December 24, 2024

प्रदूषण की रोकथाम का महज दिखावा

लाल पानी के सैम्पल तो लिए,लेकिन प्रदूषण के कारणों को किया अनदेखा
रतलाम,12 मार्च(इ खबरटुडे)। शहर के आसपास के अनेक गांवों में लम्बे अरसे से जडे जमा चुकी प्रदूषित पानी की समस्या का निराकरण करने के लिए आई म.प्र.प्रदूषण बोर्ड की टीम ने समस्या के निराकरण का दिखावा तो किया लेकिन प्रदूषण के प्रमुख कारणों को पूरी तरह अनदेखा कर दिया।  प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारी प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों के ही मेहमान बने और निर्वाचित जनप्रतिनिधि उद्योग के कर्मचारी की तरह उनकी अगवानी में जुटे रहे।

किसी समय पर रतलाम का औद्योगिक क्षेत्र चहल पहल वाला भरापूरा औद्योगिक क्षेत्र था,जहां दर्जनों रासायनिक उद्योग चला करते थे। शहर की औद्योगिक प्रगति शहर के आसपास के गांवों की बरबादी पर टिकी थी। शहर के आसपास के तमाम गांवों का भूमिगत जल पूरी तरह प्रदूषित होता जा रहा था। उद्योगों के संचालक उद्योग से मोटा माल तो कमा रहे थे लेकिन प्रदूषण को नियंत्रित करने के उपायों पर होने वाला व्यय उन्हे गैरजरुरी लगता था। नतीजा यह हुआ कि कम से कम बारह गांवों के हजारों रहवासी अनेक गंभीर रोगों के शिकार होने लगे और इन गांवों में पीने के लिए पानी तक नहीं बचा। इस समस्या से निजात पाने के लिए ग्रामीणों ने न्यायालयों की शरण ली और प्रदूषण नियंत्रण के कडे कानूनों के चलते एक के बाद एक कई उद्योग बन्द हो गए। उद्योगों के बन्द हो जाने से प्रदूषण की समस्या समाप्त हो जाना चाहिए थी,लेकिन इसी दौर में इप्का जैसे उद्योग भी आए जिन्होने प्रदूषण नियंत्रण के कडे कानूनों और प्रावधानों से बच निकलने के नए नए रास्ते निकाल लिए। अब स्थिति यह है कि प्रदूषण बदस्तूर जारी है। गांवों में पीने के लिए पानी तक नहीं है। हैण्डपंप,नलकूप और कुए लाल पानी उगल रहे है। गांवों के लोग गंभीर बीमारियों के शिकार हो रहे है।
वर्तमान में चल रहे उद्योगों में सबसे प्रमुख उद्योग इप्का लैबोरैट्रीज है। उद्योगों के श्मशान बन चुके शहर में इप्का का महत्व एकमात्र उद्योग होने के कारण है। इसी वजह से इप्का के तमाम गुनाहों को नजर अंदाज करने की आदत शहर को लग चुकी है। चूंकि शहर इप्का के हर गुनाह को नजरअंदाज करता है इसलिए इप्का भी लगातार विकास के पथ पर बढती जा रही है।
लेकिन प्रदूषण नियंत्रण के मुद्दे पर इप्का प्रबन्धन का रवैया भी पुराने उद्योगों जैसा ही है। इप्का प्रबन्धन को प्रदूषण नियंत्रण के उपायों पर होने वाला खर्च बेहद भारी लगता है और इसलिए ट्रीटमेन्ट प्लान्ट्स बनाने की बजाय इप्का प्रबन्धन प्रदूषण की रोकथाम करने वाली एजेंसियों को ही प्रभावित करने पर अधिक ध्यान देता है।
म.प्र.प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की टीम के रतलाम आने की खबर प्रदूषण से पीडीत ग्रामवासियों के लिए राहत भरी खबर थी। लेकिन प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की टीम के प्रदूषण प्रभावित गांवों में दौरे के बाद उन्हे लगता है कि उनके साथ सिर्फ छलावा हुआ है। टीम के सदस्यों ने कुछेक गांवों में दौरा कर पानी के सैम्पल तो लिए लेकिन समस्या की जड तक पंहुचने की कोशिश नहीं की।
लाल पानी की समस्या से सर्वाधिक पीडीत सेजावता और मलवासा गांवों के लोग प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की टीम का इंतजार करते रहे लेकिन टीम वहां नहीं पंहुची। सेजावता और मलवासा में पनपा प्रदूषण पूरी तरह से केवल इप्का की वजह से है। गांव के लोगों में ऐसे लोगों की बडी तादाद है जिन्होने इप्का के प्रदूषित पानी को जमीन के अन्दर डालते हुए अपनी आंखों से देखा है। बारिश के दिनों में तो इप्का के टैंकर बेहिचक नालों में खाली कर दिए जाते है। प्रदूषण के लिए सबसे ज्यादा बदनाम सज्जन इम्पैक्स और एल्कोहल प्लान्ट रहे है। इसी का फायदा इप्का को मिलता है। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारी रतलाम में आए लेकिन इप्का के प्रदूषण से प्रभावित गांवों तक जाने की जहमत उन्होने नहीं की।
विधायक लगे सेवा में
गांवों की समस्या जानने आए प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारी समस्याग्रस्त गांवों में तो नहीं गए लेकिन इप्का की मेहमान नवाजी का मजा लेने इप्का में जरुर गए। इप्का फैक्ट्री के इस कथित निरीक्षण के दौरान निर्दलीय विधायक पारस सकलेचा पूरे समय इस टीम के साथ रहे। प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक विधायक श्री सकलेचा का रवैया ऐसा था जैसे वे स्वयं इप्का के कर्मचारी हो। श्री सकलेचा ने टीम को पूरी फैक्ट्री दिखाई।
कौन करे कार्यवाही
सुप्रीम कोर्ट ने देशभर के तमाम उद्योगों को जीरो डिस्चार्ज की स्थिति में लाने के स्पष्ट आदेश दिए है। लेकिन इप्का पर ऐसा कोई आदेश लागू नहीं होता। शहर के तमाम प्रमुख राजनीतिक दलों के प्रमुख नेता इप्का से सीधे तौर पर जुडे है। श्रम विभाग,उद्योग विभाग और प्रदूषण नियंत्रण विभाग जैसे तमाम सरकारी विभागों के अधिकारी इप्का से किसी न किसी प्रकार से लाभान्वित होते रहते है। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारी जब भी किसी निरीक्षण के लिए आते है,वे इप्का के ही गेस्ट हाउस में ही ठहरते है। ऐसे में इप्का द्वारा फैलाए जा रहे प्रदूषण को रोकने के लिए कार्यवाही कौन कर सकता है। इप्का से प्रदूषित रासायनिक पदार्थ या तो बोरवेल करके जमीन में उतार दिए जाते है,या बारिश के दिनों में उन्हे नालों में बहा दिया जाता है। इस तथ्य को तमाम जिम्मेदार जानते है,लेकिन सभी इसे अनदेखा कर देते है। इप्का की इन हरकतों का एक असर यह भी है कि बदनावर में संचालित एक उद्योग का प्रदूषित पानी भी   टैंकरों के जरिये रतलाम के औद्योगिक क्षेत्र में लाकर बहा दिया जाता है।
बहरहाल प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के निरीक्षण की सच्चाईयों के बाद यह तय है कि ग्रामवासियों को लालपानी की समस्या से निजात मिलना आसान नहीं है। इस समस्या से निजात पाने के लिए उन्हे लम्बा संघर्ष करना होगा।

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