April 25, 2024

उपकरण एवं किताबों की खरीदी में हुआ लाखों रूपयों का घोटाला

माधव कालेज के प्राचार्य एवं प्रोफेसरों ने रेमेडियल कोचिंग में किया भारी भ्रष्टाचार

उज्जैन,21 मई (इ खबरटुडे)। शासकीय माधव कला वाणिज्य एवं विधि महाविद्यालय उज्जैन में वर्ष 2008-09 में हुए रेमेडियल कोचिंग घोटाले का सच शासकीय जांच प्रतिवेदन में स्पष्ट हो गया है। सूचना के अधिकार से प्राप्त दस्तावेजों के आधार पर छात्र नेता बबलू खिची के नेतृत्व में माधव महाविद्यालय छात्रसंघ ने उक्त घोटाले के खिलाफ विगत चार माह से मोर्चा खोल रखा था फलस्वरूप संभागायुक्त द्वारा उक्त घोटाले की जांच संभागीय उपायुक्त सुधीर कुमार जैन से करवाई गयी जिसमें प्राचार्य एवं प्रोफेसरों द्वारा योजनाबद्ध तरीके से पैसे हड़पने का खुलासा हुआ।

जांच प्रतिवेदन के मुख्य खुलासे:

1. रेमेडियल कोचिंग हेतु तीन लाख रूपए की खरीदी गई इलेक्ट्रानिक सामग्री की जांच में बड़े घोटाले के साक्ष्य मिले है। दस्तावेजों के अनुसार डेस्कटाॅप कम्प्यूटर, प्रिंटर, यूपीएस, वायरलेस प्रेजेन्टर, लेजर केनन लाईटर, टी.एल.पी. प्रोजेक्टर, लेपटाॅप, फोटो काॅपियर इत्यादि उपक्रम क्रय करना बताया गया है। उक्त उपकरण खरीदी में ना तो कोई क्रय प्रक्रिया अपनाई गई और ना ही क्रय आदेश उपलब्ध कराए गए। स्टाॅक रजिस्टर में उपकरण खरीदी के मूल्य, टैक्स और डिस्काउन्ट का कोई उल्लेख नहीं है जबकि स्टाक रजिस्टर इन्हीं तथ्यों के उल्लेख के लिए ही बनाया जाता है। दर्शाए गए उपरोक्त उपकरणों में से मात्र 4 के ही बिल उपलब्ध कराए गए है। उनमें भी कुछ उपकरण की ब्रांड अपठनीय है। क्रय की गई सामग्री में भण्डार क्रय नियमों का कोई पालन नहीं किया गया है। जिस दुकान से सामग्री क्रय करना बतलाया है वह दुकान शासकीय उपक्रम की सूची में भी शामिल नहीं है।
2. प्रमाणित बिलों से ज्ञात हुआ कि प्राचार्य द्वारा रेमेडियल कोचिंग हेतु लगभग दो लाख रूपये मूल्य की पुस्तकों का क्रय करना दिखाया गया है। परन्तु पुस्तकों से संबंधित जाँच में बड़े स्तर पर धांधलिया सामने आई है। शासन के नियमों को ताक पर रखकर कई पुस्तकें बगैर निविदा के क्रय की गई। जिन पुस्तकों पर आम जन को 40 फीसदी तक डिस्काउन्ट मिलता है उन्हें प्रिन्ट प्राईस पर खरीदा गया जबकि शासन का नियम है कि खरीदी पर कम से कम 10 प्रतिशत छूट तो होना ही चाहिये। जांच में स्पष्ट हुआ कि पुस्तकें केवल कागजों पर खरीदी गई और पेमेन्ट सेल्फ चेक से कर दिया गया। किताबों के बिलों पर क्रय आदेश क्रमांक एवं दिनांक का उल्लेख ही नहीं है। पुस्तकों के देयकों पर ना तो स्टाॅक पंजी प्रविष्टि है और ना ही भुगतान हेतु अनुशंसा या स्वीकृति की कोई टीप की गई जबकि यह कार्य प्राचार्य या पुस्तकालय प्रभारी द्वारा किया जाता है। इस प्रकार पुस्तक क्रय प्रक्रिया में भण्डार क्रय नियमों का पालन नहीं किया गया है। साथ ही स्टाॅक प्रवृष्टि के नियमों का पालन भी नहीं किया गया है।

3. शासन के नियमानुसार शासकीय कार्य एकाउन्ट पे (रेखांकित) चेक द्वारा ही किए जाना चाहिए। परन्तु प्राचार्य द्वारा रेमेडियल कोचिंग की राशि 7.25 लाख रूपये का भुगतान सेल्फ चेकों के माध्यम से कर दिया गया जो कि जांच में स्पष्ट हुआ कि चेक रेखांकित (एकाउन्ट पे) नहीं थे।

4. प्रमाणित दस्तावेजों में एक ही समय में एक ही कक्ष में दो प्रोफेसरों द्वारा अलग-अलग विषय पढ़ाने की जांच में जांचकर्ता को प्राचार्य ने दस्तावेजों में टंकण त्रुटि होना बताया है और किसी भी प्रकार का कोई आधार उपलब्ध नहीं कराया।
शिकायतकर्ताओं के पास मौजूद दस्तावेजांे में प्राचार्य एवं कोआर्डीनेटर एस.एन. शर्मा के हस्ताक्षर अंकित है, यहाँ यह स्पष्ट होता है कि यदि टंकण त्रुटि हुई भी होती तो प्राचार्य एवं प्रोफेसर एस. एन, शर्मा बगैर देखे महाविद्यालय के दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करते है।

5. रेमेडियल कोचिंग हेतु प्रोफेसरों की उपस्थिति रजिस्टर में 24 प्रोफेसरों के हस्ताक्षर के स्थान पर केवल टिक () मार्क लगे होने की जांच में प्राचार्य द्वारा दिए गए मनगढ़ंत जबाव से नाराज होकर जांचकर्ता ने स्पष्ट किया कि प्राचार्य के जबावों से संतुष्ट नहीं हुआ जा सकता क्योंकि प्राचार्य ने अपने उत्तर के सम्बन्ध में रेमेडियल कक्षाओं के लगने की समय सारणी कक्ष क्रमांक एवं अन्य दस्तावेज उपलब्ध नहीं कराए। अतः यहाँ यह स्पष्ट हो रहा है कि 24 प्रोफेसरों ने केवल पढ़ाने का भुगतान लिया है पढ़ाया नहीं है।

6. शिकायतकर्ताओं ने प्रमाणित शासकीय दस्तावेजों के आधार पर आरोप लगाया था कि यूजीसी के नियमानुसार रेमेडियल कोचिंग केवल महाविद्यालय लगने के पहले या बाद एवं लम्बी अवकाश अवधि जैसे ग्रीष्म कालीन और शीतकालीन अवकाश में लगाई जाना चाहिए परन्तु प्राचार्य एवं प्रोफेसरों ने सामान्य अवकाश के दिनों जैसे – धुलेंडी, महावीर जयंती, गुड फ्रायडे, अम्बेडकर जयंती, मोहर्रम में भी कागजों पर कोचिंग पढ़ाना दर्शा दिया।
जांचकर्ता ने जांच में पाया कि शिकायतकर्ताओं द्वारा उल्लेखित शिकायत और अभिलेखों के परीक्षण से यह स्पष्ट होता है कि सामान्य अवकाश के दिनों में भी रेमेडियल कोचिंग लगाई गई।

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