November 20, 2024

इक्कीसवीं सदी के देश में चल रहा है उन्नीसवीं सदी का कानून,बदलाव की जरुरत-आराध्य सेठिया

रतलाम,6 जुलाई (इ खबरटुडे)। जिले के जावरा जैसे छोटे शहर से निकल कर अमेरिका की विश्व प्रसिध्द येल यूनिवर्सिटी से एलएलएम करने वाले कानूनविद आराध्य सेठिया का कहना है कि हमारा देश तो इक्कीसवीं सदी में जा रहा है,लेकिन कानून उन्नीसवीं सदी के ही चल रहे है। भारतीय कानूनों में आमूलचूल परिवर्तनों की जरुरत है। आराध्य जल्दी ही विधि विषय में एम फिल करने के लिए आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी जाने वाले हैं।
विश्व के कई देशों में संविधान विशेषज्ञ के रुप में व्याख्यान दे चुके और अनेक अन्तर्राष्ट्रिय व राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में विधि विशेषज्ञ के रुप में नियमित लेखन करने वाले आराध्य सेठिया ने अल्प आयु में ही कई बडी उपलब्धियां अर्जित की है। वे देश के कई नामचीन कानूनविदों और न्यायमूर्तियों के साथ काम कर चुके है। आराध्य का कहना है कि भारतीय संविधान को नए परिप्रेक्ष्य में देखे और समझे जाने की जरुरत है।
रतलाम आगमन पर इ खबर टुडे से विशेष चर्चा करते हुए आराध्य ने कई विषयों पर बातचीत की। संविधान और सायबर ला के विशेषज्ञ के रुप में ख्याति प्राप्त कर चुके आराध्य का कहना है कि इन्टरनेट के आनेके बाद निजता का अर्थ बदल गया है। इन्टरनेट ने दुनिया की कई चीजों को बदल दिया है। पहले धन के आधार पर किसी देश की ताकत को आंका जाता था,लेकिन आज डाटा के आधार पर ताकत को आंका जा रहा है।
आराध्य के मुताबिक वर्तमान समय में जिस के पास अधिक डाटा है,वह अधिक शक्तिशाली है। लेकिन इस मामले में हम भारतीय बहुत पीछे है। हम भारतीयों का डाटा फेसबुक और गूगल जैसी विदेशी कंपनियों के पास है। इस स्थिति को बदलने के लिए नए प्रकार के कानून बनाए जाने की जरुरत है।
आराध्य ने अपने कैरियर के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि जावरा जैसे छोटे कस्बे से दसवीं तक पढाई करने के बाद उन्होने विधि को ही अपने कैरियर के रुप में चुना और नेशनल ला इंस्टीट्यूट में प्रवेश के लिए होने वाली कामन ला एडमिशन टेस्ट की तैयारी के लिए वे दिल्ली पंहुच गए। उन्होने प्रवेश परीक्षा की तैयारी और बारहवीं कक्षा की पढाई एकसाथ की। क्लैट की परीक्षा में आराध्य ने आल इंडिया में नौंवी रैंक हासिल की,जबकि मध्यप्रदेश और दिल्ली में वे पहले स्थान पर थे।
इस परीक्षा में सफल होने पर उन्हे देश के सर्वाधिक प्रतिष्ठित नेशनल ला इंस्टीट्यूट बैंगलौर में प्रवेश मिल गया। बैंगलौर में एलएलबी के पांच वर्षीय कोर्स के अंतिम वर्ष में ही उन्हे कानून के मामले में विश्व की पहले नंबर की यूनिवर्सिटी अमेरिका की येल यूनिवर्सिटी से एलएलएम का आफर मिल गया। आराध्य ने बताया कि येल यूनिवर्सिटी में पूरे विश्व से केवल तेईस विद्यार्थियों का चयन किया जाता है। येल यूनिवर्सिटी में चयन होने पर उन्हे भारत और अमेरिका की दो प्रतिष्ठित छात्र वृत्तियां भी मिली,जिसकी वजह से अमेरिका में उनकी पढाई और रहने की पूरी व्यवस्था हो गई। येल यूनिवर्सिटी से एलएलएम की पढाई पूरी करने के दौरान ही उन्हे आस्ट्रेलिया की मेलबोर्न यूनिवर्सिटी से विभिन्न देशों के संविधान पर शोध करने के लिए फैलोशिप प्रदान की गई। उन्होने आस्ट्रेलिया में रहकर विश्व के प्रमुख लोकतान्त्रिक देशों के संविधान पर शोध किया। बहुत जल्दी वे विश्व की एक और प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटी आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में एम फिल करने के लिए जा रहे है। उनकी उपलब्धियों को देखते हुए आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी ने उन्हे एमफिल के लिए आमंत्रित किया है। आराध्य सेठिया अपने एकैडेमिक कैरियर में अब तक एक करोड रु. की छात्र वृत्तियां प्राप्त कर चुके है। उनकी अधिकांश पढाई इन्ही के माध्यम से हुई है। इसी दौरान वे देश के वरिष्ठ कानूनविदों के साथ भी काम कर चुके है। भारत के महाधिवक्ता रहे मुकुल रोहतगी के साथ भी वे काम कर चुके है और सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति जस्टिस चन्द्रचूड व राजस्थान उच्च न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश रवीन्द्र भट्ट के साथ वे लीगल रिसर्चर के रुप में काम कर चुके है।
श्री सेठिया का कहना है कि भारत के संविधान को नए परिप्रेक्ष्य में देखे जाने की जरुरत है। उन्होने कहा कि भारत में वैसे तो लोकतंत्र है लेकिन राजनैतिक पार्टियों में आतंरिक लोकतंत्र नहीं है। उन्होने कहा कि कुछ दशकों पहले अमेरिका में भी यही स्थिति थी,लेकिन इसके लिए वहां कानूनी प्रावधान किए गए और आज वहां की राजनैतिक पार्टियों में आंतरिक लोकतंत्र है। भारतीय राजनीति के संबंध में श्री सेठिया का कहना है कि कानूनों में कई प्रकार के सुधारों की जरुरत है। न्यायिक नियुक्तियों के संबंध में भी सुधारों की आवश्यकता है। कालोजियम की व्यवस्था में बदलाव जरुरी है। जवाबदेही को बढाना ही इसका हल है। उनका कहना है कि जब उच्चतम न्यायालय का गठन हुआ था,तब की परिस्थितियां बेहद अलग थी,लेकिन अब सत्तर साल गुजर गए है। न्यायिक नियुक्तियों पर केवल न्यायाधीशों का एकाधिकार होना उचित नहीं है। न्यायपालिका को और अधिक जवाबदेह बनाया जाना चाहिए। अमेरिका जैसे देशों में न्यायाधीशों को नियुक्ति के पहले संसद के सामने स्वयं को साबित करना पडता है।
न्यायालयों की भाषा के संबंध में श्री सेठिया का कहना है कि विश्व के अधिकांश देशों में न्यायालय स्थानीय भाषा में काम करते है,लेकिन शायद भारत ही एक ऐसा देश है जहां उच्चतम न्यायालय में भारतीय भाषाओं का उपयोग नहीं किया जाता। जबकि उच्चतम न्यायालय में देश की सभी भाषाओं को महत्त्व दिया जाना चाहिए।
छोटी आयु में अंतर्राष्ट्रिय स्तर पर ख्याति प्राप्त कर चुके आराध्य को अनेक देशों से आफर मिल रहे है,लेकिन वे भारत को ही अपना कार्यक्षेत्र बनाना चाहते है। अध्ययन के बाद वे चाहते है कि उच्चतम न्यायालय को अपना कार्यक्षेत्र बनाएं। श्री सेठिया का कहना है कि वे संविधान और कानून की बारीकियों को आम लोगों तक पंहुचाना चाहते है और इसके लिए वे विभिन्न समाचार पत्र पत्रिकाओं में नियमित लेखन करते है। कानूनी विषयों पर उनके कई लेख देश के अनेक प्रतिष्ठित राष्ट्रीय अखबारों में प्रकाशित होते रहे है। वे यह सिलसिला आगे भी जारी रखेंगे।

You may have missed