घोषणा के साथ ही फूटेगा बगावत रूपी टाइम बम
उज्जैन, 21 अक्टूम्बर ( इ खबर टुडे /ब्रजेश परमार )। प्रत्याशियों की घोषणा के साथ ही दोनों ही प्रमुख राजनैतिक दलों में बगावत रूपी टाइम बम फूटने की संभावना पूरी तरह प्रबल है। जहां तक बात सत्ताधारी भाजपा की है वहां पहले से ही इसको लेकर सजगता बरती जा रही है। विपक्षी इसे लेकर अब तक कमजोर स्थिति में है। यह टाइम बम कितना भी कर लिया जाए प्रत्याशियों की घोषणा के बाद सही टाइम पर फूटना तय है। वर्ष 1998 और 2008 इसके साक्षात उदाहरण रहे हैं। जहां तक भाजपा का सवाल है 1998 और 2008 में भाजपा बेहतर तरीके से इसे मैनेज करने में सफल रही है और कांग्रेस पूरी तरह से असफल साबित हुई है।
भाजपा में हमेशा से अनुशासन का दंड बेहतर तरीके से चलाया जाता रहा है। यही वजह रही कि वर्ष 1998 और 2008 में जिले की सात विधानसभा क्षेत्रों में से मात्र 1-2 सीटों पर ही भाजपा को कांग्रेस के मुकाबले इस दंड का प्रयोग सख्त रूप से करना पड़ा। इसके बावजूद उसे सेबोटेज की राजनीति से परे नहीं माना गया जबकि विपक्षी कांग्रेस को पूरी तरह से इन 10 वर्षों में टाइम बम के विपरित स्थितियों में अपना कार्यकाल काटना पड़ा है।
भाजपा एक-दो सीट पर कांग्रेस कई सीटों पर
वर्ष 2008 के चुनाव परिणाम को ही ले लिया जाए तो उौन दक्षिण से लेकर बड़नगर, तराना, घट्टिया में बागी प्रत्याशियों ने कांग्रेस की पूरी शान को बिगाड़ कर इन बागी दिग्गजियों ने रख दिया। अधिकृत प्रत्याशी के विपरित देखा जाए तो कुल जमा इन टाइम बम रूपी बागी प्रत्याशियों ने पूरी छवि को धूमिल कर रख दिया। कांग्रेस ऐसी स्थिति में पूरी तरह से कमजोर साबित हुई।
भाजपा में टाइम बम डिस्पोजल एस्क्वॉड
कांग्रेस के विपरित भाजपा ने बगावत रूपी टाइम बम डिस्पोजल स्क्वॉड की पूर्व से ही स्थापना कर रखी है। वर्ष 2008 के चुनाव में मात्र महिदपुर में ही भाजपा को बगावत रूपी बम का सामना करना पड़ा। सत्ताधारी होने के कारण इस बार भाजपा को पिछली बार की अपेक्षा बहुत जोर लगाना पड़ेगा। भाजपा के पास संघ के मंझे हुए मास्टर भी होने से इस पर नियंत्रण होना संभव माना जा रहा है लेकिन यह उतना आसान नहीं है जितना समझा जा रहा है। वैसे भाजपा बगावत रूपी टाइम बम पर अभी से नियंत्रण करने में जुट गई है। डिस्पोजल स्क्वॉड ने अपना काम पिछले दिनों हुई बैठक से कर दिया है। माखनसिंहजी इस बम विस्फोटक स्क्वॉड के प्रभारी बनाए गये हैं। वे जानते हैं बम के रूप में कौन-कौन लोग किस तरह से और क्यों काम कर रहे हैं।
कांग्रेस अब भी कमजोर
वर्ष 2008 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की ओर से उौन दक्षिण, बड़नगर, तराना, घट्टिया आदि क्षेत्रों में बागी दिग्गज प्रत्याशियों ने अपनी आमद दर्ज की थी। तत्कालीन समय में प्रदेश अध्यक्ष सुरेश पचौरी और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजयसिंह ने जोरआजमाईश की। परिणाम कुछ खास नहीं रहे। हालत यह रही कि उौन दक्षिण में अधिकृत प्रत्याशी के मुकाबले बागी प्रत्याशी ने अधिक मत हांसिल किये। बड़नगर में बागी प्रत्याशी के कारण अधिकृत प्रत्याशी बागी उम्मीदवार की वजह से कुछेक हजार मतों से चोट खा गये। दोनों ही दलों में बागी प्रत्याशियों को लेकर वर्तमान में अंदर ही अंदर गहरा सोच चल रहा है। इन पर नियंत्रण के लिये आखिर क्या किया जाए इसे लेकर भी जोरदार मंथन चल रहा है। सूत्र बताते हैं इन पर नियंत्रण के लिये इस बार कुटनीति उपयोग की जाएगी।
राकांपा का उपयोग संभावित
शाजापुर में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के सहारे कांग्रेस को निपटाने की तैयारी हो गई है। परम्परागत प्रत्याशी को इस बार जमीन दिखाने के लिये बगावत का बिगुल बज चुका है। बताते हैं वहां राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी की ओर से एक मुस्लिम प्रत्याशी को मैदान में उतारने की तैयारी कर ली गई है। इसके विपरित कांग्रेस अपने परम्परागत प्रत्याशी हुकुमसिंह कराड़ा पर भरोसा जता रही है। घोषणा के बाद ही यह तय होगा कि क्या उलटफेर संभावित है। वैसे अभी से पूरे समीकरण गड़बड़ा गये हैं और असंतुष्ट खेमा खुरापात के लिये पूरी तैयारी कर बैठा है।