धरती की लाखों परिक्रमा करने का जो फल मिलता है, वही सिंहस्थ में शिप्रा स्नान से ही मिलता है
उज्जैन 02 दिसम्बर(इ खबरटुडे)।आस्था के कुम्भ सिंहस्थ मेले के महापर्व में देश के प्रमुख 13 अखाड़े अपनी महिमा के साथ उज्जयिनी की इस पावन तपोभूमि में पधार कर तपस्या, साधना और विद्धता से लाखों श्रद्धालुओं को लाभान्वित करेंगे।
अपनी अमृतवाणी से परमोंधर्म का सबक सिखलायेंगे। इसी के साथ ही सिंहस्थ महापर्व में संतों महंतों द्वारा अपने प्रवचन, यज्ञ, भजन-कीर्तन और स्वाध्याय से श्रद्धालुओं में एक वातावरण बनेगा। पूरी मानवता को यहां से संदेश मिलेगा। मान्यता है कि, हजारों यज्ञों, सैकड़ों वाजयेपी यज्ञों तथा धरती माता की लाखों परिक्रमा करने पर जो फल मिलता है, वह फल सिंहस्थ महापर्व के दौरान मोक्ष दायिनी शिप्रा में स्नान करने से प्राप्त हो जाता है।
सिंहस्थ में शिप्रा स्नान के साथ ही करोड़ों लोग सुगंधित वातावरण से भी सराबोर होंगे
संत और समाज के इस महासमागम सिंहस्थ महापर्व में इंसानी बिरादरी एकत्रित होती है। महाकुम्भ सिंहस्थ में दूर-दराज से आकर जहां शिप्रा में लाखों श्रद्धालु पतितपावन शिप्रा नदी में स्नान करेंगे वहीं संत महंतों के हवन-यज्ञ से वातावरण में फैली सुगंधित हवाओं से भी सराबोर होंगे।
वैशाख माह की धूप में यह वातावरण उन्हें अत्यधिक सुख देगा। अनेकों संत-महंत अपने चारो ओर अलाव लगाकर घण्टों साधना में लीन रहेंगे, वहीं कई महंत-संत घी एवं अन्य हवन सामग्री से पर्यावरण को तरोताजा कर श्रद्धालुओं को मुग्ध करेंगे। सिंहस्थ महापर्व में जहां श्रद्धालु मोक्षदायिनी शिप्रा में स्नान करेंगे वही संतों के हवन पूजन से सुगंधित वातावरण से भी सराबोर होकर अपने मन को प्रफुल्लित करेंगे।
सिंहस्थ महापर्व का आध्यात्मिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से सर्वाधिक महत्व
बारह वर्ष में एक बार उज्जयिनी में सिंहस्थ के इस बड़े मानवीय समागम में सिर्फ भारत देश से ही नहीं बल्कि विश्व के अनेक हिस्सों से श्रद्धालु आस्था से जुड़े चले आते है। ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व की नगरी उज्जयिनी जन आस्थाओं का केन्द्र बिन्दु है। यहा पर ज्योतिर्लिंग श्री महाकालेश्वर भगवान शिव तो विराजमान है ही, वहीं गुरू गृह के प्रत्येक बारहवें साल में सिंह राशि में आने से सिंहस्थ महापर्व आध्यात्मिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी सर्वाधिक महत्व बढ़ जाता है। महाकाल के चरणों से स्पष्ट करती मोक्षदायिनी शिप्रा नदी में स्नान करने से लाभ और पुण्य की प्राप्ति होती है, वहीं अनुष्ठान का लाभ भी स्वमेव मिल जाता है। कहा जाता है कि सिंहस्थ महापर्व में मानव समागम से देवता भी स्नान के लिए उज्जयिनी की धरा पर आ जाते है।
अमृत का अर्थ जो कभी मृत नहीं होता
उज्जैन में महाकुम्भ और सिंहस्थ एक साथ इसलिए आते है कि यहां गुरू का सिंह राशि में इस पर्व पर आना और दूसरे पर्व की पौराणिक महत्ता यह है कि धरती पर देवताओं द्वारा समुद्र मंथन से प्राप्त अमृत की बूंदों का कुंभ से गिरना दो संयोग विद्यमान है। उज्जैन नगर ऐसे भी पावन नगर है, जो पुरातनकाल से सिद्ध स्थल के रूप में भी माना गया है। मानव के जीवन में अमृत का अर्थ जो कभी मृत नहीं होता है। इसलिए करोड़ों श्रद्धालु सिंहस्थ में इसी अमृत और मुक्ति को पाने के लिए उज्जयिनी के इस महाकुंभ में आते है।