अवधेशानंदजी का सूत्र-मेरा गांव, मेरा तीर्थ-जाते-जाते दे गए देशप्रेम की सीख
बड़ा धन और मशीनरी जो काम नहीं कर सकते, वह काम एक जज्बा और जुनुन कर सकता है
रतलाम 8 दिसम्बर (इ खबरटुडे)।भारत बहुत भावुक देश है। देशवासियों में यदि देश भक्ति जगा दी जाए। यह जज्बा जगा दिया जाए कि मेरा गांव ही मेरा तीर्थ है। बड़ा धन और मशीनरी जो काम नहीं कर सकते, वह काम एक जज्बा और जुनुन कर सकता है।
अन्न रूपी ब्रम्ह जहां से निकलता है, वह गांव मेरा तीर्थ है। इस सूत्र का पालन कर देश की दशा और दिशा बदली जा सकती है। मंदिर की सीढिय़ों की जैसी सफाई होती है, वैसी सफाई पूरे घर की और गांव की होनी चाहिए। सारे काम सरकार के भरोसे नहीं हो सकते।
माता-पिता में देवता का वास होना माना जाता है, उस देश के मूल्यों को समझना आवश्यक
मंगलवार को मीडिया संवाद में देश प्रेम की सीख देते हुए जूनापीठाधीश्वर आचार्य व महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंदजी गिरि ने यह बात कही। रतलाम से रवाना होने से पूर्व आयोजित इस संवाद में उन्होंने देश में चर्चा का विषय बने असहिष्णुता के सवाल को भी सिरे से खारिज कर कहा कि जिस देश में चीटिंयों को आटा डाला जाता है, नागपंचमी पर नाग को दुध पिलाया जाता है, पत्थर में परमात्मा का वास माना जाता है, धरती को माता और अतिथि को भगवान माना जाता है। अन्न का प्रत्येक दाना जहां ब्रम्ह स्वरूप है और माता-पिता में देवता का वास होना माना जाता है, उस देश के मूल्यों को समझना आवश्यक है। चर्चा के लिए कुछ शब्द अच्छे हो सकते है, लेकिन मेरे देश में ऐसा (असहिष्णुता) कुछ नहीं है।
ग्लोबल वार्मिंग के प्रति चेताया
स्वामी जी ने देशवासी ग्लोबल वार्मिंग के परिणामों के प्रति अनभिज्ञ है। इससे प्राकृतिक विषमताएं सामने आ रही है। समय रहते इसके प्रति सचेत नहीं हुए, तो आने वाला समय नुकसानदायी होगा। शिक्षा, चिकित्सा के साथ कृषि में आगामी 5-10 सालों में देश को कैसे उन्नत बनाया जाए। इस दिशा में गंभीरता से सोचा जाना चाहिए। महात्मा गांधी ने बहुत पहले देश के युवाओं की उर्जा का उपयोग करने का संदेश दिया था, लेकिन विडंबना है कि वर्तमान युग उपभोक्तावादी है। इसमें व्यक्ति वस्तु हो गया है। मानव समाज में नए मूल्यों का सृजन कर दिया जाए, तो 125 करोड़ की आबादी बड़ी संपदा है। देश की आबादी को सामूहिक रूप से उत्पाद ना मानकर निधि माना जाए, तो वह बड़ी भूमिका निभा सकती है। वर्तमान में लोगों को पता नहीं है कि जल, जंगल और जमीन खत्म हो रहे है, इस स्थिति को सामूहिक जतन से ही बदला जा सकता है। कानून से कोई परिवर्तन नहीं होता, उसके लिए चेतना जगाना आवश्यक है।
मंदिर कोई फसाद नहीं चेतना का नाम
राम मंदिर के सवाल पर स्वामीजी ने कहा कि मंदिर तीर्थ और नदियों की चर्चा होना नई बात नहीं है। यह देश की संास्कृतिक परंपरा है। मंदिर कोई फसाद नहीं, चेतना का नाम है। इतनी ही चेतना मस्जिद और अन्य धर्मस्थलों में भी होती है। मंदिर सांस्कृतिक ही नहीं संस्कारों के भी केंद्र हैं। इसलिए इसे लेकर बहस नहीं की जानी चाहिए। स्वामीजी ने हिंदी और संस्कृत की स्थिति पूछे जाने पर कहा कि पतझड़ का समय माली बुरा नहीं मानता, क्योंकि उसके बाद नई कोपलें आती हैं। सोशल मीडिया के बढ़ते उपयोग को भी उन्होंने आवश्यक बताया और कहा कि हर व्यक्ति को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता मिलनी चाहिए। आवश्यक्ता इस बात की है कि यह स्वतंत्रता तर्क-कुतर्क में नहीं उलझे।
भारी मन से शहरवासियों ने दी विदाई
स्वामीजी दोपहर बाद रतलाम से मंदसौर के लिए प्रस्थित हो गए। इससे पूर्व उन्होंने सैलाना रोड स्थित दयाल वाटिका में सैकड़ों प्रभुप्रेमियों से भेंट कर धर्म के प्रति निष्ठावान रहने की सीख दी। एक सप्ताह तक प्रभुप्रेमी संघ के तत्वावधान में संगीतमय श्रीराम कथा के माध्यम से धर्म की गंगा बहाने वाले जूनापीठाधीश्वर आचार्य अवधेशानंदजीगिरि को शहरवासियों ने भारी मन से विदा किया।
अभिभाषक संघ ने किया अवधेशानंदजी का अभिनंदन
जूनापीठाधीश्वर आचार्य एवं महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंदजीगिरि के रतलाम प्रवास के दौरान जिला अभिभाषक संघ का प्रतिनिधि मंडल उनसे मिला। संघ ने इस मौके पर स्वामीजी ने शॉल, श्रीफल और पुष्पगुच्छ से अभिनंदन किया। स्वामीजी ने अभिभाषकों से सम-सामयिक विषयों पर चर्चा करते हुए समाज के विकास में अग्रणी भूमिका निभाने का आव्हान किया। इस दौरान संघ अध्यक्ष संजय पवार, सचिव दीपक जोशी सहित अशोक शर्मा, उमाकांत उपाध्याय, राजेश बाथम, अशोक चौहान, योगेश शर्मा, श्रवण यादव, धमेंद्रसिंह चौहान, सुरेंद्र भदोरिया, कमलेश पालीवाल, अरुण त्रिपाठी आदि मौजूद थे।