November 5, 2024

क्या जरुरी थी रतलाम में मोदी जी की आमसभा…?

पार्टी की जीत से ज्यादा खुद की छबि चमकाने की चिन्ता

-तुषार कोठारी

ये सवाल अब जोर शोर से पूछा जाने लगा है। नरेन्द्र मोदी की सभा को अगर फ्लाप नहीं कहा जा सकता तो सफल सभा की श्रेणी में भी इसे नहीं रखा जा सकता। भाजपा नेताओं के दावे एक लाख की भीड जुटने के थे,लेकिन मैदान की क्षमता तीस हजार से ज्यादा की नहीं थी। इसके बावजूद पूरा मैदान भर नहीं पाया। तेज गर्मी,चिलचिलाती धूप में लोग मोदी को सुनने आए थे,लेकिन इनमें से कई सारे धूप सहन नहीं कर पाने की वजह से लौट गए। सुरक्षा के नाम पर पानी के पाउच तक नहीं मिले,इसका नतीजा सभा मैदान के खाली रह जाने के रुप में सामने आया।
लेकिन अब खास सवाल,कि रतलाम में मोदी जी की सभा की जरुरत क्या थी।  पिछले कम से कम तीन दशकों से लोकसभा चुनाव में रतलाम शहर और ग्रामीण सीटों पर भाजपा बिना किसी मेहनत के लीड लेती रही है। लोकसभा चुनावों को लेकर मतदाताओं में हमेशा उदासीनता का भाव रहता आया है और इसके बावजूद जब भी नतीजे आते,रतलाम में भाजपा आगे ही रहा करती थी। इस बार के चुनाव में नया पहलू यह है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पूरी ताकत से चुनाव में जुटा हुआ है। हाल ही में संपन्ना हुए विधानसभा चुनाव में पूरे प्रदेश में शिवराज लहर थी और इसका नतीजा यह हुआ था कि रतलाम शहर में भाजपा प्रत्याशी उद्योगपति चैतन्य काश्यप 40 हजार से अधिक की ऐतिहासिक बढत लेकर चुनाव जीते थे। रतलाम ग्रामीण और सैलाना सीटों पर भी भाजपा को ही जीत मिली थी।
अब पूरे देश में मोदी की लहर साफ नजर आ रही है। पिछले लोकसभा चुनावों में,जब भी भाजपा मजबूत होती थी,झाबुआ जिले के मतदाता भाजपा को नकार देते थे। खुद दिलीपसिंह भूरिया दो बार पराजय का स्वाद चख चुके है। ऐसे में यह साफ है कि रतलाम झाबुआ संसदीय क्षेत्र को जीतने के लिए रतलाम से ज्यादा झाबुआ पर ध्यान दिए जाने की जरुरत है। मोदी लहर का असर झाबुआ पंहुचाने के लिए मोदी जी को झाबुआ ही ले जाया जाना चाहिए था। रतलाम में मोदी जी की सभा का सीधा असर झाबुआ जिले के मतदाताओं पर नहीं पड सकता।
इसके बावजूद अगर मोदी जी की सभा रतलाम में करवाई गई तो इसके पीछे वजह क्या रही होगी। नेताओं के तौर तरीकों और मिल रही सूचनाओं का विश्लेषण करें तो पता चलता है कि मोदी जी की सभा रतलाम में करवाने के पीछे जीतने हारने से ज्यादा खुद की छबि निखारने और खुद को मोदी जी का खास बताने की मंशा काम कर रही थी। रतलाम झाबुआ संसदीय सीट पर दिलीप सिंह भूरिया को टिकट दिलाने का श्रेंय शहर विधायक चैतन्य काश्यप को मिल रहा है। कहा जाता है कि झाबुआ में दिलीपसिंह भूरिया की छबि भी खराब मानी जाती है। यदि टिकट किसी नए चेहरे को मिलता तो भाजपा के लिए ज्यादा आसानी होती। लेकिन अपनी उंची पकड के चलते शहर विधायक ने दिलीपसिंह भूरिया को न सिर्फ टिकट दिलवाया बल्कि संसदीय क्षेत्र के चुनाव संचालन की जिम्मेदारी भी उन्ही ने ले ली। मोदी जी की सभा रतलाम में तय कराने का पूरा जिम्मा भी उन्ही का था। भाजपा के ही नेताओं का कहना था कि झाबुआ में अगर उन्हे मोदी जी के साथ मंच पर देखा जाता तो रतलाम के लोगों पर इसका को ई असर नहीं होता,लेकिन वे चाहते थे कि मोदी जी की नजदीकी का लाभ मिले तो पूरा मिले। यही वजह थी कि मोदी जी की सभा झाबुआ की बजाय रतलाम में रखी गई।
यह भी नहीं सोचा गया कि कमजोरी झाबुआ में है,न कि रतलाम में। मोदी जी की सभा की जरुरत झाबुआ को थी,इसका असर भी नतीजों पर दिखाई देता। लेकिन एक नेता की खुद की छबि चमकाने की लालसा ने सभा का स्थल बदल दिया। नतीजा सामने है न तो सभा को सफल कहा जा सकता है और ना ही इससे कोई अतिरिक्त लाभ मिलने का अनुमान है। रतलाम शहर से वैसे भी तीस चालीस हजार की बढत मिलने की उम्मीदें लगाई जा रही थी,मोदी जी के जाने के बाद भी अनुमान यहीं टिके हुए है।

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