भाजपाइयों के लिए जरूरी नैतिक शिक्षा
प्रकाश भटनागर
नैतिक शिक्षा की कहानियां या उपदेश, बहुधा बिना प्रयोजन वाले मामले होते हैं। लिहाजा सुनाने वाला इन्हें सुना देता है और सुनने वाला इन्हें चुपचाप सुन लेता है। किंतु यदि किसी को नैतिकता का पाठ या उपदेश इनकी भारी जरूरत होने की गरज से सुनाया जाए तो मामला गंभीर हो जाता है। ऐसा ही कुछ मध्यप्रदेश के लिए होता दिखा। बुधवार को यूं तो नरेंद्र मोदी ने सभी राज्यों के भाजपा सांसदों तथा विधायकों से बात की। उन्हें ग्रामीण क्षेत्रों में जीवंत संपर्क स्थापित करने के लिए कहा। जमीन से जुडक़र काम करने की हिदायत दी। कम से कम मध्यप्रदेश के लिए तो यह बातें और इन पर अमल भाजपा के लिए आज की बड़ी जरूरत बन ही गई है।
अपनी पिछली भोपाल यात्रा में अमित शाह मंत्रियों, सांसदों, विधायकों तथा पार्टी पदाधिकारियों से कमोबेश वही सब कहकर गए थे, जो मोदी ने भी कहा है। यह बरसात के बाद की धूप की तरह साफ है कि शाह की नसीहतों पर न के बराबर अमल किया गया। वह भी तब, जबकि प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने हैं। शिवराज सरकार के सिर पर एंटी इंकम्बैंसी का खतरा मंडरा रहा है। सत्तारूढ़ दल चित्रकूट सहित कोलारस और मुंगावली के विधानसभा उपचुनाव हार चुका है। संगठन के स्तर पर अजीब सुस्ती हावी है। इसके बावजूद यदि शाह की बात एक कान से सुनकर दूसरे से निकाल दी गई, तो फिर मोदी के कल के संवाद को इस राज्य के हिसाब से अति आवश्यक की श्रेणी में ही रखा जा सकता है। तो यह मान लिया जाए कि शाह की बात नहीं सुनी गई, तो खुद मोदी को यह तरीका अपनाना पड़ गया!
केंद्र हो, चाहे मध्यप्रदेश, भाजपा के लिए यह समय ठीक नजर नहीं आता। खासतौर पर दलित उत्पीडऩ मामले में सुप्रीम कोर्ट के रुख ने उसके लिए खासी परेशानी खड़ी कर दी है। इसे लेकर हुए हिंसक विरोध ने हिंदू समाज को विभाजन की कगार पर ला दिया है। भाजपा ने जिस हिंदुत्व की दम पर बीता आम चुनाव जीता था, वही हिंदुत्व अब बिखरता दिख रहा है। तय है कि इसके चलते ही सांसदों तथा विधायकों को नए सिरे से जिम्मेदारी सौंपी जा रही हैं। हालांकि ये दोनो ही निर्वाचित जन प्रतिनिधि होते हैं। फिर भी यदि इन्हें जनता के बीच जाने के लिए कहना पड़े तो इसे विडंबना ही कहा जा सकता है। देश के अनछुए राज्यों तक अपनी पकड़ बनाने को बेचैन भाजपा को सोचना होगा कि अपने प्रभाव वाले इलाकों में सामने आ चुके प्रतिकूल हालात का किस तरह सामना किया जाए। इसका वही तरीका है, जो मोदी ने बताया है। जनता के बीच ढीले पड़ रहे संपर्क की लगाम फिर कसना। देश में तेजी से बढ़ रहे जनाधार के नशे से खुद को विरत रखते हुए जमीनी स्वरूप कायम रखना। भाजपा के लिए लम्बी रेस का घोड़ा बने रहने की गरज से यह सब किया जाना बहुत जरूरी हो गया है। वजह यह कि आने वाले आम चुनाव तक दलित जैसे अनेक मसले मोदी सरकार के सामने चुनौती बनकर आएंगे। ऐसे में जनता से सतत जुड़ाव ही काम आएगा। पार्टीजन इस बात को जितनी जल्दी समझकर अमल में लाएंगे, उनके लिए उतना ही अच्छा होगा। क्योंकि पार्टी ताकतवर है, तब ही तो वे खुद भी ताकतवर हो पाएंगे।