पाकिस्तान के बिखराव में छुपा है आतंकवाद जैसी समस्याओं का हल
- तुषार कोठारी
आप चाहे जितनी मोमबत्तियां जलाईए,कडे से कडे शब्दों में निन्दा कीजिए,टीवी चैनलों पर पाकिस्तान और आतंकवाद के खिलाफ जहर उगलिए,पाकिस्तान को सबक सिखाने के दावे कीजिए,लेकिन इन सबसे न तो आतंकवाद की समस्या समाप्त होगी,ना ही कश्मीर में शांति स्थापित होगी। भारत के लिए वास्तविक समस्या ना तो कश्मीर में है और ना ही आतंकवाद वास्तविक समस्या है। भारत के लिए वास्तविक समस्या एक ही है और वह है पाकिस्तान। यही वह समस्या है,जिसके समाधान से सारी समस्याएं स्वत: समाप्त हो सकती है।
और गहराई में जाएं तो असल समस्या हमारे दिल दिमागों में है। हमारी समस्या यह है कि हमने पाकिस्तान को एक वास्तविक राष्ट्र मान कर रखा है। हाल के कुछ वर्षों को छोड दें तो पिछले सात दशकों में चार युध्दों के बावजूद हम पाकिस्तान को अपना पडोसी देश मानकर उससे मधुर सम्बन्ध बनाने के असफल प्रयास करते रहे है। यहां तक कि खुद मोदी जी भी सम्बन्ध सुधारने के चक्कर में बिना बुलाए नवाज शरीफ से मिलने पंहुच गए थे। जिसकी वजह से आज तक विरोधी दल उन्हे निशाना बनाते है।
इतने वर्ष गुजर जाने और हजारों सैनिकों व निर्दोष नागरिकों की जानें गंवा देने के बाद हमें यह समझ लेना चाहिए कि पाकिस्तान को एक वास्तविक देश मान लेना ही सारी गडबडियों की जड है। लेकिन आज भी हमारे विमर्श में पाकिस्तान को एक वास्तविक देश माना जाता है और उसे सबक सिखाने या सम्बन्ध सुधारने की बातें की जाती है।
इस तथ्य को समझने के लिए हमें इतिहास में झांकना होगा। अंग्रेजों ने तत्कालीन कांग्रेस के नेताओं को जैसे तैसे राजी करके भारत के टुकडे करके दो देश भारत और पाकिस्तान बना दिए थे। हमारे तत्कालीन नेताओं ने उस वक्त की मजबूरी के चलते इस बंटवारे को स्वीकार भी किया था। जिस पीढी ने इस बंटवारे को स्वीकार किया था,उनके जीवन काल तक तो इस बंटवारे को स्वीकार किया जाना जायज था,लेकिन बाद में इसकी अनिवार्यता समाप्त हो चुकी थी। यही वजह थी कि 1971 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी ने पूर्वी पाकिस्तान को बांग्लादेश में बदल दिया था।
पाकिस्तान बनने के मात्र 24 वर्षों में यह साबित हो गया था कि पाकिस्तान बनाने का द्विराष्ट्रवाद का सिध्दान्त पूरी तरह गलत था और इसी वजह से पाकिस्तान टूट कर दो देशों पाकिस्तान और बांग्लादेश में परिवर्तित हो गया था।
आज हम इक्कीसवीं सदी में जी रहे है। वर्तमान समय में भारत का प्रधानमंत्री भी वह व्यक्ति है,जिसने स्वतंत्र भारत में जन्म लिया है। जिन नेताओं ने अंग्रेजों द्वारा किए गए बंटवारे को स्वीकार करके पाकिस्तान को एक सार्वभौमिक राष्ट्र की मान्यता दी थी,उनमें से आज कोई भी जीवित नहीं है। अब हमें मान लेना चाहिए कि पाकिस्तान नामक देश बिना ठोस आधारों का,केवल भारत विरोध पर जीवित रह सकने वाला एक भूभाग है,जहां एक नहीं अनेक राष्ट्रीयताएं है। बलूच अपने आपको पाकिस्तानी नहीं मानते,वे अपने आपको बलूचिस्तानी मानते है और इसके लिए संघर्ष कर रहे हैं। सिन्ध के लोग अपने आपको पाकिस्तानी नहीं मानते। वे भी अलग होने के लिए आन्दोलन रत है। गिलगित बाल्टिस्तान की भी यही कहानी है।
भारत के जनमानस में अब बात स्थापित की जाना चाहिए,कि जिस स्थान पर आज पाकिस्तान नामक देश स्थापित है,वह असल में हमारा भूभाग है। हमारे सारे प्रयत्न अब इस बात के लिए होने चाहिए कि पाकिस्तान नामक यह अवास्तविक देश अब समाप्त होना चाहिए। भारत को बेझिझक पूरे विश्व समुदाय के सामने यह तथ्य रखना चाहिए कि 71 वर्ष पहले भारत के तत्कालीन नेताओं पर गलत तरीके से दबाव डाल कर बंटवारा करवाया गया था।
अब समय उस गलती को सुधारने का है। यह तथ्य भी याद रखा जाना चाहिए कि आज भारत में जितने प्रान्त है,वे सभी आजादी के समय से भारत में नहीं है। गोवा,सिक्किम जैसे प्रान्त भारत की आजादी के कई सालों बाद भारत में शामिल हुए हैं। यह प्रक्रिया आगे भी जारी रह सकती है।
निश्चित रुप से यह कोई एक दो दिन या एक दो वर्षों में पूरा होने वाला लक्ष्य नहीं है। लेकिन हमारे सारे अभियानों की दिशा यही होना चाहिए। जब हमारे सामान्य जनमानस से लगाकर नेतृत्व की सोच में तथ्य स्थापित होगा,तब समस्याओं से निपटने का हमारा दृष्टिकोण भी बदलेगा।
भारत ने इतिहास में कई बडी गलतियां की है। वर्ष 2002 में संसद हमले के बाद हमारी सेनाओं को लम्बे समय तक सीमाओं पर तैनात कर दिया गया था लेकिन फिर अमरीकी दबाव के चलते बिना कोई कार्यवाही किए हमारी सेनाओं को वापस बुला लिया गया। अभी हाल ही में भारत के एक टीवी चैनल को दिए इंटरव्यू में पाकिस्तान के तत्कालीन तानाशाह परवेज मुशर्रफ ने इसी बात को भारत की कमजोरी के रुप में रेखांकित किया। मुशर्रफ ने अपने इंटरव्यू में कहा कि जब दोनो मुल्कों की फौजे आमने सामने खडी थी,तब भारत ने डर कर अपनी फौज को वहां से हटा लिया था।
लेकिन अब इतिहास के सबक लेने का समय है। यह कोई नियम नहीं है कि भारत हमेशा हमले ही झेलेगा और फिर उनसे बचाव करेगा। कभी ऐसा भी तो किया जा सकता है कि भारत आगे बढकर हमला करें। उरी घटनाक्रम के बाद हुई सर्जिकल स्ट्राईक इसी का एक प्रमाण था।
पुलवामा के हमले को हम अपने लिए एक अवसर बना सकते है। शुरुआत पाक अधिकृत कश्मीर को भारत के वास्तविक कब्जे में लाने से की जाए और फिर पाकिस्तान में आन्दोलनरत अलग अलग समूहों को खुला समर्थन और सहयोग देकर उन्हे आजाद करवाया जाए। पाकिस्तान के पांच टुकडे हुए बगैर भारत की समस्याएं नहीं सुलझेगी। भारत के ढीले रवैये का ही नतीजा है कि कश्मीर तो ठीक एन राजधानी दिल्ली में भारत तेरे टुकडे होंगे जैसे नारे लग जाते है। ये सारे तत्व तभी नदारद होंगे,जब पाकिस्तान नदारद होगा।