्हें भोजन भी याद नहीं आता है । भजन का आस्वाद भोजन से भी अधिक सुन्दर होता है । भोजन की आसक्तियों का असर तन और मन पर पड़ता है, अत: भोजन पर नियंत्रण करते हुए भजन में ही मन को लगाना चाहिए। भोजनानन्दी नहीं, भजनानन्दी बनने से भवसागर से नैय्या पार होगी।
यह बात लोकसन्त, आचार्य, गच्छाधिपति श्रीमद् विजय जयन्तसेन सूरीश्वरजी म.सा. ने नामली से सेमलिया तीर्थ की चैत्य परिपाटी के आयोजन में तीर्थ प्रवेश पश्चात आशीर्वचन में कही। चैत्य परिपाटी का आयोजन सेमलिया निवासी मांगीलाल कोठारी परिवार द्वारा किया गया। इसमें बैण्डबाजे, घोड़े, रथ आदि के साथ कई गुरुभक्त शामिल हुए। सेमलिया तीर्थ में प्रवेश पश्चात सामूहित चैत्यवन्दन का आयोजन हुआ। तत्पश्चात श्रद्धालुओं को सम्बोधित करते हुए लोकसन्तश्री ने कहा कि इस तीर्थ में वे पूर्व में भी पांच बार आ चुके हैं। तीर्थ के जीर्णोद्धार में अनेक पुण्यशालियों को प्रेरणा देकर लाभ दिलाया है। कोठारी परिवार ने चैत्य परिपाटी का सुन्दर आयोजन कर सभी भक्तों को तीर्थ यार्ता करने का लाभ लेकर पुण्योपार्जन किया है। लोकसन्तश्री मुनिमण्डल व साध्वीवृन्द के साथ सतत् विहार कर रहे हैं । वे 18 नवम्बर को सरसी में मंगल प्रवेश करेंगे । उनकी निश्रा में 19 नवम्बर को सरसी में श्री कुंथुनाथ जिनालय की प्राण प्रतिष्ठा का महोत्सव आयोजित किया जाएगा।

सम्पत्ति नहीं, समय भी होता है दो नम्बर का – मुनिराजश्री
मुनिराजश्री निपुणरत्न विजयजी म.सा. ने सेमलिया तीर्थ में श्रद्धालुओं को सम्बोधन में कहा कि दुनिया में सम्पत्ति के लिए 1 नं. व 2 नं. की चर्चा सर्वत्र होती है, लेकिन ज्ञानियों के मुताबिक जो समय परमात्मा की पूजा, भक्ति, गुरुसेवा तथा धर्म-आराधना में लगता है, वह 1 नं. का होता है और संसार की पापमय प्रवृत्तियों में लगने वाला समय 2 नं. का है। 2 नं. की सम्पत्ति जैसे वर्तमान में चिन्ता का विषय बन गई है, वैसे ही 2 नं. का समय भी कष्ट दे सकता है । उन्होंने कहा कि कैंसर होने पर जैसे व्यसन, शुगर आने पर मिठाई छूट जाती है, वैसे ही तीर्थ भूमि पर आने पर बुराई का त्याग करने की प्रवृत्ति होनी चाहिए। कोठारी परिवार ने यह आयोजन कर तीर्थ भक्ति, संघ भक्ति, गुरुभक्ति तथा जन्मभूमि का ऋण अदा करने का अनुकरणीय कार्य किया है।
99 दिवसीय तपस्या का पारणा –
लोकसन्तश्री की निश्रा में चैत्य परिपाटी निकलने से पूर्व नामली में सुबह नूतन जिनालय में द्वारोद्घाटन किया गया। इसके बाद लोकसन्तश्री ने 11 अठाई की 99 दिवसीय तपस्या करने वाली इन्दुबाला-मुकेश कुमार चत्तर के निवास पर पहुंचकर उन्हें वासक्षेप के बाद मांगलिक सुनाई । लोकसन्तश्री से प्रत्याख्यान लेने के बाद श्रीमती चत्तर ने पारणा किया । मुनिराजश्री निपुणरत्न विजयजी म.सा. ने कहा कि इन्दुबेन की तपस्या में सफलता में गुरुकृपा एवं समर्पण भाव की विशेष भूमिका रही है। गुरुकृपा से बडे कार्य सहज हो जाते हैं । इस तपस्या ने नामली नगर की शान बढ़ाकर दूर-दूर तक कीर्ति फैला दी है

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