कई कोशिशें हुई कोठारी की ताजपोशी को रोकने की
विरोधी खेमे ने भोपाल जाकर जताई थी नियुक्ति पर आपत्ति
रतलाम,20 जुलाई (इ खबरटुडे)। पूर्व गृहमंत्री हिम्मत कोठारी राज्य वित्त आयोग का अध्यक्ष बनकर शहर में लौट आए है। लेकिन उनके वित्त आयोग अध्यक्ष बनने की घोषणा और पद भार ग्रहण करने के बीच के सात दिनों में भाजपा की भीतरी राजनीति में जो उबाल आया,उसकी खबरें अब छन छन कर बाहर आ रही है। खबरें बताती है कि विरोधी गुट ने कोठारी की ताजपोशी को रोकने की तमाम कोशिशें की,हांलाकि उनकी कोशिशें कामयाब नहीं हो पाई। राजनीति की यह नई जंग आने वाले दिनों में भी भारी गुल खिलाएगी।
भाजपा सूत्रों के मुताबिक विरोधी गुट चुनाव के बाद से ही यह मान कर चल रहा था कि अब कोठारी की वापसी संभव नहीं है। विरोधी गुट को इस बात की कतई कोई भनक नहीं लग पाई कि श्री कोठारी को बडा पद दिया जा रहा है। कोठारी को वित्त आयोग का अध्यक्ष बनाए जाने की घोषणा विरोधी गुट के लिए एक बडा झटका थी। जैसे ही यह खबर उजागर हुई अनेक विरोधी नेता राजधानी के लिए रवाना हो गए।
भाजपा सूत्रों के मुताबिक नगर विधायक की अगुवाई में विरोधी नेताओं ने संगठन महामंत्री अरविन्द मेनन समेत अन्य बडे नेताओं से मिलकर अपनी आपत्ति दर्ज कराई। विरोधी नेताओं ने तो यहां तक आरोप लगा डाले कि नियुक्ति की घोषणा के बाद कार्यकर्ताओं द्वारा निकाले गए जुलूस में शामिल लोगों ने नगर विधायक के आवास पर पत्थर फेंके और गालियां भी दी। हांलाकि इन आरोपों में कोई सच्चाई नहीं थी।
भाजपा सूत्र बताते है कि विरोधी खेमे के नेताओं ने इस नियुक्ति को रोकने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी। इन्ही प्रयासों के दौरान विरोधी खेमे के नेताओं के समर्थक रतलाम में इस तरह की अफवाहें भी फैला रहे थे कि नियुक्ति को रद्द कर दिया गया है। लेकिन जब श्री कोठारी अपने पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के मुताबिक 17 जुलाई को पदग्रहण करने के लिए भोपाल रवाना हो गए तब दूसरी तरह की अफवाहे फैलने लगी। विरोधी खेमे के नेता यह कहने लगे थे कि यह नियुक्ति मात्र चार या छ: माह के लिए की गई है।
बहरहाल,ये सारी बातें दर्शाती है कि रतलाम भाजपा में अब सबकुछ तेजी से बदल रहा है। आने वाले दिनों में भाजपा का राजनीतिक घटनाक्रम तेजी से बदलने वाला है।
विधायक का पलडा हुआ कमजोर
उद्योगपत से राजनेता और फिर नगर विधायक बने चैतन्य काश्यप की राजनीतिक कश्ती अब डगमगाती हुई नजर आ रही है। श्री काश्यप पूर्व गृहमंत्री हिम्मत कोठारी के विरोध के बावजूद ऐतिहासिक मतों से चुनाव जीते थे। हांलाकि यह जीत शिवराज लहर की जीत थी,लेकिन काश्यप समर्थकों ने इसे काश्यप की स्वयं की जीत बताने में कोई हिचक महसूस नहीं की। इसी जबर्दस्त जीत का असर था कि खुद श्री काश्यप और उनके समर्थक यह मानकर चल रहे थे कि काश्यप जैसे कद्दावर नेता को मंत्रीमण्डल में स्थान जरुर मिलेगा। मंत्रीमण्डल की घोषणा के बाद जब उनका नाम इसमें नहीं आया,तब उन्होने सोचा था कि आगे चलकर कोई महत्वपूर्ण जिम्मेदारी उन्हे मिल जाएगी।
यहां यह तथ्य भी उल्लेखनीय है कि विधानसभा की टिकट मिलने से पहले तक श्री काश्यप स्वयं को केन्द्र या राज्य स्तर का नेता प्रदर्शित करते थे और इसी वजह से खुद को स्थानीय खींचतान से दूर रखते थे। लेकिन जैसे ही उन्हे टिकट मिला और वे चुनाव जीते,वे पूरी तरह से स्थानीय राजनीतिक खींचतान में उतर आए। उन्होने तमाम कोठारी विरोधियों को अपने खेमे में शामिल करना शुरु कर दिया। देखते ही देखते स्थानीय स्तर पर भाजपा काश्यप और कोठारी दो धडों में बंट गई।
चैतन्य काश्यप आमतौर पर जनाधार वाले जमीनी नेता नहीं है,बल्कि वे बन्द कमरे की राजनीति करने वाले नेता है। इसके विपरित हिम्मत कोठारी को उनके विरोधी भी जनाधार वाले जननेता के रुप में जानते है। श्री काश्यप की राजनीतिक गतिविधियां उनके कर्मचारियों के भरोसे चलती रही हैं,जबकि श्री कोठारी के पास कार्यकर्ताओं की लम्बी चौडी फौज है। ऐसे में राजनीति के अखाडे में कोठारी से जीत पाना काश्यप के लिए बेहद टेडी खीर साबित होगा।
इतना ही नहीं श्री कोठारी को बेहद महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दिए जाने और काश्यप को इसकी भनक तक नहीं लग पाने को इस बात का खुला संकेत भी माना जा सकता है कि प्रदेश का वरिष्ठ नेतृत्व अब श्री काश्यप से खुश नहीं है। जिले में पांचों विधायक भाजपा के है। इनमें से श्री काश्यप स्वयं को वरिष्ठ नेता के रुप में पेश करते रहे हैं। यहां तक कि लोकसभा चुनाव के दौरान झाबुआ और मन्दसौर संसदीय सीट का चुनाव जीतने का श्रेय भी वे खुद ही ले रहे थे। उनके द्वारा जारी विज्ञापनों और होर्डिंग्स में श्री काश्यप के फोटो बडे थे,जबकि झाबुआ सांसद दिलीपसिंह भूरिया और मन्दसौर सांसद सुधीर गुप्ता के फोटो छोटे थे। ये विज्ञापन यह दर्शाने की कोशिश कर रहे थे कि उक्त दोनों सांसदों के गाडफादर चैतन्य काश्यप ही हैं। लेकिन श्री कोठारी को केबिनेट मंत्री दर्जा मिलने के बाद श्री काश्यप पहली बार जीते हुए एक सामान्य विधायक बनकर रह गए है। भोपाल और दिल्ली में भी अब श्री काश्यप का वैसा असर नहीं रह गया है,जैसा कुछ वर्षों पहले तक माना जाता था। ऐसे में आने वाले दिनों में नगर विधायक चैतन्य काश्यप के लिए राजनीति दुखदायी साबित हो सकती है। कोठारी का साथ छोडकर काश्यप खेमे में गए नेताओं के लिए भी आने वाले दिन परेशानी वाले रह सकते है।