बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं से नवजात शिशु मृत्यु दर में भारी कमी
संस्थागत प्रसव में 54.6 प्रतिशत की वृद्धि
रतलाम,26 फरवरी (इ खबरटुडे)। प्रदेश में गर्भवती माताओं की बेहतर देखभाल से नवजात शिशु मृत्यु दर 51 से घटकर 32 हो गई है। प्रदेश में गर्भवती माताओं का गर्भधारण पता चलते ही पंजीयन कर नियमित स्वास्थ्य परीक्षण की व्यवस्था की गई है। राज्य में सामान्य एवं जोखिम वाली गर्भधात्री महिलाओं का सुरक्षित संस्थागत प्रसव कराया जा रहा है। नेशनल फेमिली हेल्थ सर्वे वर्ष 2005-06 के अनुसार 26.2 प्रतिशत प्रसव ही स्वास्थ्य संस्था में में कराये जाते थे। वर्ष 2015-16 के डाटा के अनुसार 80.8 प्रतिशत प्रसव स्वास्थ्य संस्था में कराये जा रहे हैं। सुरक्षित प्रसव के लिये प्रदेश में 1536 शासकीय प्रसव केन्द्र संचालित किये जा रहे हैं।
जननी-शिशु सुरक्षा कार्यक्रम के माध्यम से सुरक्षित प्रसव के लिये नि:शुल्क परिवहन, औषधि उपचार, ब्लड ट्रांसफ्यूजन एवं नि:शुल्क भोजन की व्यवस्था उपलब्ध करवायी जा रही है। जननी सुरक्षा योजना में ग्रामीण प्रसूताओं को 1400 और शहरी प्रसूताओं को 1000 रुपये की राशि प्रोत्साहन स्वरूप दी जा रही है। ग्राम एवं स्वास्थ्य संस्था स्तर पर महिलाओं और गर्भवती महिलाओं का परीक्षण कर उपचार करने के मकसद से वर्ष में एक बार महिला स्वास्थ्य शिविर भी आयोजित किये जा रहे हैं। वर्ष 2015-16 से अभी तक 58 लाख से अधिक महिलाओं को स्वास्थ्य शिविर के माध्यम से स्वास्थ्य सेवाएँ उपलब्ध करवाई गई हैं।
रोशनी क्लीनिक व्यवस्था में गर्भवती महिलाओं की प्रसव संबंधी तथा अन्य बीमारियों की जाँच एवं उपचार के लिये सप्ताह में प्रत्येक बुधवार जिला चिकित्सालय में गई है। इन क्लीनिक में रेफर महिलाओं को आवश्यक उपचार कर दवाइयाँ उपलब्ध करवाई जा रही हैं। वर्ष 2015-16 से अभी तक एक लाख 41 हजार महिलाओं का परीक्षण का उपचार किया गया है। प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व योजना में माह की 9 तारीख को सरकारी अस्पताल में प्रायवेट और सरकारी डॉक्टरों के माध्यम से गर्भवती महिलाओं की जाँच की जा रही है। अगस्त-2016 से नवम्बर-2017 तक 10 लाख 11 हजार 401 गर्भवती महिलाओं की विशेषज्ञ चिकित्सकों द्वारा प्रसवपूर्व जाँच करवाई गई है। न्यू बोर्न केयर इकाई नवजात शिशुओं की देखभाल करने के लिये 1536 प्रसव केन्द्रों पर संचालित की जा रही हैं।
नवजात शिशु गहन चिकित्सा इकाई- वर्ष 2008 में प्रदेश के गुना और शिवपुरी जिला अस्पताल में गंभीर रूप से बीमार एवं कम वर्तमान में 49 जिला अस्पताल और 5 मेडिकल कॉलेज में 54 इकाइयाँ संचालित हो रही हैं। इन इकाइयों में जन्म के समय शिशु को सांस लेने में होने वाली कठिनाई, पीलिया, अन्य गंभीर बीमारी के इलाज की व्यवस्था है। इन इकाईयों में वर्ष 2011-12 से जनवरी-2018 तक 4 लाख 96 हजार 326 नवजात शिशुओं का उपचार किया गया। प्रदेश के 60 चिन्हित सिविल अस्पताल एवं सामुदायिक स्वास्थ्य संस्था पर नवजात शिशु स्थिरीकरण इकाइयाँ संचालित हो रही हैं। अब तक इन इकाइयों में 76 हजार से अधिक नवजात शिशुओं को रखकर उनका उपचार किया गया है।
बारह वर्ष तक के बच्चों में अति गंभीर लक्षणों के होने पर उन्हें तत्काल उपचार उपलब्ध करवाने के उद्देश्य से बाल गहन चिकित्सा इकाई का निर्माण किया गया है। अभी यह इकाइयाँ 7 जिलों मुरैना, दतिया, शिवपुरी, गुना, रतलाम, भोपाल और छिन्दवाड़ा में चल रही हैं। वर्ष 2015-16 से जनवरी-2018 तक 29 हजार 868 बच्चों का इन इकाइयों में उपचार किया गया है।
पीडियाट्रिक-इमरजेंसी ट्रायऐज एवं ट्रीटमेंट यूनिट में गंभीर रूप से बीमार शिशु के चिकित्सालय आने पर लक्षणों के आधार पर उपचार किया जा रहा है। प्रदेश के सभी जिला चिकित्सालयों में यह यूनिट कार्य कर रही है। इन यूनिट में अब तक 22 हजार 163 बच्चों को भर्ती कर उनका उपचार किया गया। कुपोषित बच्चों को भर्ती कर उपचार करने के लिये पोषण पुनर्वास केन्द्र की स्थापना की गई है। इन केन्द्रों पर 5 वर्ष तक के कुपोषित बच्चों को 14 दिनों तक माता के साथ भर्ती कर उपचारित किये जाने की सुविधा है । इन केन्द्रों में वर्ष 2006-07 से दिसम्बर-2017 तक 5 लाख 97 हजार 860 कुपोषित बच्चों का उपचार किया गया। राष्ट्रीय बाल सुरक्षा कार्यक्रम में बच्चों को 4 प्रकार के वर्ग में विभाजित कर आवश्यक उपचार प्रदाय किया जा रहा है। वर्ष 2015-16 से नवम्बर-2017 तक 4 करोड़ 35 लाख बच्चों की स्क्रीनिंग की गई। इनमें से 25 लाख 67 हजार बच्चों को उपचारित किया गया। करीब 52 हजार 124 बच्चों की सर्जरी की गई।
चिकित्सा इकाइयों में नवजात शिशु के स्थिरीकरण के बाद परिजनों को नवजात शिशु की आवश्यक देखभाल के लिये दक्ष किया जाता है, जिससे शिशु की घर पर बेहतर तरीके से देखभाल की जा सके। जन्म से 28 दिन की अवधि नवजात शिशु के लिये अंत्यंत संवेदनशील समय है। इस अवधि में ही शिशुओं की मृत्यु की सर्वाधिक आशंका होती है। इस कार्यक्रम में संस्थागत प्रसव में 6 तथा घर पर हुए प्रसव पर आशा कार्यकर्ता द्वारा 7 बार भेंट की जाती हैं। आशा कार्यकर्ता द्वारा कम वजन के बच्चों के घर में निश्चित समय अवधि में भेंट की जाती है। भेंट के दौरान टीकाकरण, स्वच्छता, ओआरएस का प्रयोग, निमोनिया की पहचान, स्तनपान आदि के बारे में जानकारी साझा की जाती है।
प्रदेश में जन-समुदाय को बच्चों के स्वास्थ्य के प्रति जागरूक करने के मकसद से दस्तक अभियान वर्ष 2017 से शुरू किया गया है। इसमें 76 लाख 68 हजार 973 बच्चों की स्क्रीनिंग की गई। गंभीर कुपोषित 26 हजार 973 बच्चों की पहचान की गई। इसमें से 8 हजार 256 बच्चों को पोषण-पुनर्वास केन्द्र में भर्ती कर उपचारित किया गया। अति गंभीर खून की कमी से पीड़ित 1476 बच्चों के लिये रक्ताधन की व्यवस्था की गई। दस्त रोग के 27 हजार 162, निमोनिया के 6 हजार 509 और अन्य बीमारियों के 18 हजार 696 बच्चों में लक्षण पाये जाने पर उनका उपचार किया गया। प्रदेश में 9 माह से 5 वर्ष तक के 63 लाख 33 हजार बच्चों को विटामिन-ए की खुराक पिलाई गई। जन्मजात विकृति वाले 6 हजार 704 बच्चों की पहचान कर उनके उपचार की व्यवस्था की गई। राष्ट्रीय आयोडीन अल्पता विकास कार्यक्रम के अंतर्गत प्रभावित 14 जिलों में 13 लाख 31 हजार 920 परिवारों में नमक के नमूनों में आयोडीन की उपलब्धता की जाँच की गई।
इन सभी कार्यक्रमों के कारण वर्ष 2005 में शिशु मृत्यु दर 76 और नवजात शिशु मृत्यु दर 51 से घटकर वर्ष 2016 में क्रमश: 47 एवं 32 प्रति हजार जीवित जन्म रह गई है।