बिना सरकारी मदद के भी हो सकता है बदलाव
जनसहयोग से डिमापुर अस्पताल का कायाकल्प किया डिसी श्री योम्हे ने
डिमापुर(नागालैण्ड),14 जनवरी(तुषार कोठारी/इ खबरटुडे)। परिवर्तन सिर्फ सरकार के भरोसे रहकर नहीं लाया जा सकता। यदि कोई ठान लें कि व्यवस्थाओं में सुधार लाना है,तो बिना सरकारी सहयोग के भी व्यवस्थाओं में सुधार लाया जा सकता है। जरुरत है,तो सिर्फ इच्छाशक्ति की। ऐसा ही परिवर्तन कर दिखाया है डिमापुर के डिप्टी कमिश्नर (कलेक्टर) केसोन्यू योम्हे ने। उन्होने बिना सरकारी फण्ड के,केवल जनसहयोग से डिमापुर के सरकारी अस्पताल का कायाकल्प कर दिया है। सरकारी अस्पताल को सर्वसुविधायुक्त और सुन्दर बनाने का उनका सपना आज जनआन्दोलन का रुप ले चुका है। उनकी इस पहल में कई स्वयंसेवी संस्थाएं और अनेक नागरिक भी जुड चुके है।
इस पहल की शुरुआत डेढ साल पहले हुई थी। डिमापुर में डिसी बनकर आए श्री योम्हे ने जब यहां के सरकारी अस्पताल को देखा,तब उन्हे लगा कि यह अस्पताल खुद बीमार है और जब तक अस्पताल की सेहत नहीं सुधरेगी,तब तक मरीजों का अच्छा इलाज नहीं हो सकता। अस्पताल को व्यवस्थित करने के लिए धनराशि की जरुरत थी और सरकारी फण्ड पर्याप्त नहीं था। श्री योम्हे ने सबसे पहले अपने ही कार्यालय के अधिकारियों से सहयोग मांगा। श्री योम्हे के आव्हान पर डिसी कार्यालय के अनेक अधिकारी कर्मचारियों ने अस्पताल के कायाकल्प के इस अभियान में पहली आहूति डाली। इस माध्यम से करीब साठ हजार रु.की धनराशि एकत्रित हुई। इस राशि से सबसे पहले अस्पताल के रिसेप्शन को सुन्दर बनाया गया। जब भी कोई मरीज अस्पताल में आता है,सबसे पहले अस्पताल के रिसेप्शन पर ही पंहुचता है। यदि रिसेप्शन ही खराब होगा,तो मरीज या उसके साथ आए व्यक्ति का मन भी खराब हो जाएगा,लेकिन यदि रिसेप्शन सुन्दर और आकर्षक होगा,तो अस्पताल में आने वाले का विश्वास अस्पताल के प्रति बढेगा और अच्छे उपचार की यही पहली शर्त है।
अस्पताल में हुआ यह परिवर्तन समाज से छुपा नहीं रह सका। डीसी श्री योम्हे ने अपने इस अभियान में जनसामान्य को जोडने के लिए सोश्यल मीडीया का भी उपयोग किया। उन्होने जिला अस्पताल के कायाकल्प अभियान के लिए फेसबुक पर एक पेज बनाया। उनके इस कदम को व्यापक जनसमर्थन मिला। अस्पताल की दशा सुधारने के इस अभियान में अनेक स्वयंसेवी संस्थाओं और व्यक्तियों ने जुडने की इच्छा व्यक्त की और इस अभियान को आम लोगों का सहयोग मिलना शुरु हो गया। अनेक संस्थाओं और व्यक्तियों ने इसके लिए सहयोग राशि भी दी।
अस्पताल सिर्फ साधनों से ही नहीं चलता,बल्कि अस्पताल के चिकित्सक व अन्य पैरामेडीकल स्टाफ का इसमें महत्वपूर्ण योगदान होता है। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए डीसी श्री योम्हे ने प्रत्येक शनिवार को चिकित्सालय के डाक्टर्स और अन्य स्टाफ से मिलकर उन्हे इस अभियान के लिए प्रेरित करने का काम भी शुरु किया। अस्पतालों में स्टाफ के दुव्र्यवहार या लापरवाही की शिकायतें आम होती है,लेकिन डीसी श्री योम्हे के प्रयासों के चलते यहां के स्टाफ में भी आमूलचूल बदलाव आने लगा। डीसी श्री योम्हे ने अस्पताल के स्टाफ को और अधिक प्रेरित करने के लिए प्रोफेशनल ट्रेनर्स की भी मदद ली। जल्दी ही यहां का पूरा स्टाफ किसी महंगे प्राइवेट अस्पताल के हंसमुख स्टाफ की तरह हो गया।
उधर स्वयंसेवी संस्थाओं और अन्य व्यक्तियों द्वारा मिल रहे आर्थिक सहयोग के चलते अस्पताल की सुविधाओं को सुव्यवस्थित करने का सिलसिला शुरु हो गया। अस्पताल के लेबर रुम को व्यवस्थित किया गया। इसके बाद आपरेशन थियेटर को सुव्यवस्थित और अत्याधुनिक उपकरणों से लैस किया गया। अस्पताल के विभिन्न वार्डों का भी कायाकल्प किया गया।
आज डिमापुर का सरकारी अस्पताल किसी भी महंगे निजी अस्पताल से कम नहीं है। चमचमाते अस्पताल में आकर मरीज का मन प्रसन्न हो जाता है। स्टाफ का सहयोगात्मक रवैया भी मरीज के उपचार को और आसान बना देता है।
इस संवाददाता से चर्चा करते हुए डिमापुर डीसी केसोन्यू योम्हे ने बताया कि आमतौर पर इस तरह के अभियान तभी तक चल पाते है,जब तक अभियान प्रारंभ करने वाला अधिकारी मौजूद होता है। अधिकारी का तबादला होते ही स्थितियां बदल जाती है। इस समस्या को हल करने के लिए डिमापुर में उन्होने नया प्रयोग किया। अस्पताल के कायाकल्प अभियान की शुरुआत तो उन्होने की,लेकिन जैसे ही इसमें सामान्य लोग और स्वयंसेवी संस्थाएं जुडने लगी,प्रशासनिक अधिकारी धीरे धीरे नेपथ्य में जाने लगे और पूरा अभियान धीरे धीरे सामान्य लोगों के हाथों में सौंप दिया गया। इसके लिए एक समिति का गठन किया गया,जिसमें दस प्रमुख लोगों को पदाधिकारी बनाया गया है। इस समिति में बडी संख्या में डिमापुर के नागरिक सदस्य बने हैं। अस्पताल के कायाकल्प की पूरी जिम्मेदारी अब नागरिकों की इस समिति ने सम्हाल ली है। डिमापुर अस्पताल के इस अभियान में अब यदि प्रशासकीय अधिकारी ने भी जुडे रहें,तब भी यह अभियान चलता रहेगा।