May 10, 2024

नेताजी के पोते ने कहा, मेरे पिता दाऊद नहीं थे, फिर क्यों हुई जासूसी

कोलकाता,19 सितम्बर (इ खबरटुडे)। नेताजी के रिश्तेदारों ने इस महान स्वतंत्रता सेनानी और उनके परिवार की कथित जासूसी की जांच कराने की मांग की है। सुभाष चंद्र बोस के भाई के पोते चंद्र बोस ने एक निजी चैनल से कहा कि सार्वजनिक किए गए नए दस्तावेजों से साबित होता है कि ताइवान में 18 अगस्त, 1945 को एक विमान दुर्घटना में नेताजी की कथित मृत्यु के बाद सरकार ने बोस परिवार की जासूसी कराई थी।

बोस ने कहा कि उन्होंने मेरे पिता अमिया नाथ बोस की जासूसी क्यों कराई? वह दाऊद इब्राहिम नहीं थे! फिर भी उन्होंने उन (अमिया नाथ बोस) पर नजर रखने के लिए खुफिया विभाग के 14 लोग तैनात कर रखे थे। भारतीय सरकार को एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी के परिवार की जासूसी कराने की जरूरत क्यों आन पड़ी? मैं मांग करता हूं कि पीएम (नरेंद्र) मोदी इसकी जांच कराएं। गौरतलब है कि अमिया नाथ बोस नेताजी के भतीजे थे।

वहीं, सुभाषचंद्र बोस से जुड़ी कुछ गोपनीय फाइलों के सार्वजनिक होते ही इस मुद्दे पर राजनीति शुरू हो गई है। भाजपा ने शुक्रवार को कहा कि केंद्र सरकार नेताजी के 70 वर्ष पहले लापता होने के रहस्य पर गंभीर है और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी इस मामले पर राजनीति न करें।

कांग्रेस ने कहा कि अगर नेताजी से जुड़ी फाइलें सार्वजनिक होती हैं तो यह स्वागत योग्य है। जबकि माकपा ने कहा कि नेताजी से जुड़ी फाइलों को गोपनीय सूची से हटाना तृणमूल कांग्रेस और भाजपा की मिलीभगत का नतीजा है। पश्चिम बंगाल सरकार ने नेताजी से जुड़ी 64 गोपनीय फाइलें शुक्रवार को सार्वजनिक कीं।

भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता एम जे अकबर ने कहा, इस मामले में कोई दूसरा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जितना सक्रिय नहीं रहा। वह बोस परिवार से मिले और मामले की जटिलता का परीक्षण करने के लिए समिति का गठन किया। हमें विश्वास है कि इस मामले में जो कुछ भी करने की जरूरत है, वह करेंगे। पार्टी के राष्ट्रीय सचिव सिद्धार्थनाथ सिंह ने कहा, हम प्रदेश सरकार से इस मुद्दे पर राजनीति नहीं करने का आग्रह करते हैं। जिन फाइलों को राज्य ने गोपनीय सूची से बाहर किया है, उनका संभवत: कोई अंतरराष्ट्रीय प्रभाव नहीं है। लेकिन केंद्र के पास जो फाइलें है, उनका विदेशों के साथ देश के संबंधों पर प्रभाव होगा।

कांग्रेस स्वागत करेगी
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मणिशंकर अय्यर ने कहा, अगर भाजपा नेताजी से जुड़ी फाइलें सार्वजनिक करती है, तो उसका खुले दिल से स्वागत किया जाएगा। उन्होंने यह टिप्पणी कोलकाता में एक कार्यक्रम के दौरान की। जब उनसे हाल में हुए इन खुलासों के बारे में पूछा गया कि कांग्रेस की सरकारों ने 1960 के दशक के मध्य तक नेताजी के परिवार के सदस्यों की जासूसी कराई थी तो उन्होंने कहा, मैंने वे फाइलें नहीं देखी हैं। मुझे पता नहीं कि उनमें क्या है। मैं उस पर कोई टिप्पणी नहीं कर सकता।

तृणमूल-भाजपा की मिलीभगत
माकपा पोलित ब्यूरो के सदस्य मोहम्मद सलीम ने आरोप लगाया कि नेताजी से जुड़ी फाइलों को गोपनीय सूची से हटाना तृणमूल कांग्रेस और भाजपा की मिली-भगत का नतीजा है। उन्होंने दावा किया कि भाजपा नेहरू-गांधी परिवार की प्रतिष्ठा कम करना चाहती है। इसके मद्देनजर भाजपा अब केंद्र के पास मौजूद फाइलों को सार्वजनिक करने से पहले चीजों को भांप लेना चाहती है।

केंद्र के तर्क में दम नहीं
नेताजी द्वारा स्थापित ऑल इंडिया फॉरवार्ड ब्लॉक (एआईएफबी) के वर्तमान महासचिव देबब्रत बिस्वास ने पश्चिम बंगाल के रास्ते पर चलते हुए केंद्र से शेष 135 फाइलों को भी सार्वजनिक करने की मांग की है। उन्होंने कहा, केंद्र की इस दलील में कोई दम नहीं है कि नेताजी से जुड़ी फाइलें सार्वजनिक करने पर कुछ देशों के साथ देश के संबंधों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।

गांधी को भी नहीं था भरोसा
साल 1997 में उजागर, 8 अप्रैल 1946 की एक खुफिया फाइल के मुताबिक महात्मा गांधी को भी नेताजी की मौत का विश्वास नहीं था। अगस्त 1945 में नेताजी की कथित मौत के आठ माह बाद गांधी ने बंगाल में एक प्रार्थना सभा में कहा कि मुझे भरोसा है कि नेताजी जिंदा हैं। चार माह बाद उन्होंने एक लेख लिखा कि ऐसी निराधार भावना पर भरोसा नहीं किया जा सकता। गांधी ने अंतरात्मा की आवाज पर यह कहा, जिसे कांग्रेसियों गुप्त सूचनाओं पर आधारित माना। इस फाइल में नेहरू को नेताजी का रूस से भेजा एक पत्र मिलने की बात भी दर्ज की गई थी।

कोलकाता पुलिस संग्रहालय में ये फाइलें रखी गईं
कुल 12,744 पन्नों की इन फाइलों को कोलकाता पुलिस के संग्रहालय में रखा गया है। सोमवार से आम लोग ये फाइलें देख और पढ़ सकेंगे।

परिजनों को डीवीडी सौंपी गई
इन सभी फाइलों की डीवीडी नेताजी के परिजनों को सौंपी गई। इस मौके पर पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी ने कहा, नेताजी के रहस्यमय ढंग से गायब होने का रहस्य 70 साल से सुलझाया नहीं जा सका है। हम नहीं जानते कि नेताजी के साथ क्या हुआ था, यह दुर्भाग्यपूर्ण है। आप फाइलों को विस्तार से पढ़ें।

फाइलें गोपनीय रखकर कई नेताओं ने बेईमानी की
नेताजी के पौत्र चंद्र बोस ने कहा,’ यह एक सही कदम है। अब यह केंद्र सरकार का कर्तव्य है कि वह अपने पास रखीं 130 फाइलें सार्वजनिक करे। नेताजी से जुड़ी ये फाइलें गोपनीय रखकर कुछ नेताओं ने देश से बेईमानी की है। यह केंद्र सरकार का कर्तव्य है कि वह उन नेताओं का पर्दाफाश करने के लिए उन फाइलों को सार्वजनिक करे।’ बोस के परिवार के सदस्य लंबे समय से यह मांग करते रहे हैं कि नेताजी से जुड़ी जानकारी सार्वजनिक की जानी चाहिए।

इन फाइलों में क्या है?
कोलकाता पुलिस कमिश्नर सुरजीत कार पुरकायस्थ ने बताया कि ये 64 फाइलें 1937 से 1947 के बीच की हैं। कुछ फाइलों में 300 तक पेज हैं। कुछ में हाथों से लिखे नोट्स हैं। खबर है कि इन फाइलों में नेताजी और उनके भाई शरद चंद्र बोस द्वारा एक दूसरे को लिखे गए पत्र भी हैं। ये पत्र 1947 तक के हैं, जबकि दावा किया जाता रहा है कि नेताजी की मौत 1945 में प्लेन क्रैश में हुई थी।

केंद्र क्यों छिपा रहा फाइलें
प्रधानमंत्री कार्यालय ने अगस्त में केंद्रीय सूचना आयोग को बताया था कि वह बोस से जुड़ी फाइलें सार्वजनिक नहीं कर सकता, क्योंकि इससे बाहरी देशों से संबंधों पर बुरा प्रभाव पड़ेगा। केंद्रीय गृह राज्य मंत्री किरण रिजिजू ने कहा, इससे पहले सर्वोच्च राष्ट्रीय हितों को देखना है।

कई राज सामने आएंगे
ये फाइलें मंगलवार को कोलकाता की राइटर्स बिल्डिंग में पहुंचाई गई थीं। इन फाइलों में क्या है, यह अभी तक विस्तार से पता नहीं चल पाया है। मगर माना जा रहा है कि इनसे नेताजी की मौत या उन्हें आखिरी बार कहीं देखे जाने के रहस्य से पर्दा उठ सकता है।

केंद्र भी फाइलें सार्वजनिक करे
आज ऐतिहासिक दिन है। लोगों को देश के बहादुर बेटे के बारे में  जानने का पूरा अधिकार है। हमने शुरुआत की है। केंद्र सरकार को भी नेताजी से जुड़ी 130 फाइलें सार्वजनिक करनी चाहिए। आप सच को दबा नहीं सकते। इसे बाहर आने दें।

– ममता बनर्जी, सीएम, पश्चिम बंगाल

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