May 7, 2024

जेवीएल के ३६५ श्रमिकों का प्रबन्धन से समझौता

२७ करोड की देनदारी पर १५ करोड ११ लाख में सहमत हुए श्रमिक
रतलाम,१५ मार्च(इ खबरटुडे)। लम्बे समय से कानूनी लडाई में उलझे जयन्त विटामिन्स लिमिटेड के ३६५ श्रमिकों ने आखिरकार नए प्रबन्धन के साथ समझौता कर लिया। इस समझौते पर उच्च न्यायालय ने भी मोहर लगा दी है। निर्दलीय विधायक पारस सकलेचा समर्थक १०८ श्रमिकों को न्यायालय ने जवाब के लिए २६ मार्च तक का समय दिया है,हांलाकि इनमें से एक श्रमिक ने प्रबन्धन के साथ व्यक्तिगत रुप से समझौता कर लिया है।उल्लेखनीय है कि विगत २७ फरवरी को जेवीएल का सौदा होने के बाद स्थानीय व्यवसायी राजेन्द्र बाजपेयी को जेवीएल के नए डायरेक्टर के रुप में नामांकित किया गया था। श्री वाजपेयी के नामांकन के बाद इस बात की संभावनाएं बनने लगी थी कि श्रमिकों के विवाद का निपटारा समझौते से हो जाएगा।
श्री वाजपेयी ने जेवीएल का प्रबन्धन हाथ में लेते ही इस दिशा में पहल शुरु कर दी और सबसे पहले पूर्व में समझौता कर चुके ३६५  श्रमिकों की विभिन्न यूनियनों से सम्पर्क किया। श्री वाजपेयी के प्रस्ताव पर ३६५ श्रमिक समझौते के लिए राजी हो गए।
उच्च न्यायालय में हुआ समझौता
जेवीएल प्रबन्धन ने श्रमिकों से समझौता उच्च न्यायालय की इन्दौर खण्डपीठ के समक्ष किया जहां श्रमिकों के बकाया वेतन भुगतान के प्रकरण विचाराधीन थे। अधिकृत जानकारी के मुताबिक जेवीएल पर श्रमिकों के वेतन भत्तों की कुल करीब २७ करोड रुपए की देनदारी थी। समझौता कुल १५ करोड ११ लाख रुपए में किया गया है। इस तरह श्रमिकों को उनकी बकाया राशि का करीब ५५ से ६० प्रतिशत राशि समझौते के तहत एक मुश्त  मिल जाएगी।
तीन माह में होगा भुगतान
इ खबर टुडे को मिली जानकारी के मुताबिक प्रबन्धन और श्रमिकों के बीच हुए समझौते को १३ मार्च को उच्च न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया गया। उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति एनके मोदी के समक्ष प्रस्तुत इस समझौते के बाद न्यायमूर्ति श्री मोदी ने शेष रहे १०८ श्रमिकों को जवाब देने के लिए एक सप्ताह का समय देते हुए प्रकरण की अगली सुनवाई २६ मार्च नियत की है। समझौते के मुताबिक प्रबन्धन समझौते की राशि का भुगतान तीन माह के भीतर कर देगा। इसमें श्रमिकों को उनकी बकाया राशि का दस प्रतिशत तत्काल देते हुए शेष राशि  का चैक दिया जाएगा।
क्या करेंगे शेष श्रमिक
नए प्रबन्धन के साथ ३६५ श्रमिकों का समझौता हो जाने के बाद अब बडा सवाल है कि निर्दलीय विधायक पारस सकलेचा के नेतृत्व में अलग से लड रहे १०८ श्रमिक अब क्या करेंगे। हांलाकि इनमें से एक श्रमिक किरण खडीकर ने उच्च न्यायालय के समक्ष ही प्रबन्धन से समझौता कर लिया। श्री खडीकर को प्रबन्धन ने उनकी राशि का चैक भी सौंप दिया है।
सकलेचा ने बिगाडा था पहले भी समझौता
जेवीएल का इतिहास जानने वाले जानते है कि करीब एक दशक पूर्व जब आशाराम जी ने जेवीएल का सौदा किया था उस समय भी कोलकाता निवासी उद्योगपति ओपी मल्ल ने श्रमिकों के समक्ष समझौते की पेशकश की थी। इस समझौते पर मान्यता प्राप्त यूनियनों के ३६५ श्रमिक राजी हो गए थे लेकिन तत्कालीन महापौर पारस सकलेचा के नेतृत्व में १०८ श्रमिकों ने इस समझौते का विरोध कर दिया था। परिणाम यह हुआ था कि उद्योगपति श्री मल्ल ने समझौते से हाथ खींच लिए और जेवीएल के सारे श्रमिक कानूनी लडाई लड कर अपनी बकाया राशि हासिल करने के लिए मजबूर हो गए थे। इसका नतीजा यह हुआ कि श्रमिकों के वेतन भुगतान के लिए हर बार आरआरसी जारी होती रही लेकिन उन्हे रुपया नहीं मिल पाया। इस संघर्ष में अनेक श्रमिकों के घर बरबाद हो गए तथा कई की असमय ही मौत हो गई। नई परिस्थितियों में समझौते से दूर रहे १०७ श्रमिक अब क्या कदम उठाएंगे? यह बडा सवाल है।
न्यायालय का रुख कडा
उच्च न्यायालय में समझौते के वक्त मौजूद सूत्रों के मुताबिक उच्च न्यायालय ने समझौते के विरोध पर कडा रुख दर्शाया है। हांलाकि न्यायालय की आदेश पत्रिका में ऐसा कोई हवाला नहीं है लेकिन समझौते से दूर रहने वाले श्रमिकों को इस प्रकार के संकेत दिए गए है कि जब बहुसंख्यक श्रमिक समझौते पर राजी है तो उनका विरोध अधिक समय तक टिक नहीं पाएगा। वैसे भी समझौते से बाहर रहे १०८ श्रमिकों में से एक ने प्रबन्धन के साथ समझौता कर लिया है। सूत्रों के मुताबिक इनमें से कई और भी समझौता करने को इच्छुक है। ऐसे में यह पूरा मुद्दा निर्दलीय विधायक पारस सकलेचा के लिए बेहद शर्मनाक साबित होगा। यदि उन्होने पूर्व में हुए समझौते को ही स्वीकार कर लिया होता तो अनेक परिवार बरबाद होने से बच गए होते।

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