November 16, 2024

सुप्रीम कोर्ट ने ख़ारिज की निलंबित अपर जिला न्यायाधीश आर.के.श्रीवास की अवमानना याचिका, निलंबित न्यायाधीश स्वयं जाएंगे सुप्रीम कोर्ट

रतलाम,10 अक्टूबर (इ खबरटुडे)। म.प्र.उच्च न्यायालय के पूर्व विशेष कर्तव्यस्थ अधिकारी एवं निलंबित अपर जिला न्यायाधीश आर.के.श्रीवास नीमच द्वारा  हाई कोर्ट के खिलाफ लगाई गई अवमानना याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने संज्ञान लेने से/कार्यवाही करने से इस आधार पर ख़ारिज  कर दिया है कि याचिका व्यक्तिगत रुप से/अधिवक्ता के माध्यम से प्रस्तुत नहीं की गई। श्रीवास ने बताया कि वे अब स्वयं व्यक्तिगत रूप से उच्चतम न्यायलय में उपस्थित होकर याचिका प्रस्तुत करेंगे। 

गौरतलब है कि एक साहसिक कदम उठाते हुए श्रीवास ने न्यायाधीशों को वार्षिक गोपनीय चरित्रावली की प्रतिलिपि प्रदान/संसूचित किये जाने  एवं म.प्र.उच्च न्यायालय द्वारा न्यायाधीशांे की नियुक्ति एवं वरिष्ठता में 40 बिंदु रोस्टर प्रणाली पर  माननीय सुप्रीम कोर्ट के द्वारा पारित निर्णयों का उल्लंघन करने के कारण अवमानना याचिका स्पीड पोस्ट से दायर की गई थी।
निलंबित अपर जिला न्यायाधीश आर.के.श्रीवास ने बताया कि म.प्र.उच्च न्यायालय के कतिपय अधिकारियों द्वारा उन्हें नीतिगत बातों का समर्थन करने के लिए अनावश्यक रूप से परेशान किया जा रहा है, ऐसी परिस्थितियों में माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा तकनीकी आधार पर अवमानना याचिका पर कार्यवाही करने से इंकार करना, तथा स्वयं के आदेशों की अवमानना पर बताये जाने के बावजूद संज्ञान न लेना वर्तमान सामाजिक परिवेश में न्याय व्यवस्था पर करारा झटका है। वर्तमान आधुनिक संचार क्रांति के युग में आनलाईन पत्र व याचिकाऐं स्वीकार की जा रही है, तथा याचिका स्पीड पोस्ट से याचिका दायर करना भी इसी का एक प्रकार है। इस देश में न्याय की सर्वोच्च ईकाई जो सरकार व जनप्रतिनिधियों के कार्यो पर (व्यापम घोटाला, आदर्श सोसायटी घोटाला, कोयला घोटाला, बोफोर्स घोटाला, तथा अन्य कई प्रकार के घोटालें ) स्वमेव संज्ञान लेकर नित्य नये-नये दिशानिर्देश जारी करती है, वही म.प्र. न्यायपालिका में कतिपय लोगों द्वारा धड़ल्ले से की जा रही अवैधताओं एवं अनियमितताओं पर मौन एवं विवक्षित सहमति प्रदान की जा रही है। इस देश में माननीय उच्चतम न्यायालय एक आतंकी की फांसी को रोकने के लिए आधी रात को 03.30 बजे सुनवाई कर सकती है, किन्तु एक न्यायाधीश जो कि शांति पूर्वक अपनी समस्याओं को प्रकट कर रहा है व लिखित में कई बार अभ्यावेदन माननीय उच्चतम न्यायालय को प्रेषित कर चुका है, उस पर कोई ध्यान नहीं दिया जाना न्याय की उपेक्षा व हत्या करने के समान है। वैसे भी स्वयं माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा कहा गया है कि अधिक लोक महत्व के मामले में न्यायालय इस बात पर बल नहीं देगा कि प्रक्रिया विधि की सभी तकनीकी अपेक्षाऐं पूरी की जावे, जिन बिंदुओं के संबंध में अवमानना याचिका प्रस्तुत की गई है, उसमें मध्यप्रदेश के अधिनस्थ न्यायालय के समस्त न्यायाधीशों के हितों पर कुठाराघात किया जाकर मनमानंे रुप से कार्य किया जा रहा है, किन्तु भय के कारण कहने का साहस नहीं कर पा रहे है। यह भी उल्लेखनीय है कि उक्त याचिका प्रस्तुत करने के बाद माननीय मुख्य न्यायधिपति महोदय म.प्र. उच्च न्यायालय द्वारा स्वप्रेरणा से पुनर्विलोकन याचिका दिनांक 26.09.2017 को स्वीकार कर तीव्र गति से 40 बिंदु रोस्टर के संबंध में तथा वार्षिक गोपनीय चरित्रावली की प्रतिलिपि प्रदान करने के संबंध में कार्यवाही प्रारंभ की गई है।
हमारे देश में वरिष्ठ अधिवक्ता एक आतंकी के लिए न्याय की गुहार लगा सकते है, तथा आतंकियों एव हत्यारों की बातों को प्राथमिकता के आधार पर सुना जाकर उसका समुचित रुप से निराकरण भी किया जाता है, किंतु न्यायापालिका में नयायाधीशों के साथ हो रहे अन्याय व अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाने वाले को साशय प्रताडि़त किया जा रहा है। माननीय सुप्रीम कोर्ट स्वयं के आदेश की अवहेलना करने वाले म.प्र.उच्च न्यायालय के कतिपय अधिकारियों को संरक्षण प्रदान कर माननीय सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस श्री पी.एन.भगवती की लोक न्याय की संकल्पना को धूमिल कर रही है। जहां राजनेताआंे के विरूद्ध अखबार में प्रकाशन के आधार पर संज्ञान ले लिया जाता है, तथा मौलिक अधिकारों का हनन होने पर एक पोस्टकार्ड को याचिका मानकर न्याय प्रदान करने की स्वस्थ परम्परा का निर्वाह किया जा रहा है, वहीं एक न्यायाधीश द्वारा विहित प्रारूप एवं आवश्यक प्रतिपूर्तियांे के साथ प्रेषित अवमानना याचिका को याचिकाकर्ता द्वारा व्यक्तिगत द्वारा रुप से उपस्थित होकर पेश न करने के आधार पर कार्यवाही न किया जाना, जबकि मामला स्वयं माननीय उच्चतम न्यायालय के आदेशों का अवमानना का हो ऐसी स्थिति में यदि किसी व्यक्ति द्वारा माननीय उच्चतम न्यायालय के आदेशों के संबंध में अवमानना बाबत अवगत कराये जाने पर रुल्स टू रेग्यूलेट प्रोसिडिंग्स फार कन्टंेम्प्ट आँफ द सुप्रीम कोर्ट 1975 के भाग 2 नियम 3(ंए) के तहत स्वप्रेरणा के आधार पर भी संज्ञान लेने में सक्षम है। श्रीवास ने यह भी बताया कि वे माननीय सुप्रीम कोर्ट के रजिस्ट्रार महोदय के आदेश का अक्षरशः पालन करते हुए दीपावली अवकाश के उपरांत स्वयं व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होकर अवमानना याचिका माननीय उच्चतम न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करेंगे।

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