पाससोर्ट सेवा का निजीकरण,सुविधा नहीं परेशानी
आनलाईन आवेदन के बावजूद निराकरण में देरी,खर्च भी बढा
भोपाल,15 जून(इ खबरटुडे)। भारतीय विदेश मंत्रालय द्वारा देश के आम नागरिकों को आसानी से पाससोर्ट उपलब्ध कराने के लिए पासपोर्ट सेवा का निजीकरण किया गया है। आवेदकों को आनलाईन आवेदन की सुविधा देने का दावा करने के बावजूद पासपोर्ट सेवा के निजीकरण ने आवेदकों की परेशानियों को दो गुना कर दिया है। पहले जहां अपने ही शहर में रहते हुए आवेदक को पासपोर्ट मिल जाता था,वहीं पहले की सारी परेशानियों के साथ साथ अब शहर छोडकर पासपोर्ट सेवा केन्द्र तक जाने की मुसीबत और खडी हो गई है। मध्यप्रदेश की बात करें तो प्रदेश के किसी भी जिले में रहने वाले आवेदक को पासपोर्ट लेने के लिए भोपाल जाना जरुरी हो गया है।
छोटे दलाल बाहर-बडे दलाल का आगमन
पासपोर्ट सेवा के निजीकरण से पहले हर शहर में पासपोर्ट कार्यालय के दलाल सक्रीय हुआ करते थे,जो आवेदन शुल्क से अतिरिक्त रकम लेकर आवेदकों को पासपोर्ट दिलाने का काम करते थे। इसमे कई बार आवेदकों के साथ ठगी भी होती थी। अब पासपोर्ट सेवा के निजीकरण से छोटे छोटे दलाल तो गायब हो गए है,लेकिन पासपोर्ट सेवा की निजीकरण कम्पनी टाटा कन्सल्टेन्सी सर्विस स्वयं एक बडे दलाल के रुप में उभर गई है। आवेदकों के साथ घोषित तौर पर ठगी नहीं हो रही है,लेकिन उसकी मुसीबतें दोगुना हो गई है।
पहले थी आसान प्रक्रिया
उल्लेखनीय है कि पासपोर्ट सेवा के निजीकरण से पहले आवेदक पुलिस की डीआईजी रैंज में स्थापित पासपोर्ट कार्यालय से आवेदन लेकर निर्धारित शुल्क एक हजार रु.के डिमाण्ड ड्राफ्ट के साथ अपने आवेदन प्रस्तुत करते थे। इसके बाद पासपोर्ट कार्यालय आवेदन और उसके साथ लगे दस्तावेजों के वेरिफिकेशन के लिए इसे एसपी कार्यालय भेज देता था। पुलिस सत्यापन प्राप्त होजाने के बाद पासपोर्ट कार्यालय इस पूरे प्रकरण को पासपोर्ट कार्यालय भोपाल को भेज देता था जहां से कुछ दिनों में पासपोर्ट तैयार होकर सीधे आवेदक के घर पंहुच जाता था।
अब बढी कठिनाई
विदेश मंत्रालय द्वारा पिछले वर्ष से पासपोर्ट सेवा का निजीकरण करते हुए यह सेवा टाटा कन्सल्टेन्सी सर्विस को सौंप दी गई है। सेवा के निजीकरण के समय यह दावे किए गए थे कि इससे प्रक्रिया अधिक पारदर्शी और आसान हो जाएगी। लेकिन वास्तविकता ठीक इसके विपरित है। कहने को तो आजकल पासपोर्ट का आवेदन चौबीसों घण्टे कहीं से भी आनलाईन किया जा सकता है। आनलाईन आवेदन करते ही आवेदक को उसकी इच्छित तारीख और समय बता दिया जाता है। इस तारीख और समय पर आवेदक को अपने दस्तावेजों के सत्यापन के लिए पासपोर्ट सेवा केन्द्र भोपाल जाना पडता है। यहां तक तो आवेदक को लगता है कि सबकुछ आसान है,लेकिन समस्याएं यहीं से शुरु होती है।
बेवजह विलम्ब
आवेदक बडे उत्साह से भोपाल पासपोर्ट सेवा केन्द्र पंहुच कर अपने दस्तावेजों का सत्यापन करवाता है। यहां टाटा कन्सल्टेन्सी का स्टाफ बडे ही सजावटी पासपोर्ट सेवा केन्द्र में उसके दस्तावेजों का सत्यापन करता है और उससे शुल्क भी यहीं जमा करवा लिया जाता है। लेकिन आगे की प्रक्रिया वैसी ही है,जैसी पहले थी। पासपोर्ट सेवा केन्द्र पर सत्यापन के बाद इस आवेदन को पुलिस सत्यापन के लिए सम्बन्धित जिले को भेजा जाता है। पासपोर्ट के आवेदनों को पुलिस सत्यापन के लिए विभिन्न जिलोंको भेजे जाने की प्रक्रिया में ही पासपोर्ट सेवा केन्द्र कई महीने गुजार देता है। पासपोर्ट सेवा केन्द्र से जुडे सूत्रों के मुताबिक भोपाल के पासपोर्ट सेवा केन्द्र पर प्रदेश के प्रत्येक जिले से हजारों आवेदक पंहुचते है। होना तो यह चाहिए कि पासपोर्ट सेवा केन्द्र पर जैसे ही किसी आवेदक के दस्तावेजों का सत्यापन पूरा हो उसके दस्तावेज फौरन उसके जिले के पुलिस अधीक्षक को भेज दिए जाने चाहिए। लेकिन वास्तविकता इसके ठीक विपरित है। पासपोर्ट सेवा केन्द्र पर सत्यापित किए जा चुके आवेदन कई दिनों तक केन्द्र पर ही पडे रहते है। जब किसी जिले के दो ढाई सौ आवेदन इक_े हो जाते है,तब कहीं जाकर सेवा केन्द्र उन्हे सम्बन्धित जिले को भेजता है। सम्बन्धित जिले के पासपोर्ट कार्यालय के कर्मचारियों के लिए भी यह भारी परेशानी का काम बन जाता है। उन्हे एकसाथ सैकडों आवेदनों की प्रक्रिया शुरु करना पडती है। नतीजा बेवजह की देरी के रुप में सामने आता है।
पुलिस सत्यापन भी कठिन
दूसरी ओर आवेदक की परेशानियां भी बढती जाती है। पुलिस से सत्यापन करवाने के लिए आवेदक को वही मशक्कत करना पडती है,जो पहले करना पडती थी। थानों के कई चक्कर लगाने और कर्मचारियों की सेवा पूजा के बाद ही पुलिस सत्यापन पूरा हो पाता है। पुलिस सत्यापन के बाद आवेदन पुन: भोपाल भेजा जाता है,जहां से पासपोर्ट जारी होना है।
पारदर्शिता नदारद
पासपोर्ट सेवा केन्द्र दावा तो करते है कि पासपोर्ट का सारा काम पूरी पारदर्शिता से होता है और आवेदनों के निराकरण के सम्बन्ध में आनलाईन जानकारी प्राप्त की जा सकती है,लेकिन जब कोई आवेदक ऐसी जानकारी लेने की कोशिश करता है,तब उसे पता चलता है कि उसे मूर्ख बनाया जा रहा है।
पासपोर्ट सेवा केन्द्र पर स्वयं उपस्थित होकर अपने दस्तावेजों का सत्यापन कराने के बाद जब भी आवेदक अपने आवेदन की प्रगति को आनलाईन जानना चाहता है,कम्प्यूटर की स्क्रीन पर सिर्फ यही जवाब आता है,कि पुलिस सत्यापन की प्रतीक्षा की जा रही है। यह जानकारी तब भी दी जाती है,जब कि आवेदन पासपोर्ट सेवा केन्द्र पर ही पडा होता है। पासपोर्ट सेवा केन्द्र द्वारा निशुल्क टेलीफोन पूछताछ स्थापित किए जाने की घोषणा भी की जाती है,लेकिन उनके द्वारा दिए गए नम्बरों पर अक्सर फोन उठाए ही नहीं जाते। यदि कहीं फोन उठा लिया गया तो कोइ संतोषप्रद जवाब देने की बजाय आनलाईन जानकारी लेने का रटा रटाया जवाब दिया जाता है।
टूट गई उम्मीदें
नागरिकों को उम्मीद थी कि पासपोर्ट सेवा का निजीकरण किए जाने और आनलाईन व्यवस्था होने से अब समस्याएं समाप्त हो जाएगी,लेकिन हुआ इसका उलटा। आनलाईन आवेदन करने से पासपोर्ट हासिल करना और कठिन हो गया है। पहले तो आवेदक दलाल को कुछ रकम देकर तनावमुक्त हो जाते थे,लेकिन अब उन्हे पासपोर्ट के लिए बेवजह भोपाल का चक्कर लगाना पडता है। पुलिस सत्यापन की व्यवस्था यदि आनलाईन शुरु कर दी गई होती तो निस्संदेह रुप से पासपोर्ट सेवा त्वरित गति से मिलती और आवेदकों को थानों के चक्कर भी नहीं खाना पडते। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। आवेदक थानों के चक्कर भी लगा रहे है