April 26, 2024

आम आदमी के लिए बडी चुनौती

सन्दर्भ-पारस सकलेचा के निर्वाचन को शून्य घोषित किया जाना
– तुषार कोठारी
कहते हैं थोडे लोगों को थोडी देर तक बेवकूफ बनाया जा सकता है,लेकिन बुहत लोगों को बहुत देर तक बेवकूफ नहीं बनाया जा सकता। कहा तो यह भी जाता रहा है कि भारत के मतदाता बेहद समझदार है और सोच समझकर फैसला लेते हैं। लेकिन शायद रतलाम इससे अलग है। यहां तो ये दोनो बातें गलत साबित हुई है। उच्च न्यायालय के फैसले के बाद तो यह कहा जा सकता है कि रतलाम के बहुत लोगों को बहुत समय तक बेवकूफ बनाया गया। यह भी कहा जा सकता है कि मतदाता की समझदारी पर उतना भरोसा नहीं करना चाहिए जितना कहा जाता है।

प्रदेश के गृहमंत्री रहे हिम्मत कोठारी को पिछले विधानसभा चुनाव में मिली करारी हार में जहां उनके प्रति नाराजगी का रोल था वहीं मतदाताओं को भ्रमित किए जाने का भी बडा रोल था। उच्च न्यायालय के फैसले से यह साबित हो गया है कि मतदाताओं को कितनी सफाई से बेवकूफ बनाकर भ्रमित किया गया था। शहर का सामान्य नागरिक हटाए जा रहे निर्दलीय विधायक पारस सकलेचा की लच्छेदार बातों में आकर यह मानने लगा था कि सचमुच में श्री कोठारी ने बैंगलोर या हैदराबाद में फाइवस्टार होटल बना रखा है। सामान्य नागरिक यह भी मानने लगा था कि जिस नेता की ईमानदारी की प्रशंसा विधानसभा में विपक्ष तक ने की थी,वह गृहमंत्रालय सम्हालते ही भ्रष्ट हो गया और सत्रह रुपए कीमत का पुलिस का डण्डा साढे चार सौ रुपए में खरीदने लगा।
 मजेदार बात यह है कि शहर का मतदाता पहली बार मूर्ख नहीं बन रहा था। मतदाता इससे पहले श्री सकलेचा को प्रथम नागरिक की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दे चुका था। मतदाता को यह भी पता था कि शिक्षाविद के रुप में राजनीति में आकर शुचिता और ईमानदारी के दावे करने वाले इस प्रथम नागरिक के कार्यकाल में शहर को कुछ भी नहीं मिल पाया। उल्टे प्रथम नागरिक ने अपने कार्यकाल में आगामी विधानसभा चुनाव लडने के लिए अपने पद का जमकर दोहन किया था। उसी कार्यकाल का कमाल था कि अगले विधानसभा चुनाव में उस प्रथम नागरिक ने पानी की तरह पैसा बहाया।
  न्यायालय के फैसले से अब यह निर्विवाद रुप से साबित हो गया है कि भीड भरी चुनावी सभाओं में श्री सकलेचा द्वारा लगाए गए तमाम आरोप पूरी तरह आधारहीन और असत्य थे। ऐसी स्थिति में यह सवाल मुंह बाए खडा है कि मतदाता को भ्रमित करना कितना आसान है। और यदि यह तथ्य स्वीकार किया जाता है कि मतदाता को भ्रमित किया जा सकता है,तो मतदाता की समझदारी के दावे झूठे साबित हो जाते है।
 यह फैसला जहां एक झूठे राजनेता का झूठ उजागर कर उसे राजनीति से बाहर का रास्ता दिखाने वाला साबित होगा वहीं राजनीति के हाशिये पर लेजाकर पटक दिए राजनेता को फिर से राजनीति की मुख्यधारा में लाने में सहायक सिध्द होगा। लेकिन इस फैसले ने सबसे बडी चुनौती तो रतलाम के आम आदमी के सामने खडी कर दी है। आम आदमी को आने वाले दिनों में जो भी फैसले लेने होंगे,वे बेहद सतर्कता से लेने होंगे। मतदाता को यह सोचना होगा कि कोरी लफ्फाजी में बह कर मतदान करना बेहद घातक हो सकता है। टीवी पर हर वस्तु का उत्पादक अपनी वस्तु को सर्वश्रेष्ठ बताता है,लेकिन यह विज्ञापन सर्वश्रेष्ठ होने की गारंटी नहीं होता। ठीक उसी तरह चुनावी भाषणों के भरोसे नेताओं को आंकना ठीक नहीं है। नेताओं का आकलन उनके इतिहास और ठोस उपलब्धियों से किया जाना चाहिए। इस फैसले ने उन मतदाताओं को बुरी तरह ठगा हुआ महसूस कराया होगा जिन्होने अपने आप को दादा के दीवाने कहना शुरु कर दिया था। अब इन कथित दीवानो को लगा होगा कि उनकी भावनाओं से किस तरह खेला जा रहा था? जो दादा को बडा महान व्यक्तित्व मानते रहे होंगे उन्हे भी लगता होगा कि झूठ के दम पर खेल जीतना कभी भी महानता की निशानी नहीं हो सकता। वैसे भारत में कई ऐसे राजनेता हुए है और अभी भी हैं,जिन्होने राजनीति में नैतिकता के उच्चतम मानदण्डों को स्थापित करने के लिए पदों को त्याग देने और सार्वजनिक रुप से अपनी गलतियों को स्वीकार करने का साहस दिखाया है। उच्च न्यायालय का फैसला आने के बाद भी क्या श्री सकलेचा से ऐसी उम्मीद की जा सकती है?

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