चुनावी चख चख
रुठने मनाने का खेल खत्म,अब पटाने की बारी
(पहला दिन-11 नवंबर)
फूल छाप और पंजा छाप दोनो ने ही अपने नाराज नेताओं को मनाने की कोशिशें की। फूल छाप में तो पहले से नाराज सेठ जी ने जावरा और आलोट के नाराज नेताओं को मना लिया। लेकिन पंजा छाप वाले अपने सभी नाराज लोगों को नहीं मना पाए। नगर निगम के पंजा छाप नेता तो राजी मर्जी से परचा ले आए,लेकिन जावरा फाटक वाले नेता ने किसी की नहीं सुनी। जानने वाले कह रहे है कि वे अभी दो-चार दिन माहौल देखने के चक्कर में है। माहौल जमा तो ठीक वरना समर्थन दे देंगे। हांलाकि मैदान में उनका मौजूद रहना भैया जी के लिए फायदे का सौदा हो सकता है। इसलिए ये भी कहा जा रहा है कि उनके खडे रहने की व्यवस्था भैया जी करवा ही देंगे।
नहीं मिला आटोरिक्शा
परचे वापस होने के बाद बिना पार्टी वाले नेता अपने अपने निशान के लिए लाइन में लगे रहे। मजेदार बात यह थी कि चार चार निर्दलीयों को आटो रिक्शा पसंद आया था। सरकार की दिक्कत ये थी कि आटो रिक्शा एक ही था। पिछली बार इंजिन की सवारी कर विधायक बने नेताजी भी इस बार आटो रिक्शा में बैठने के चक्कर में थे। लेकिन सरकार ने जब लाटरी खोली तो आटो रिक्शा जावरा फाटक वाले नेताजी को मिल गया। विधायकी गंवा चुके नेताजी को जब आटो नहीं मिला तो वे टेलीफोन लेने को राजी हो गए। अब वे वोटरों को मेरे पिया गए रंगून वहां से किया है टेलीफून वाला गाना सुनाने के चक्कर में लग गए है।
झुमरु वाला गाना
वोटरों को पटाने की बात करें तो विधायकी गंवा चुके नेताजी कई दिनों से अलग अलग निशान लेकर लोगों को पुराने फिल्मी गाने सुना रहे हैं। लोग उन्हे झुमरू कहते है तो उन्होने भी झुमरू वाला गाना लोगों को सुनाना शुरु कर दिया। तो कुल मिलाकर गली गली मोहल्ले मोहल्ले तक जाने के मामले में वे सबसे आगे है। ये अलग बात है कि शहर के कई ईलाकों में लोग उन्हे डांट फटकार कर भगा रहे है और मोहल्लों में घुसने तक नहीं दे रहे है।
कोठी बनी धर्मशाला
दूसरे नम्बर पर भैया जी है। बडी बडी महंगी गाडियों में घुमने वाले भैया जी को पैदल चलना भारी पड रहा है। मैले कुचैले गन्दे कपडे पहने गरीब गुरबों से हाथ मिलाने में भी उन्हे जोर आता है। सादा पानी पीने से उनकी तबियत नासाज हो सकती है। इसलिए बिस्लरी की बाटले पीछे चल रही गाडियों में रखी रहती है। भैया जी के आजू बाजू भी हां जी हां जी करने वालों की भीड रहती है। स्टेशनरोड की उनकी कोठी धर्मशाला में तब्दील हो गई है। इलेक्शन का खर्चा गिनने वाले वहां जाकर देखेंगे तो पता चलेगा कि हर दिन भण्डारा चल रहा है। यहां लोग काम करने की बजाय चेहरा दिखाने की चिन्ता में लगे रहते है। लोग चेहरा दिखाने की चिन्ता कर रहे है,लेकिन भैया जी परचों से चिन्तित है।
नीचे कुरते ऊंचे पाजामे
पंजा छाप वाली बहन जी की बात करें। पंजा छाप वाली बहन जी के सलाहकारों को पता है कि नीचे कुरते उंचे पाजामे वाले साहबान अगर खुश हो गए तो उनकी निकल पडेगी। नतीजा यह है कि बहन जी तो परचा दाखिल करने के फौरन बाद ही उनके मोहल्ले में जा पंहुची। हांलाकि बहन जी को चुनावी दफ्तर ढूंढने में ही बहुत वक्त लग गया लेकिन उनकी सारी मशक्कत उसी मोहल्ले पर हो रही है।
चुनावी जंग का पहला दिन है। तेरह दिन बाद चौदहवां दिन बटन दबाने का दिन है। तब तक हर दिन इलेक्शन की जंग के हर पहलू को हम इसी तरह देखेंगे और दिखाएंगे।