जेएनयू प्रकरण-न्यायालय बनने की कोशिश में मीडीया और पार्टियां
पिछले करीब दो हफ्तों से देश का आम आदमी हैरान है,कि वह जिसे मां मानता रहा है,उस भारत माता को निरन्तर अपमानित किया जा रहा है। आतंकवादियों के हमलों से हैरान देशवासियों के लिए पिछले करीब सात दशकों में यह पहला मौका है,जब मुख्य धारा के कंाग्रेस और कम्यूनिस्ट पार्टियों जैसे राजनीतिक दलों के नेता देशद्रोहियों की पैरवी इतने खुले रुप से करते नजर आ रहे है। इस बात का भी शायद पहला मौका है,जब मीडीया का एक वर्ग देशद्रोही बातों को नजरअंदाज कर देने की सलाहें दे रहा है। यह बात भी हैरान करने वाली है कि न्यायालय के निर्णय का होने से पहले ही कुछ नेता और मीडीया के लोग देशद्रोहिता के मामले में बंद छात्रनेता को दोषमुक्त कर चुके है।
जेएनयू में लगे देश विरोधी नारे पूरा देश सुन रहा है। इन नारों के बाद हो रही गतिविधियों पर भी हर एक की नजर है। देश की राजधानी दिल्ली से लेकर देश के दूर दराज के छोटें गांवों तक,बडे से लेकर छोटे आदमी तक,हर किसी की जुबान पर इसी मुद्दे की चर्चा है। गली मोहल्लों चौराहों पर चर्चाएं हो रही है। देश के आम लोग देख रहे है उन नेताओं और बुध्दिजीवियों की करतूतें ,जो येन केन प्रकारेण देशद्रोही तत्वों को नजर अंदाज कर दिए जाने की कोशिशें कर रहे है।
एक बडे टीवी न्यूज चैनल के एक स्वनामधन्य एंकर ने सत्तारूढ पार्टी के मंत्री का इंटरव्यू लेने के दौरान कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने किसी प्रकरण में यह निर्धारित किया है कि देश के खिलाफ नारे लगाने को देशद्रोह नहीं कहा जा सकता? भारत तेरे टुकडे होंगे इंशा अल्लाह,इंशा अल्लाह जैसे नारे लगाए जा रहे हो,और टीवी का एंकर कहे कि यह देशद्रोह नहीं है। अपने स्कूल में हर सुबह भारत मााता की जय बोलने वाला सामान्य समझ का नन्हा बच्चा भी बेहिचक ऐसे नारों को देशद्रोह कह सकता है,लेकिन टीवी न्यूज का विद्वान एंकर ऐसा नहीं मानता। एक टीवी न्यूज के संपादक शिरोमणि ने एक प्रतिष्ठित दैनिक में लेख लिखा कि हां मैं देश द्रोही हूं। इस लेख में उन्होने येन केन प्रकारेण यह सिध्द करने का प्रयास किया है कि पुलिस द्वरा गिरफ्तार किए गए कन्हैया कुमार ने सिर्फ सरकार विरोधी नारे लगाए है,इसे देशद्रोह नहीं कहा जा सकता।
ये विद्वान लोग भूल गए कि अभी कुछ ही दिनों पहले गुजरात के पटेल आरक्षण आंदोलन के नेता हार्दिक पटेल को भी देशद्रोह की धाराओं के तहत गिरफ्तार किया गया था। पटेलों के लिए आरक्षण की मांग कर रहे हार्दिक पटेल ने कम से कम भारत के टुकडे करने और भारत से आजाद होने के नारे तो नहीं लगाए थे। हाई कोर्ट में जब इन आरोपों को हटाने की मांग की गई,तब हाइकोर्ट ने इससे इंकार कर दिया था। उस समय किसी न्यूज चैनल को इसपर एतराज नहीं हुआ था। इन विद्वानों से पूछा जाना चाहिए कि टीवी न्यूज के एंकर होने की वजह से क्या इनका दर्जा देश के हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट से भी ऊं चा हो गया है?
अपने टीवी चैनल को न्यायालय समझते हुए एक चैनल ने बाकायदा कन्हैया कुमार को पूर्णत: निर्दोष साबित कर दिया। इस कार्यक्रम में बुलाए गए कांग्रेस और वामपंथी नेतओं ने भी चैनल की हां में हां मिलाते हुए इस सारे घटनाक्रम को नरेन्द्र मोदी और आरएसएस की साजिश करार दे दिया। देश के कानूनी ढांचे की सामान्य समझ रखने वाले किसी व्यक्ति के लिए इस तरह की बातें बेहद हैरान करने वाली होती है। वह ऐसे अतिविद्वान पत्रकारों और नेताओं से पूछना चाहता है कि देश में न्यायालय क्यों चलाए जा रहे है। किसी के अपराधी होने का निर्णय करने का अधिकार टीवी चैनलों को ही क्यो नहीं दे दिया जाता?
इन नेताओं और मीडीया वालों से पूछा जाना चाहिए कि उन्हे पुलिस और न्याय प्रक्रिया की थोडी भी समझ है या नहीं। किसी व्यक्ति के विरुध्द एफआईआर दर्ज होने के बाद पुलिस यदि उसे गिरफ्तार करती है,तो कानून के मुताबिक चौबीस घण्टों के भीतर उक्त व्यक्ति को न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करना होता है। पुलिस न्यायालय के समक्ष आरोपी को प्रस्तुत करती है और उक्त आरोपी के विरुध्द उस समय तक उपलब्ध साक्ष्यों को भी न्यायालय में प्रस्तुत करती है। इन साक्ष्यों के आधार पर न्यायालय आरोपी को पुलिस रिमाण्ड पर देने अथवा नहीं देने का निर्णय करती है। यानी कि प्रक्रिया के मुताबिक किसी व्यक्ति को जेल में भेजने,रखने या न रखने का अधिकार सिर्फ और सिर्फ न्यायालय के पास होता है न कि पुलिस या सरकार के पास। जब कन्हैया कुमार न्यायालय के आदेश पर जेल में भेजा गया है,तब किसी टीवी चैनल को यह अधिकार कैसे मिल सकता है कि वह कन्हेया कुमार के दोषी होने या निर्दोष होने पर बहस कराए। कुछ नेतओं ने ट्विटर पर लिखा कि कन्हैया कुमार के खिलाफ पाए गए साक्ष्यों को जनता के बीच साझा किया जाना चाहिए। इन नेताओं का सामान्य ज्ञान इतना कम कैसे हो सकता है कि वे यह तक नहीं जानते कि जब कोई मामला न्यायालय के समक्ष होता है,पुलिस न्यायालय के अलावा किसी अन्य को साक्ष्य नहीं बता सकती। कन्हैया की जमानत के लिए सीधे सुप्रीम कोर्ट पंहुचे कतिपय विद्वानों को सुप्रीम कोर्ट ने भी इसीलिए फटकार लगाई थी कि वे प्रक्रिया का उल्लंघन करते हुए सीधे सुप्रीम कोर्ट पंहुच गए थे।
दुनिया में और कोई देश ऐसा नहीं हो सकता,जहां देश विरोधी नारे लगाए जाने के बाद हुई कार्यवाही पर बहस होती हो। बहस होती भी है,तो इस बात पर कि कार्यवाही कितनी कडी की जाए। हाल का ताजा उदाहरण हमारे पडोसी पाकिस्तान का है,जहां एक धोनी प्रशंसक ने भारत जिन्दाबाद का नारा लगाया था,उसे तत्काल सींखचों के पीछे भेज दिया गया। पूरे पाकिस्तान में इस कार्यवाही के औचित्य पर कोई बहस नहीं हुई। लेकिन इस मामले में हम पाकिस्तान से भी गए गुजरे साबित हो रहे है।
यूपीए सरकार के दिनों से लेकर अब तक मोदी सरकार और आरएसएस पर यह आरोप लगाया जाता रहा है कि वे आतंकवाद के नाम पर निर्दोष मुस्लिम युवकों को फंसा देते है। हैदराबाद के रोहित वेमूला मामले में आरएसएस और मोदी सरकार पर यह अरोप मंढा गया कि वे दलित विरोधी है इसलिए रोहित वेमूला के खिलाफ कार्यवाही की गई। लेकिन अब कन्हैया न तो मुस्लिम है और न ही अभी तक किसी ने उसके दलित होने का दावा किया है। आरएसएस के असर में रहने वली मोदी सरकार ने देशद्रोह के आरोप में अन्य मुस्लिमों को छोडकर सबसे पहले हिन्दू कन्हैया को गिरफ्तार किया है। ऐसे में मोदी सरकार द्वारा की गई कार्यवाही की प्रशंसा होनी थी,लेकिन यहां तो उल्टा हो रहा है। हैरानी की बात यह भी है कि सरकार का पक्ष रखने वाले नेता भी इस तथ्य को रेखांकित नहीं करवा पाए।
बहरहाल,देश का आम आदमी मौन रहकर सुनता है और एक बार में निर्णय कर देता है। अभी पिछले आम चुनाव में आम आदमी ने फैसला किया तो कांग्रेस विपक्षी दल भी नहीं बन पाई। देश के आम आदमी में गुस्सा है। गुस्सा तो कांग्रेस के उन हजारों कार्यकर्ताओं में भी है,जो भारत माता की जय जयकार करते है। अपने नेताओं और खासतौर पर युवराज की हरकतों से वे बुरी तरह बौखलाए हुए है। उन्हे डर यह है कि युवराज की ये हरकतें कहीं सचमुच कंाग्रेस को इतिहास के कूडेदान में न फेंक दें।