कुण्ठित और उपेक्षित महात्मा गांधी
पुण्यतिथि 30 जनवरी पर विशेष आलेख
-डॉ.डीएन पचौरी
महापुरुषों पर श्रध्दा रखना अच्छी बात है,परन्तु किसी महापुरुष के प्रति अन्धश्रध्दालु होना उचित नहीं है। क्योकि अंधश्रध्दालु व्यक्ति अपने इष्ट के संबंध में आलोचना तो दूर कटु सत्य स्वीकारने में भी हिचकिचाता है। होना तो ये चाहिए कि महापुरुष के इतिहास का अध्ययन मनन कर सत्यता को खुले दिल से स्वीकार किया जाए। आज गांधी जी के साथ यही हो रहा है। उनकी त्रुटियों को नजरअन्दाज कर उन्हे महामानव बना दिया गया है। जबकि वास्तविकता यह है कि यदि गांधी जी स्वतंत्र भारत में कुछ वर्ष भी और जीवित रहते तो वे सबसे अधिक कुण्ठित और उपेक्षित होते।
वे स्वतंत्रता प्राप्ति और उसके एक दो वर्ष पूर्व से ही अनुभव करने लगे थे कि अब उनकी उपेक्षा होने लगी है। उनकी कोई नहीं सुनता है और वे स्वयं को अकेला समझने लगे थे।
ये बात तो निर्विवाद सत्य है कि गांधी जी जिद्दी स्वभाव के थे और अपनी बात मनवाने के लिए अक्सर आमरण अनशन पर बैठ जाते थे। यही उन्होने पाकिस्तान को ५५ करोड रु. दिलवाने के लिए १२ जनवरी से २० जनवरी १९४८ तक किया था। उन्हे समझाया गया कि पाकिस्तान में इन रुपयो का उपयोग पाकिस्तान की सैन्य शक्ति बढाने और भारत पर आक्रमण करने के लिए किया जाएगा,और हुआ भी यही था। लेकिन गांधी जी नहीं माने और इसा कारण उनकी हत्या भी हुई। उनकी इस हत्या से गांधी जी अमर हो गए। वे जन जन के लिए पूज्य और आदरणीय हो गए। यदि नाथूराम गोडसे की गोली से गांधी जी बच जाते तो यह सब नहीं होता। कुछ ही समय बाद वे अनुपयोगी और अवांछित सिध्द हो जाते। इसके एक नहीं अनेक कारण थे।
पहला कारण तो ये था कि गांधी जी के कारण भारत में दो पाकिस्तान और बन जाते। हैदराबाद और जूनागढ। आन्ध्र प्रदेश,महाराष्ट्र और कर्नाटन के कुछ जिलों को मिलाकर जो पाकिस्तान बनता उसकी राजधानी हैदराबाद होती। नेहरु जी की इच्छा के विरुध्द पटेल ने हैदराबाद पर आक्रमण कर उसे भारत संघ में मिला लिया था,किन्तु यदि गांधी जी जीवित रहते तो उनकी इच्छा के विरुध्द कार्य करने की हिम्मत सरदार पटेल की भी नहीं होती। पटेल गांधी जी का बहुत आदर करते थे। गांधी जी पटेल को हैदराबाद या जूनागढ पर आक्रमण की अनुमति नहीं देते और इन दो पाकिस्तानों की वजह से गांधी जी कट्टर तो ठीक आम हिन्दू की नजर में भी उपेक्षित हो जाते। दूसरा उनकी उपेक्षा का कारण होता काश्मीर।
गांधी जी हिन्दू और मुसलमानों को अपनी आंखों के दो तारों की तरह कहते थे और अल्पसंख्यकों के प्रति उनकी सहानुभूति कुछ अधिक ही थी। काश्मीर मुस्लिम बाहुल्य प्रदेश है और गांधी जी पाकिस्तान के दबाव काश्मीर पाकिस्तान को सौंप देते। जिससे वो पाकिस्तान में आदरणीय हो जाते क्योकि ५५ करोड रुपए देकर तो पहले ही वहां के मुसलमानों को प्रभावित कर चुके थे औकर सद्भावना मिल चुकी थी। वो पाकिस्तान जाकर रहना चाहते थे तथा ९ या १० फरवरीको वहां पंहुचने वाले थे। इसके लिए जिन्ना ने भी सहमति दे दी थी। ये हिन्दुओं के लिए काफी पीडादायक बात होती और हिन्दुओं की नजर में गांधी जी का वह आदर नहीं होता जो आज है।
बहुत से कारणों में से एक कारण ये भी था कि गांधी जी से अधिकांश कांग्रेसी नाराज होते जा रहे थे,क्योकि गांधी जी कांग्रेस को सेवक के रुप में देखना चाहते थे,शासक के रुप में नहीं। उनका कहना था कि कांग्रेस का काम स्वराज्य प्राप्ति था जो मिल गया। अब कांग्रेस कांग्रेस को भंगकर इसे क्षेत्रीय पार्टी के रुप में विकसित किया जाए,जो गांव गांव जाकर स्वयंसेवक के रुप में सेवा दे और देश को सशक्त बनाएं। उन्हे पसंद नहीं था कि कांग्रेसी रिश्वतें ले और न्यायिक प्रक्रियाओं में अवरोध उत्पन्न करे,जोकि उन दिनों होने लगा था और ऐसी सूचनाएं गांधी जी को मिल रही थी।
गांधी जी के जीते जी नेहरु से टकराव अवश्यंभावी था. मतभेद तो उसी समय उभरने शुरु हो गए थे। यदि गांधी जी आगे जीवित रहते तो नेहरु से बहस करते। आज भारत विकासशील देशों में अग्रणी है,तो इसका श्रेय पं.नेहरु को है। उन्ही के कारण औद्योगिकीकरण ,विद्युतीकरण,विज्ञान और टैक्नोलाजी की प्रगति,पंचवर्षीय योजनाएं आदि लागू हुई। भाखडा नांगल डैम पंजाब में,तथा परमाणु उर्जा आधारित नाभिकीय संयत्र बाम्बे के निकट ट्राम्बे,उत्तर प्रदेश के नरौरा,राजस्थान में रावत भाटा,दक्षिण में पडीपक्कम प्रारंभ हुए जिनसे निरंतर विद्युत उत्पादन हो रहा है और उद्योग विकसित हो रहे है। ये नेहरु जी की देन है।
इसके विपरित गंधी जी खादी ग्रामोद्योग,कुटीर उद्योग तथा हस्तकला उद्योगों का विकास चाहते थे। जिससे हम आत्मनिर्भर हो सके। आत्मनिर्भर तो हम आज भी है,किन्तु गांधी जी के अनुसार देश आधुनिक प्रगति की दौड में पिछड जाता। गांधी जी हर उस बात का विरोध करते जिसमें अधिक धन व्यय होता है। जैसे रक्षा बजट में कटौती कराते,हथियारों की खरीदी पर होने वाला व्यय,सेना पर होने वाला व्यय,बडे बडे प्रशासनिक अधिखारियों की नियुक्तियां जिन्हे उंचे वेतन प्रदान किए जाते है,आदि। इस कटौती से बचे पैसे को वो स्वयंसेवकों पर खर्च करने की सलाह देते और अपनी बात मनवाने के लिए आमरण अनशन वाला हथियार चलाते।
गांधी जी नेहरु जी की विदेश नीति में भी हस्तक्षेप करते,क्योंकि वे सब काम अहिंसक रुप से करना चाहते थे और अहिंसा को ही सबसे बडी ताकत मानते थे। उनका भ्रम तब दूर होता,जब चीन और पाकिस्तान ने भारत पर आक्रमण किया था। चीन को अपनी हडप नीति के आगे गांधी जी की अहिंसा से कुछ लेना देना नहीं था और गांधी जी भले ही पाकिस्तान में रहकर आ जाते,पाकिस्तान अपनी हरकतों से बाज नहीं आता। ये बात इसी से सिध्द होती है कि गांधी जी,जो पाकिस्तान के लिए शहीद हुए,उनकी अस्थियों की राख पाकिस्तान के कट्टर मुल्लाओं ने सिन्धु नदी में प्रवाहित नहीं होने दी थी। ये रिपोर्ट पाकिस्तान में भारत के तत्कालीन उच्चायुक्त श्री प्रकाश ने दी थी। जिस प्रकार चीनी आक्रमण से नेहरु जी की आंखे खुल गई थी,गांधी जी जीवित होते तो उनकी भी अहिंसा की गलतफहमी कुछ हद तक दूर हो जाती।
गांधी जी की हत्या के संदर्भ में बाबा साहब आम्बेडकर का कथन प्रासंगिक है। उन्होने कहा कि महापुरुष अपने देश की महान सेवा करते हैं लेकिन एक निश्चित समय के बाद वह अपने देश की प्रगति में बाधक बनने लगते है। इसी प्रकार गांधी जी ने सारे विचारों को अवरुध्द कर दिया था। कई बार बुराई में से अच्छाई निकलती है,अत: हो सकता है कि गांधी जी की मृत्यु से कुछ अच्छा निकलेगा। ये शब्द कटु है किन्तु चिंन्तनीय है।
निष्कर्ष यह है कि गांधी जी कुछ वर्ष और जीवित रहते तो अपने जिद्दी स्वभाव,अल्पसंख्यक प्रेम तथा अव्यावहारिक सिध्दान्तों के कारण जल्दी ही जनमानस में उपेक्षित और अवांछित सिध्द हो जाते,किन्तु उनकी मृत्यु ने उन्हे महामानव बना दिया,अन्यथा वे न नोट पर अंकित होते और ना ही वोट की राजनीति में उनका उपयोग होता।