May 8, 2024

आज से कई स्कूलों में सत्र की शुरुआत

किताब-कापी, यूनिफार्म के नाम लूट शुरु
शिक्षा विभाग ने कागजी खानापूर्ति की और आंख मूंद ली

उज्जैन,24 मार्च (इ खबरटुडे)। चौकीदार बाहर बैठा है और घर में चोर भजिये तल रहे हैं। यही कुछ उज्जैन के शिक्षा जगत में शिक्षा विभाग की ऑंखों के सामने हो रहा है। पर्दे के इस पार कहानी चौकीदार और चोर की कागजी स्तर पर चल रही है। पर्दे के पीछे तले गये भजिये साथ में खाये जा रहे हैं। नये शिक्षा सत्र की शुरुआत में किताब-कापी, यूनिफार्म व स्कूल फीस के नाम लूट का क्रम शुरु हो चुका है। शिक्षा विभाग मात्र कागजी कार्रवाई कर आंख मूंद कर बैठ गया है।
सोमवार से कान्वेंट स्कूलों में नये शिक्षा सत्र की शुरुआत हो रही है। इस शुरुआत से पूर्व बच्चों के अभिभावकों की जेब को सीधे तौर पर उधेड़ने के लिये खुली छूट रही है। स्कूलों और किताब-कापी, यूनिफार्म के विक्रेताओं के बीच खुली सांठगांठ चली है। न कोई रोकने वाला, न कोई टोकने वाला और न ही नियंत्रणकर्ता इस दरमियान नजर आया है। खुले तौर पर कुछ कान्वेंट स्कूलों में फ्रीगंज के एक डिस्ट्रीब्यूटर को मानो ठेका दे दिया था। किताबें भी ऐसे प्रकाशकों की मंगवाई गई जो कि बिरले थे। कापियों के नाम पर सिर्फ एक कंपनी विशेष की कापी उक्त दुकानदार ने बेची। यूनिफार्म भी इसी तरह से विक्रय की गई। बाजार में चंद सैकड़ा रुपये में मिलने वाली उक्त सामग्री कई सैकड़ों रुपये में अभिभावकों को खरीदने के लिये मजबूर होना पड़ा है। उक्त विक्रेता और स्कूल संचालकों के बीच कमिशन का लंबा लेनदेन इसमें हुआ है, जिसको लेकर शिक्षा विभाग को पूर्व से सतर्क होना था। इसके एवज में सिर्फ शिक्षा विभाग ने एक कागजी खानापूर्ति पूरी कर दी और अभिभावकों को कमीशनखोरों के सामने खुला छोड़ दिया।

कैसे काटी जा रही जेब?

कतिपय कान्वेंट स्कूलों ने अपने यहां जो सिलेबस लागू किया है उसमें एनसीआरटी की किताबों की अपेक्षा छोटे बच्चों के लिये दिल्ली के कुछ विशेष प्रकाशकों की पुस्तकें मंगवाई हैं। इन पुस्तकों को मंगवाने के लिये फ्रीगंज स्थित एक विक्रेता को पूर्व से ही स्कूल से जानकारी दी गई, जिससे मात्र उक्त विक्रेता ने ही पुस्तकें मंगवाई। पुस्तकों पर मिलने वाली छूट की अपेक्षा पूरे मूल्य पर पुस्तकों का विक्रय स्थानीय विक्रेता स्कूल की सांठगांठ के साथ कर रहा है। ऐसा एकाध स्कूल के साथ गठबंधन नहीं हुआ है। यह गठबंधन कतिपय कई कान्वेंट एवं प्रायवेट स्कूलों के साथ किया गया है। इसी तरह कापियों में भी स्कूल की ओर से साफतौर पर उक्त विक्रेता के यहां से खरीदी के लिये अभिभावकों को पूर्व से ही निर्देश दिये गये हैं। यही हाल यूनिफार्म के हैं। उक्त विक्रेता के यहां ही उक्त गठबंधन वाले कतिपय स्कूलों की यह सामग्री उपलब्ध है।

एक विद्यार्थी पर सैकड़ों का घालमेल

सूत्र जानकारी दे रहे हैं कि इस गठबंधन के चलते कतिपय कान्वेंट और निजी स्कूल के साथ विक्रेता अभिभावक से एक विद्यार्थी पर सैकड़ों रुपये का घालमेल कर रहे हैं। बाजार में अमूमन जिस कपड़े की यूनिफार्म छोटे बच्चे की 200 से 250 रुपये में उपलब्ध हो सकती है, वही यूनिफार्म 400 से 500 रुपये में यहां से अभिभावकों को मजबूरी में खरीदना पड़ रही है। छोटे बच्चों की जो पुस्तकें और कापियां 600 से 700 रुपये में यहां मिल रही है, अगर उन पुस्तकों का पर्याप्त प्रकाशक द्वारा जारी किये जाने वाला कमीशन काटा जाये तो यही पुस्तकें 300 से 400 रुपये से यादा की नहीं हैं। हाल इतने बेहाल हैं कि उक्त विक्रेता के यहां से स्कूल की यूनिफार्म के मोजे तक अभिभावकों को बेहिसाब कीमत में खरीदना पड़ रहे हैं।

खुली किताबें नहीं मिल रही

कतिपय कान्वेंट स्कूलों के बच्चे अगली कक्षा में प्रवृत्त हो चुके अन्य विद्यार्थियों से पुरानी पुस्तकें लेकर अध्ययन करने में इच्छुक रहते हैं। इसमें कुछ पुस्तकों की कमी उन्हें होती है। इन पुस्तकों को उक्त विक्रेता खुले में नहीं बेच रहा है। बड़ी कक्षाओं की पूरी पुस्तकें खरीदने के लिये विद्यार्थियों को खरीदने के लिये बाध्य किया जा रहा है। कुछ पुस्तकें मांगने पर विद्यार्थियों को बैरंग लौटाया जा रहा है।

शिक्षा विभाग की खानापूर्ति

जिला शिक्षा विभाग में नियंत्रण के नाम पर सिर्फ कागजी घोड़े दौड़ाकर अपनी खानापूर्ति कर ली गई है जिससे कि मौका आने पर किसी भी स्तर पर जवाब दिया जा सके। नियमानुसार एक से अधिक वितरक के यहां समस्त सामग्री उपलब्ध होना चाहिये थी। इस पर विभाग ने न तो संबंधित स्कूलों से वितरक की सूची मांगी है और न ही इसकी जांच के लिये कोई दल ही गठित किये गये हैं। अब तक दल के अधिकारियों के नाम भी सार्वजनिक नहीं हुए हैं जिससे कि उक्त कमीशनखोरी के मामले पर अंकुश लगाया जा सके। शिक्षा विभाग की खानापूर्ति से तो यही प्रतीत होता है कि पर्दे के पीछे शिक्षा विभाग कतिपय कान्वेंट और प्रायवेट स्कूलों के साथ गलबयां करने में लगा हुआ है और अधिकारी स्कूल संचालकों के साथ चांदी काटने में।

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