December 27, 2024

प्रशासनिक लापरवाही से गरीबों की आवास समस्या जस की तस

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प्रशासनिक अधिकारी नहीं ले रहे योजना के क्रियान्वयन में रुचि
भोपाल,12 जुलाई (इ खबरटुडे)। प्रदेश के गरीब और कमजोर आय वर्ग के लोगों को खुद का घर उपलब्ध कराने के लिए राज्य सरकार ने सरकारी जमीनें नाममात्र की दरों पर उपलब्ध कराने की योजना बनाई है। प्रदेश के तमाम कलेक्टरों को इस बारे में निर्देश भी दिए गए है कि वे हाउसिंग बोर्ड जैसी शासकीय एजेंसियों को आवासीय योजना के लिए रियायती दरों पर जमीन उपलब्ध कराएं। लेकिन जिला स्तर पर मौजूद अफसरों के ढीले रवैये के चलते कहीं भी प्रभावी ढंग से आवासीय योजनाएं क्रियान्वित नहीं हो सकी है। जिला प्रशासन के अधिकारी भू माफिया के हाथ की कठपुतली बने नजर आते है।
जिले के विभिन्न शहरों में निजी कालोनाईजरों और भूमाफियाओं के असर के चलते जमीनों की कीमतें आसमान छू रही है। ऐसी स्थिति में गरीब या कमजोर वर्ग का कोई व्यक्ति अपने घर के बारे में सोच भी नहीं सकता। गरीब और कमजोर आय वर्ग के लोग महंगे दामों की जमीन ही नहीं खरीद सकते तो घर कैसे बनाएंगे? गरीबों की इस समस्या को दूर करने के लिए राज्य सरकार ने गरीबों की आवासीय योजनाओं के लिए हाउसिंग बोर्ड और विकास प्राधिकरण जैसी सरकारी एजेंसियों को रियायती दरों पर सरकारी जमीन मुहैया कराने की योजना बनाई है। इसके लिए म.प्र.शासन के आवास एवं पर्यावरण विभाग द्वारा 9 नवम्बर 2011 को समस्त संभागायुक्तों और कलेक्टरों को पत्र भेज कर विस्तृत दिशा निर्देश जारी किए थे। इन दिशा निर्देशों में संभागायुक्तों व कलेक्टरों से कहा गया है कि वे हाउसिंग बोर्ड और विकास प्राधिकरण जैसी संस्थाओं को नाममात्र की दर पर शासकीय भूमि उपलब्ध कराए। आवास एवं पर्यावरण विभाग के तत्कालीन प्रमुख सचिव इकबाल सिंह बैस के हस्ताक्षरों से जारी इन दिशा निर्देशों में जिला स्तर पर कलेक्टर की अध्यक्षता में एक समिति बनाकर भूमि आवंटित किए जाने के निर्देश दिए थे।
इसके पश्चात इसी आधार पर संभागायुक्तों ने अपने संभागों में कलेक्टरों को इस योजना को क्रियान्वित करने हेतु निर्देश जारी कर दिए। लेकिन कलेक्टरों की ढील पोल के चलते प्रदेश के अधिकांश जिलों में गरीब और कमजोर आयवर्ग के लोगों के लिए कोई आवासीय योजना नहीं बन पाई।
उज्जैन संभागायुक्त अरुण पाण्डेय ने अपने संभाग के सभी जिला कलेक्टरों को इस आशय के निर्देश दिए है कि हाउसिंग बोर्ड या विकास प्राधिकरण जैसी शासकीय एजेंसी द्वारा मांगे जाने पर उन्हे आवासीय योजना विकसित करने के लिए प्राथमिकता से रियायती दर पर जमीन उपलब्ध कराई जाए,लेकिन रतलाम,मन्दसौर और नीमच जिलों में प्रशासन ने हाउसिंग बोर्ड को कोई जमीन उपलब्ध नहीं कराई।
प्रशासनिक सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक रतलाम और मन्दसौर जिलों में तो हाउसिंग बोर्ड ने शासन की इस योजना को  क्रियान्वित करने के लिए जिला प्रशासन से कई बार जमीन उपलब्ध कराने की मांग की। लेकिन इन दोनों जिलों में जिला प्रशासन इस मामले की लगातार उपेक्षा करता रहा। हाउसिंग बोर्ड के अधिकारी जिला प्रशासन के चक्कर काटते रहे लेकिन उन्हे गरीब और कमजोर आय वर्ग के लोगों के लिए आवासीय योजना विकसित करने के लिए कोई भूमि आवंटित नहीं की गई।
सूत्रों का कहना है कि रतलाम जिले में एक जमीन विकास प्राधिकरण के नाम पर आरक्षित की गई। जब हाउसिंग बोर्ड ने इस भूमि को मांगा तो उन्हे इस आधार पर मना कर दिया गया कि यह विकास प्राधिकरण के लिए आरक्षित है। मजेदार तथ्य यह है कि उक्त जमीन अब तक विकास प्राधिकरण को भी आवंटित नहीं की गई है। नतीजा यह है कि गरीबों के लिए कोई भी आवासीय योजना अस्तित्व में नहीं आ रही है। सरकारी जमीन सस्ती दरों पर दिए जाने के मामले में बरती जा रही लेतलाली को यदि बारीकी से देखा जाए तो पता चलता है कि प्रशासनिक तंत्र ताकतवर भू माफिया के हाथ की कठपुतली बना हुआ नजर आता है। भूमाफिया नहीं चाहते कि गरीब व कमजोर आय वर्ग के लोगों के लिए सस्ती दरों पर आवास उपलब्ध हो,क्योकि इससे आसमान छू रही प्रापर्टी की कीमतें गिरने का खतरा है। इससे भू माफियाओं का वर्ग इस तरह की जनहितकारी योजना को क्रियान्वित नहीं होने देना चाहता। जिले का प्रशासनिक अमला भू माफियाओं के निहित स्वार्थों की पूर्ति के लिए किसी न किसी बहाने से भूमि आवंटन की प्रक्रिया को बाधित कर देता है। जिले के तमाम आला अफसर इससे लाभान्वित भी हो रहे है।

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