प्रभु का संग करने का अवसर है प्रतिष्ठा: लोकसन्तश्री
सरसी में प्रतिष्ठा आज, भव्य मंगल प्रवेश हुआ
रतलाम 18 नवम्बर (इ खबरटुडे)।लोकसन्त, आचार्य, गच्छाधिपति श्रीमद् जयन्तसेन सूरीश्वरजी म.सा. की निश्रा में 19 नवम्बर को जिले के सरसी में जिनालय की भव्य प्राण प्रतिष्ठा होगी। शुक्रवार को मुनि मण्डल व साध्वीवृन्द के साथ सेमलिया तीर्थ से विहार कर आचार्यश्री ने ग्राम में भव्य मंगल प्रवेश किया। प्रवेश जुलूस के बाद आयोजित धर्मसभा में उन्होंने कहा कि ़संसार में हर जीव जिसका संग करता है, उसे वैसा ही रंग चढ़ जाता है । संग ऐसा करना चाहिए जिससे हमारे जीने का ढंग बदल जाए । संग का रंग जब चढ़ता है, हमारा जीवन भी परिवर्तित हो जाता है । परमात्मा की प्रतिष्ठा करके हमें प्रभु का ही संग करना है, उनकी भक्ति, पूजा, सेवा में ऐसे डूब जाना है कि उनका ही रंग हमें लगा हो। परमात्मा का संग करने वाल्ो संसार सागर से तिर जाते हैं।
लोकसन्तश्री ने कहा कि प्रभु का संग किया था गौतम ने, श्रेणिक ने, शालिभद्र ने तथा हनुमान ने । इन सभी को ऐसा रंग लगा था कि सभी प्रभुमय बन गए थ्ो। ऐसा सुन्दर संग पुण्यशालियों को ही मिलता है। अन्य प्रवृत्तियों का रंग न लगाते हुए मात्र्ा प्रभु भक्ति में ही लीन हो जाना चाहिए। इससे पूर्व निकले मंगल प्रवेश के जुलूस में जैन श्रीसंघ के साथ अन्य धर्मावलम्बियों ने भी गहुली और रंगोली करते हुए लोकसन्तश्री का जगह-जगह स्वागत किया। दोपहर में जिनालय परिसर में परमात्मा के 18 अभिषेक व श्री राजेन्द्र सूरि गुरू पद महापूजन के बाद रात्रि में प्रभु भक्ति का आयोजन किया गया। 19 नवम्बर को लोकसन्तश्री की निश्रा में श्री कंुथुनाथ जिनालय की प्राण प्रतिष्ठा का महोत्सव आयोजित होगा।
हर जगह सुस्ती-सरसी में मस्ती – मुनिराजश्री
मुनिराजश्री निपुणरत्न विजयजी म.सा. ने कहा कि परमात्मा की भक्ति करने का आनन्द अनुपम होता है। गया धन वापस आ सकता है, उजड़ा गांव फिर से बस सकता है, ल्ोकिन गया समय वापस नहीं आता। अतः जब भी जीवन में अच्छे अवसर आएं, उसका पूरा आनन्द ल्ोना चाहिए, ये आनन्द जीवनभर की प्रसन्नता देता है। सरसीवालों के लिए परमात्मा की भक्ति का यह अवसर संयोग से आया है। भक्ति की मस्ती भी अनोखी होती है, इसमें सुस्ती नहीं रखना चाहिए । दुनिया में सब जगह सुस्ती का माहौल है, ल्ोकिन ऐसे समय में सरसीवासी भक्ति की मस्ती में मस्त हैं । मुनिश्री ने कहा कि मात्र्ा परमात्मा के सामने बैठकर भजन करने वाला भक्त नहीं कहलाता, भक्त तो वह है जो हर समय सबकी भलाई का काम करता है। भलाई करने से लाभ ही होता है । भलाई करने वालों को सभी याद करते हैं, वो हमेशा स्मरणीय बन जाता है। भलाई करने के लिए धन नहीं मन बड़ा होना चाहिए ।