नौ दशकों बाद कोई आचार्यश्री करेंगे रतलाम में चातुर्मास
रतलाम9 जुलाई (इ खबरटुडे)।16। सौधर्म बृहत्तपोगच्छीय त्र्ािस्तुतिक जैन श्वेताम्बर श्रीसंघ रतलाम के तत्वावधान में किसी आचार्य का नौ दशकों बाद रतलाम में चातुर्मास होने जा रहा है। राष्ट्रसन्त, जैनाचार्य श्रीमद् विजय जयन्तसेन सूरीश्वरजी म.सा. का 10 जुलाई को चातुर्मास के लिए रतलाम में भव्य मंगल प्रवेश होगा। 80 वर्षीय राष्ट्रसन्तश्री ने मुनि समय में 39 वर्ष पूर्व रतलाम में चातुर्मास किया था। उसके बाद आचार्यश्री के रुप में वे पहला चातुर्मास करेंगे।
जैनाचार्य श्रीमद् विजय जयन्तसेन सूरीश्वरजी म.सा. ने सन् 1954 में मात्र्ा 17 वर्ष की उम्र में दीक्षा अंगीकार की थी। उन्होंने 1984 में आचार्य पद ग्रहण किया। वे अब तक देश के 14 प्रांतों में डेढ़ लाख किलोमीटर पद विहार कर चुके हैं और 176 से अधिक भव्यात्माओं को दीक्षा प्रदान की है। देशभर में 171 साधु-साध्वीवृन्द उनकी आज्ञा से धर्म की प्रभावना कर रहे हैं। राष्ट्रसन्तश्री के करकमलों से 235 जिनमंदिरों की प्राण-प्रतिष्ठा हई है। करीब 250 गुरु मंदिरों का निर्माण भी उनकी प्रेरणा से हुआ है। उनके सान्निध्य में कई तीर्थों के पैदल यात्र्ाी संघ, नवाणु यात्र्ााएं, उपधान तप आदि धार्मिक क्रियाएं सम्पन्न हुई हैं । राष्ट्रसन्त का पदालंकरण आचार्यश्री को सन् 1991 में तत्कालीन उपराष्ट्रपति डॉ. शंकरदयाल शर्मा द्वारा प्रदान किया गया था। साहित्य मनीषी के रुप में उन्होंने हिन्दी, गुजराती, संस्कृत, कन्नड, तेलुगु सहित अन्य भाषाओं में 285 पुस्तकों का संपादन, संकलन और ल्ोखन किया है। राष्ट्रसन्तश्री के निर्देशन में अ.भा. श्री राजेन्द्र जैन नवयुवक परिषद्, तरुण, महिला, बालक, बालिका, बहू परिषद् की शाखाएं देशभर में संचालित हो रही हैं। कर्नाटक, आंध्रप्रदेश, राजस्थान और म.प्र. सरकारें आचार्यश्री को समय-समय पर राजकीय अतिथि का दर्जा देती रही हैं। रतलाम चातुर्मास के लिए भी म.प्र. सरकार ने यह दर्जा देकर श्रीसंघ का मान बढ़ाया है।
152 साल पुराना चातुर्मास इतिहास –
रतलाम में आचार्यश्री के चातुर्मास का इतिहास करीब 152 साल पुराना है, लेकिन 93 वर्ष पहले सन 1924 में आचार्यश्री यतीन्द्रसूरिजी मसा के चातुर्मास के बाद किसी आचार्य का चातुर्मास नहीं नहीं हुआ। दादा गुरूदेव राजेन्द्र सूरीश्वरजी मसा ने 18 वीं शताब्दी में रतलाम में पांच चातुर्मास किए थे, जबकि यतीन्द्र सूरीश्वरजी मसा ने सन 1898 से 1924 के बीच सात चातुर्मास किए। उन्होंने वर्ष 1964 से 1966 तक रतलाम में लगातार तीन चातुर्मास कर अभिदान राजेंद्र कोष की रचना भी की। वर्तमान जैनाचार्य, राष्ट्रसन्त, श्रीमद् विजय जयन्तसेन सूरीश्वरजी म.सा.ने वर्ष 1977 में रतलाम में मुनि के रूप में चातुर्मास कर चुके है। आचार्य के रूप में उनका रतलाम में यह पहला चातुर्मास होगा।
आचार्यश्री ने सार्थक किया मधुकर उपनाम –
जैनाचार्य श्रीमद् विजय जयन्तसेन सूरीश्वरजी म.सा. को मुनि काल में इंदौर के सुविख्यात पंडित करमलकर शाóी ने मधुकर उपनाम दिया था। इस नाम को आचार्यश्री ने पूर्णतः सार्थक किया है। उनके नाम के साथ मधुकर उपनाम हर जगह शोभित हुआ है। कविताओं, कहानियों, ल्ोखों आदि रचनाओं में यह नाम लाखों प्रतियों में जगमगा चुका है। राष्ट्रसन्तश्री प्रखर कवि हैं, उन्होंने कई आध्यात्मिक कविताएं रची हैं । उनके उपनाम मधुकर ने सफल कवि होने के व्यक्तित्व को उजागर किया है ।
दो माह में सजाया जयन्तसेन धाम –
सागोद रोड पर आचार्यश्री के चातुर्मास के लिए करीब चार बीघा क्ष्ोत्र्ा में नवोदित तीर्थ जयन्तसेन धाम में विकसित किया गया है । इसमें जिनेश्वर प्रभु का मंदिर, गुरु मंदिर के साथ साधु व साध्वीवृन्द के लिए दो उपाश्रय, धर्मशाला आदि के स्थायी निर्माण किए गए हैं, जबकि प्रवचन और भोजन के दो भव्य पाण्डाल तथा आवास की सर्वसुविधायुक्त अस्थायी व्यवस्थाएं भी की गई हैं। जयन्तसेन धाम को धार्मिक और आध्यात्मिक आकार देने के लिए पेटिंग और परिसर में घास भी लगाई गई है।