अनावश्यक रूप से कलंकित हो गया देश
– डॉ. रत्नदीप निगम
पहले संविधान पर डॉ भीमराव अम्बेडकर के योगदान को लेकर चर्चा देश की संसद में हुई , उस पर भी जमकर दलित राजनीती हुई । फिर तथाकथित सहिष्णुता का अवतार हो गया ,उसको लेकर सभी ने अपने अपने तरकश के सारे तीर प्रयोग कर लिए ,जिससे कोई पक्ष तो घायल नहीं हुआ लेकिन देश अनावश्यक रूप से कलंकित हो गया । इससे एक लाभ देश विदेश की मिडिया को जरूर मिल गया । एक तो राष्ट्रवादी शक्तियों को कोसने का चिर परिचित मसाला मिल गया और दूसरा प्रधानमंत्री मोदी जी के प्रति अपनी घृणा को प्रकट करने का अवसर भी । इन सबसे अभी मुक्त भी नहीं हुए थे कि संसद में हरियाणा की कुमारी शैलजा ने 2 वर्ष पूर्व की अज्ञात घटना का शिगूफा छेड़ दिया । उन्होंने राज्यसभा में कहा कि जब वे मंत्री थी तब गुजरात के द्वारका मंदिर में पूजा करने गयी थी तब पुजारी ने उनसे उनकी जाति पूछी । इस दिव्य ज्ञान की प्राप्ति उन्हें तब नहीं हुई जब देश में प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह थे और वे उनके कार्यकाल में स्वयम् मंत्री थी । यह नरेंद्र मोदी जी की अप्रत्यक्ष सफलता कही जा सकती है कि उन्होंने सभी को इतिहास में हुई घटनाओ का उल्लेख करने की प्रेरणा प्रदान कर दी । कुमारी शैलजा का यूँ प्रश्न खड़ा करना कोई अकस्मात हुआ हो ऐसा नहीं है बल्कि यह उस एजेंडे के चरण है जो 1990 से तय किया गया है और उसे समय समय पर सफलतापूर्वक अजमाया गया है । इस एजेंडे का सीधा फार्मूला है ” हिन्दू तोड़ो – मुस्लिम जोड़ो और राज करो ” । जब जब भी हिन्दू समाज में एकता और स्वाभिमान का भाव जागृत होता है तब तब ये दृश्य – अदृश्य शक्तियाँ सक्रिय होकर हिन्दू समाज की विकृतियों को उभारकर जातीय विभाजन का खेल खेलने लगती है । इसका सशक्त उदाहरण है राम जन्म भूमि आंदोलन , 1990 में जब उत्तर से दक्षिण , पूर्व से पश्चिम तक हिन्दू समाज समस्त जातिभेद को भूलकर भगवान् राम के नाम पर एक हो गया था । तभी विश्वनाथ प्रताप सिंह के नेतृत्व में तुरंत ये वर्ग हिन्दू समाज को विखण्डित करने के लिए सक्रिय हुआ और मंडल कमिशन का जातीय अस्त्र दाग दिया गया । हिन्दू समाज की एकता छिन्न भिन्न हो गयी । अब जाकर जब2014 में वर्तमान प्रधानमंत्री को सारे देश ने जाति भेद से ऊपर उठकर चुना तो पुनः वही हथियार का प्रयोग बिहार में किया गया जिसमे उन्हें सफलता मिली । इस सफलता से अभिभूत होकर ही पुनः सत्ता की आस में दलितों के प्रति , पिछड़ों के प्रति प्रेम उमड़ आया है लेकिन मुस्लिम समाज के 72 फिरको का जिक्र कभी इनकी जुबान पर नहीं आता है । उनके प्रति न्याय और सामाजिक स्तिथि पर कोई चर्चा नहीं होती है । इसी दीर्घकालीन एजेंडे के तहत् कुमारी शैलजा का यह वक्तव्य प्रकट हुआ है ।
इस सम्पूर्ण घटनाक्रम में कांग्रेस नेतृत्व की , उनके अनुयायियों की अपरिपक्वता भी परिलक्षित होती है । यह भी कहा जा सकता है कांग्रेस के स्तुतिगार नेता भारत और भारत की संस्कृति एवम् समाज को कितना जानते है और कितना जुड़े हुए है । जिस मंदिर का उल्लेख कुमारी शैलजा जी कर रही है , मै स्वयम् उस मंदिर में जा चुका हूँ और वहाँ पूजा भी की है । भारत में किसी भी मंदिर में पूजा और घर की किसी भी पूजा , यहाँ तक कि विवाह के समय भी गोत्र का उल्लेख किया जाता है , ऐसा ही भेंट द्वारका की पूजा में भी किया गया , मै स्वयम् इसका साक्षी हूँ । भारत में तो मुस्लिमो के कई फिरको में भी गोत्र का उल्लेख होता है जो कि हिन्दू गोत्र होते है । लेकिन कांग्रेस के ये उच्च शिक्षित नेता गोत्र और जाति का अंतर ही नहीं जानते है । ऐसा ज्ञान पहले भी संसद में कांग्रेस के युवा नेताओ द्वारा दिया गया है । पिछली लोकसभा में एफ डी आई को लेकर बहस चल रही थी तब हरियाणा के ही मुख्यमंत्री भूपिंदर हुड्डा के अमेरिका शिक्षित पुत्र किसान नेता दीपेंदर हुड्डा ने कहा एफ डी आई आने पर हम ढाई फुट का आलू उगायेंगे , तभी नेता प्रतिपक्ष सुषमा स्वराज जी ने हँसते हुए कहा कि हे किसान पुत्र आज तक आयरलैंड से लेकर अमेरिका तक ढाई फुट का आलू नहीं उगा पाएँ है ,आप कहाँ से उगाओगे , तब बोलती बंद हो गयी थी उनकी । ठीक इसी तरह 1988 में राज्यसभा में देश में चीनी की कमी को लेकर चर्चा चल रही थी , चर्चा में भाग लेते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गाँधीजी ने कहा कि देश में चीनी की कमी इसलिए हो गयी है क्योंकि भारत के किसान चीनी गाय को खिला देते है , तभी अटलजी खड़े हुए और कहा प्रधानमंत्रीजी भारत की गायें तो चीनी नहीं खाती लेकिन इटली की गायें खाती हो तो पता नहीं । कहने का आशय यह है कि परिवार की विरासत से सीधे संसद में उतरने वाले इन माननीयों की अपरिपक्वता का घातक परिणाम देश को भुगतना पड़ता है ।
वर्तमान राजनीती के यह कदम पुनः हिन्दू विभाजन की नीव रखने का प्रयास है क्योंकि वर्तमान विपक्ष सत्ता के बगैर रह नहीं सकता , इसीलिए वह वर्तमान वैचारिक सत्ता के प्रति असहिष्णु हो गया है ।