November 15, 2024

नौकरशाही की मनमानी के कारण,स्वतंत्रता सेनानी सम्माननिधि से वंचित

झाबुआ ,09जनवरी(ई खबर टूडे/ब्रजेश परमार)। स्वतंत्रता सेनानी सेठ कालूराम पोरवाल की धर्मपत्नी श्रीमती नजरबाई पोरवाल (९४ वर्ष) का तीन जनवरी २०१९ को मेघनगर (जिला झाबुआ) में निधन हो गया। उनके पति ने १९८८ में स्वतंत्रता सेनानियों को मिलने वाली सम्माननिधि के लिए आवेदन किया था, जिनके निधन के बाद उनकी विधवा ने भी आवेदन किया था ।लेकिन आजादी के ७२वें वर्ष तक नौकरशाही की मनमानी के कारण उन्हें सम्माननिधि नहीं मिल पाई और वह ९४ वर्ष की आयु में दुनिया से विदा हो गई।

तत्कालीन झाबुआ रियासत में १९१० में जन्म कालूराम पोरवाल के परिजन थांदला के नगर सेठ थे। १५ वर्ष की उम्र में गांधी सपेâद टोपी धारणकर कर विदेशी कपड़ों का बहिष्कार किया था। तत्कालीन अकाल की स्थिति में भूखे-नंगे वनवासियों के लिए अन्न की व्यवस्था की थी। (स्वतंत्रता सेनानी पूर्व सांसद पत्रकार) कन्हैयालाल वैद्य के साथी कालूराम पोरवाल ने झाबुआ रियासत में प्रजामण्डल की स्थापना में योगदान किया था। वह झाबुआ राज्य लोक परिषद के अध्यक्ष भी रहे। उन दिनों वह जैन धर्मदास विद्यालय थांदला में संचालित करते थे।

उन्होंने (स्वतंत्रता सेनानी पूर्व सांसद समाजवादी चिंतक) मामा बालेश्वर दयाल को जैन धर्मदास विद्यालय थांदला का प्रधानाध्यापक नियुक्त किया था। मामाजी ने इस विद्यालय में शिक्षण के साथ-साथ राजनैतिक कार्यकर्ता भी तैयार किए। उनमें जैन सन्त उमेश मुनि भी थे।

तत्कालीन झाबुआ रियासत में आंदोलन के कारण कन्हैयालाल वैद्य, मामा बालेश्वरदयाल, सेठ वरदीचंद जैन, कनिराम पटेल सहित कालूराम पोरवाल और उनके भाई सौभाग्यमल पोरवाल पर भी झुठे मुकदमे चलाए गए। सभी को जेल की सजा भी दी गई।

कालूराम पोरवाल बाद में मेघनगर में रहने लगे। आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने पर उन्होंने १९८८ में सम्माननिधि के लिए आवेदन किया था। उनके निधन के बाद श्रीमती नजरबाई पोरवाल ने भी सम्माननिधि के लिए आवेदन किया था।

मध्यप्रदेश सामान्य प्रशासन विभाग दो कारणों को लेकर (एक) उनके पति का भूमिगत रहकर स्वतंत्रता आन्दोलन की गतिविधियों में भाग लेने और (दूसरा) शासकीय अभिलेख अनुपलब्धता का प्रमाण-पत्र उपलब्ध नहीं करवाया जाने की पूर्ति का बहाना लेकर श्रीमती नजरबाई पोरवाल का सम्माननिधि आवेदन बार-बार अमान्य करता रहा।

जबकि वस्तु स्थिति यह रही कि झाबुआ जिला के तत्कालीन कलेक्टर पत्रों के माध्यम से इस बात की (कलेक्टर) पुष्टि करते रहे कि स्वतंत्रता सेनानी कालूराम पोरवाल ने म.प्र. स्वतंत्रता संग्राम सैनिक सम्माननिधि नियम १९७२ के नियम (आठ) के अनुसार भूमिगत रहकर स्वतंत्रता आंदोलन की गतिविधियों में भाग लिया है।

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