चुनावी चख-चख – 7
चुनावी जंग से अब हिम्मत नदारद
सातवां दिन- 17 नवंबर
अभी दो दिन पहले तक चुनावी जंग के तीनों दावेदार हिम्मत पर अपना कापीराइट जता रहे थे और खुद को हिम्मतवाला बता रहे थे। शुरुआत झुमरु दादा ने की थी। धानमण्डी चौराहे पर झुमरु दादा ने पांच साल पहले के खलनायक को बडे जोर शोर से जननायक बताया था। उस बदलाव के पीछे उन वोटों का लालच झलक रहा था जो चौमुखी पुल पर सेठ के पीछे नजर आए थे। लेकिन झुमरु दादा को जल्दी ही पता चल गया कि यह दांव उल्टा पड रहा है। लोग घास तो खाते नहीं। जैसे ही यह बात सुनी,कहने लगे कि झुमरु दादा वास्तव में झूठों की बादशाहत के लायक है। शनिवार को बाजना बस स्टैण्ड की सभा में झुमरु दादा ने सेठ का जिक्र ही गोल कर दिया। फूल छाप पार्टी के मंच से भी सेठ का जिक्र नदारद था। इन्हे भी लगा कि सेठ का ज्यादा जिक्र होना तकलीफ दे सकता है। जिक्र हुआ भी तो पिछले चुनाव के प्रत्याशी के रुप में। किसी भी वक्ता ने नाम नहीं लिया। हांलाकि हर कोई ये बात समझ रहा है कि चुनाव में सेठ का रुख काफी असर डालेगा। देखना बस यही है कि सेठ का रुख होगा किधर?
मेरे पास गारंटी है,तेरे पास क्या है?
रतलाम के बाजार में इस बार चाइना के माल की धूम है। सवाल यह है कि चाइना का माल है कौन? झुमरु ने गाने बजाए तो ये सवाल फिजाओं में तैर गया? झुमरु ने बडे ड्रामेटिक अंदाज में भाषण के साथ फिल्मी गाने का तालमेल बैठा कर भैया जी को चाइना का माल साबित करने की कोशिश की। लेकिन अब भैयाजी ने भी पुरजोर तरीके से जवाब दे दिया कि उनके पास तो गारंटी वारंटी और ब्राण्ड सबकुछ है। झुमरु के पास किसकी गारंटी वारंटी है? भैयाजी का यह जवाब शहर के चौराहों चौराहों पर सुनाया जा रहा है। अब देखते है कि झुमरु दादा चाइना के माल की कहानी जारी रखेंगे या कि सेठ जी के जिक्र की ही तरह इसे भी गोल कर जाएंगे?
सांडों में भी लोकप्रिय
इन्सानों में झुमरु दादा की लोकप्रियता कितनी है इस पर वाद विवाद किया जा सकता है,लेकिन गाय ढोरों में उनकी लोकप्रियता को लेकर कोई प्रश्न नहीं उठाया जा सकता। पिछले चुनाव में जब उनकी सभाओं में भीड उमडती थी,तब भी शहर के आवारा साण्डों में उनका भारी जिक्र होता था। इसी जिक्र का नतीजा था कि उनकी तकरीबन हर आम सभा में साण्ड दौरा करने आया करते थे। झुमरु दादा भी साण्डों के बीच अपनी लोकप्रियता को यह कह कर भुनाते थे कि ये विरोधियों का खेल है,जो सभा बिगाडने के लिए सभा में साण्ड भेज देते है। साण्डों में उनकी लोकप्रियता अब भी बरकरार है। साथ ही उन्हे इस फार्मूले से इस बार भी फायदा नजर आ रहा है। यही वजह है कि इस बार भी उनकी सभाओं में आवारा साण्ड आने लगे है। शनिवार की सभा पहली सभा थी जब साण्ड सभा में पंहुचा था। आने वाली सभाओं में उम्मीद की जाती है कि आवारा साण्ड नजर आते रहेंगे और झुमरु को विरोधियों पर आरोप लगाने का मौका मिलता रहेगा। अब ये मत कह दीजिएगा कि साण्ड तो खुद झुमरु दादा ही बुलवाते है। ये तो उनकी लोकप्रियता है,जो साण्ड सभाओं में आते है।
पंजा छाप पर फूल छाप की मेहरबानी
फूल छाप के भैयाजी एक नम्बर में अरबपति है। शायद इसीलिए इतनी बातें हो रही है। कोई कह रहा है कि शहर के सभी समाजों को बडी बडी भेंट दिए जाने के वायदे किए जा चुके है। कोई कहता है कि पंजा छाप पार्टी के नाराज पार्षदों को फूल छाप पार्टी की तरफ से एक एक बडी गड्डी पंहुचा दी गई है। ताकि वे अपनी नाराजगी बरकरार रहे और पंजा छाप वाली बहन जी के लिए काम ना करें। जब भी लोग चुनावी चख-चख करते है,किसी ना किसी तरह से गड्डियों का जिक्र जरुर आ जाता है। जितने लोग उतनी बातें। गड्डियां पाने वालों की फेहरिस्त भी काफी लम्बी बताई जाती है। चुनौती हिसाब रखने वाले सरकारी साहबों के लिए है,लेकिन लगता है कि वे भी गाफिल है।