परोपकार और कांग्रेस की नीयत
प्रकाश भटनागर
गुजरे दौर के अभिनेता, निर्माता और निदेशक हैं मनोज कुमार। उनका एक संस्मरण रोचक है। तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने उन्हें सुझाव दिया कि जवान यानी फौजी और किसान को मिलाकर एक फिल्म बनाई जाए। मुलाकात के बाद दिल्ली से मुंबई लौटने के लिए कुमार ने रेल का सफर चुना। ताकि एकांत में सोचने-समझने का समय मिल सके। जितने समय में रेल ने यह लम्बा फासला तय किया, कुमार के दिमाग में ‘उपकार’ फिल्म की स्क्रिप्ट का खाका तैयार हो चुका था। यह उनकी सुपरहिट कृतियों में से एक साबित हुई, जिसमें मुख्य किरदार को पहले किसान और फिर जवान के तौर पर देश की सेवा करते हुए दिखाया गया।
मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस द्वारा जारी वचन पत्र यानी घोषणा पत्र तो उपकार से भी बढ़कर परोपकार के नजदीक दिख रहा है। मामला राज्य का है, लिहाजा जवान को लेकर इसमें जिक्र नहीं हैं। लेकिन किसान के लिए पार्टी बिछ जाने को तैयार दिख रही है। अन्नदाता की खातिर ऐसी-ऐसी घोषणाएं कि एकबारगी तो शिवराज भी डर गए दिखने लगे। दन्न से बोल पड़े कि खुद इंदिरा गांधी अपनी कई घोषणाएं पूरी नहीं कर सकी थीं। यानी, मामला संजीदा तो है, कम से कम मतदाता को लुभाने और सत्तारूढ़ दल को डराने की दृष्टि से तो पूरी तरह ऐसा ही दिखता है।
मनोज कुमार ने रेल में चढ़कर ‘उपकार’ की पटकथा तय की थी, राहुल गांधी ने मोटर साइकिल पर सवार होकर परोपकार की परिकल्पना की। वही मोटर साइकिल, जिसे एक समय जीतू पटवारी दनदनाते हुए मंदसौर की तरफ ले जा रहे थे। तब वहां पुलिस की गोली से छह किसान मारे जा चुके थे। बाद में इसी मंदसौर की सरजमीं पर चुनावी साल में पहुंचकर राहुल ने पहली बार कहा था कि मध्यप्रदेश में सरकार बनी तो दस दिनों के भीतर किसानों का कर्ज माफ कर दिया जाएगा। पार्टी ने अब बड़ी चतुराई से दस दिन वाली बात को किनारे कर दिया है। उसने लगे हाथ ईमानदारी से यह भी साफ कर दिया है कि दो लाख तक का कर्ज ही माफ किया जाएगा। लेकिन यह कैसे होगा? जनता के खून-पसीने की कमाई से भरे सरकारी खजाने को क्या शिवराज ने लुटाने में कोई कसर छोड़ी है जिसे अब कांग्रेस को पूरा करना है। यहां तो मामला ‘चील के घोसले में मांस’ वाली कहावत जैसा है। लेकिन कमलनाथ खाली खजाने के बावजूद मुतमईन हैं। कहते हैं, ‘सरकार में आने पर तमाम इंतजाम कर लेंगे।’ वह सच साबित हो सकते हैं, इसमें कोई शक नहीं। क्योंकि यह इंतजाम करने की क्षमता ही है, जिसने कांग्रेस में नये खून को प्रमोट करने के अभियान में जुटे राहुल गांधी को भी विवश कर दिया कि सत्तर साल से अधिक वाले नाथ को प्रदेश की कमान दी जाए। खुद नाथ कुबेर हों या न हों, किंतु सत्ता के रुसूख से कुबेरों की तिजोरियों का मुंह खुलवाने का हुनर तो उन्हें बखूबी आता है। इसलिए किसान एकबारगी सोच भी ले सरकार बनने की सूरत में ‘नंगा नहाएगा क्या, निचोड़ेगा क्या’ वाले तयशुदा हालात के बावजूद कांग्रेस किसानों को कर्ज माफी की गंगा में डुबकी लगवा ही दें। लेकिन तभी कर्नाटक से खबर आ रही है कि वहां कर्ज में डूबे किसानों के वारंट जारी होने लगे हैं।
एकलव्य ने द्रोणाचार्य की मूर्ति बनाकर उससे धनुष विद्या सीख ली थी। कांग्रेस भी ऐसा ही करती दिखती है। शिवराज सिंह चौहान उसके लिए भले ही ‘पत्थर के सनम’ सरीखे हों, लेकिन इसी ‘पत्थर की मूरत से मोहोब्बत का इरादा’ है वाली बात वचन पत्र में कई जगह दिख सकती है। शिवराज जैसी लुभावनी घोषणाओं को महज नाम बदलकर किसानों सहित महिलाओं, विद्यार्थियों, कन्याओं और कर्मचारियों आदि के लिए लागू करने की बात कही गई है। खैर, अच्छा करने की नीयत पर किसी का पेटेंट नहीं होता। इसलिए ऐलान की प्रेरणा भले ही शिवराज से ली गई हो, लेकिन यदि उन पर अमल की नीयत शिवराज से ठीक उलट साबित हुई तो क्या कांग्रेस वाकई इस प्रदेश का कायाकल्प कर देगी। यह सब करने के लिए तो मध्यप्रदेश में कांग्रेस को सालों सत्ता की चाबी मिली है, लेकिन भाजपा तो दिग्विजय सिंह के दस सालों को लोगों को भूलने नहीं दे रही है। पेट्रोल, डीजल और शराब के अलावा तो राज्य की अपनी आय के साधन अब बचे ही कहां है।
बिना किसी विशेषण या उदाहरण के एक बात के लिए वचन पत्र की तारीफ की जाएगी। विधानसभा में ‘जनता प्रहर’ शुरू करने का वादा वंदनीय होने की हद तक कमाल का है। यह श्रेय दिग्विजय सिंह को जाता है कि अपने समय में उन्होंने मुख्यमंत्री प्रहर शुरू किया था। खुद विपक्ष के सवालों के सीधे जवाब देते थे। अब कांग्रेस लोकतंत्र की और अधिक मजबूती की दिशा में जनता प्रहर की जो बात कह रही है, उससे अन्य दलों को सीख लेना चाहिए। कम से कम भाजपा के लिए तो यह सबक बहुत जरूरी है, जिसने बीते डेढ़ दशक में इस प्रदेश की अधिसंख्य जनता से मुंह मोड़ने जैसा दम्भी आचरण अपना रखा है। पूरी ढिढाई के साथ। शिवराज का जनता से निरंतर संवाद अपनी जगह है लेकिन बाकी सरकार तो दंभी ही थी।
इंद्रजाल कॉमिक्स अब नहीं आती। उसमें एक किरदार वेताल का हुआ करता था। कई जगह वह ‘अचानक आता और गायब हो जाता’ था। तब अक्सर सामने वाला पात्र विस्मय से भरकर कहता था, ‘ओह! चला गया!’ नाथ ने कहा है कि कांग्रेस का वचन पत्र प्रदेश के गांव और गलियों में घूम-घूमकर तैयार किया गया है। यदि खुद नाथ या ज्योतिरादित्य सिंधिया ने ऐसा किया है तो मतदाता वेताल के अचानक दिखने और फिर गायब हो जाने की तर्ज पर आश्चर्य ही जता सकता है। क्योंकि दिग्विजय सिंह को छोड़कर प्रदेश के अन्य किसी दिग्गज कांग्रेसी ने इस चुनाव के लिए गांव और गली की खाक छानी हो, ऐसा नजर तो नहीं ही आ सका है। फिर भी, वचन पत्र वाकई लुभावना है। इसके लिए कुछ लिखने के पहले ‘उपकार’ फिल्म याद आई थी और अंत में इसी फिल्म का गीत याद आता है, ‘कसमें, वादे, प्यार, वफा सब बातें हैं बातों का क्या?’ इस गीत का जिक्र कांग्रेस पर कटाक्ष नहीं है। अपितु यह उन कड़वे अनुभवों से उपजा डर है जो सत्ता में आए राजनीतिक दलों के व्यवहार में आम देखा जाता है।