आरएसएस का संघ शिक्षा वर्ग प्रारम्भ,राष्ट्र व समाज की निस्वार्थ भाव से सेवा करे स्वयंसेवक-पवैया
रतलाम, 25 मई (इ खबर टुडे ) . राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ मालवा प्रांत का संघ शिक्षा वर्ग के प्रथम वर्ष(व्यवसायी वर्ग)का उद्घाटन शनिवार को हिमालय इंटरनेशनल स्कूल रतलाम में हुआ। उद्घाटन वर्गाधिकारी सेवानिवृत्त डिप्टी कलेक्टर रोड़िलाल बोरीवाल के द्वारा भारत माता के समक्ष दीप प्रज्ज्वलन कर किया गया सत्र में मुख्य बौद्धिक धीरसिंहजी पवैया (मालवा प्रांत बौद्धिक शिक्षण प्रमुख) ने दिया।
श्री पवैया ने प्रशिक्षण वर्ग में स्वयंसेवकों को स्वैच्छिक अनुशासन पालन का महत्व बताते हुए कहा कि प्रशिक्षण तन और मन दोनों की उपस्थिति में प्राप्त करना चाहिए। जिस तरह उद्धव जी गोपियों को ज्ञानोपदेश देने श्रीकृष्ण की आज्ञा से गोकुल गये तो गोपियों ने उद्धव जी को उत्तर दिया कि- हमारा एक ही मन है जो श्रीकृष्ण के चरणों में लगा है,अर्थात मन किसी एक जगह ही लगाया जा सकता हैं ! इसी तरह हमें अपनी थाली में भोजन अवशेष या झूठा नहीं छोड़ना चाहिए, क्योंकि अन्न ही ब्रह्म है,जिसका अनादर नहीं करना चाहिए। उन्होंने कहा कि संघ शिक्षा वर्ग के प्रशिक्षण का उद्देश्य है,स्वयंसेवक के व्यवहार में चिंतन,मनन और शिक्षा द्वारा परिवर्तन करके मनुष्य बनाना।
अगर मनुष्य होकर भी छल-कपट, झूठ, बुराई, क्रोध, ईर्ष्या जैसे अवगुण हो तो वह राक्षस समान है। जिस व्यक्ति के पास विद्या, तप, दान, ज्ञान, शील और धर्म जैसे गुण न हो वो मनुष्य के रुप में जानवर समान में पृथ्वी पर भार है। क्योंकि आहार, निद्रा, भय, मैथून ये तो पशुओं में भी पाये जाते हैं, लेकिन विवेक ही मनुष्य और जानवर मे मुख्य अंतर है। पशु तो प्राकृतिक रूप से जीवन जीता है परन्तु मनुष्य को सांसारिक जीवन में लोक व्यवहार का प्रशिक्षण अनुभवी समाजजनों से प्राप्त होता हैं !
जिस तरह किनारों के बगैर नदी विकास के बजाय बाढ़ लाकर विनाश कर देती है, किनारे नदी को अनुशासन में जनकल्याण हेतु प्रवाहमान रहती है । इसी प्रकार साधारण मौन चिंतन, मनन के लिए तो ठीक है, परंतु अज्ञानियों के बीच भीष्म पितामह की तरह मौन धर्म की हानि करके विनाश करता है। स्वयंसेवक को मैं “मैं नहीं तु ही ” की भावना के साथ राष्ट्र व समाज की निःस्वार्थ सेवा करनी चाहिए।