November 15, 2024

सीमान्त ईलाकों में नेपाल से भी कमजोर है भारत की संचार व्यवस्था

कुमाऊं  के सीमान्त इलाकों में भारतीय लोग चलाते है नेपाली सिम

रतलाम,16 सितम्बर (इ खबरटुडे)। केन्द्र सरकार भले ही डीजीटल इण्डिया की लाख बातें करें सीमान्त इलाकों में भारत की संचार सुविधाएं नेपाल से भी कमजोर है। उत्तराखण्ड के कुमाऊं क्षेत्र में नेपाल से सटे सीमान्त ईलाकों में भारतीय लोग धड़ल्ले से नेपाली सिम का उपयोग करते हैं.क्योकि बीएसएनल का यहां अब तक कोई अस्तित्व ही नहीं है।
कुमांऊ  के रास्तों से कैलाश मानसरोवर की यात्रा कर लौटे पत्रकार आशुतोष नवाल ने बताया कि सीमान्त ईलाकों में पंहुचने के बाद उन्हे पता चला कि पूरे देश में नेटवर्क होने का दावा करने वाले बीएसएनल के दावे कितने खोखले है। कैलाश मानसरोवर यात्रा मार्ग उत्तराखण्ड के कुमाऊं  क्षेत्र से होकर गुजरता है। यह यात्रा नई दिल्ली से प्रारंभ होकर काठगोदाम,अल्मोडा होते हुए धारचूला पंहुचती है। धारचूला को इस क्षेत्र की यात्रा का बेस केम्प बनाया गया है। पूरे यात्रा मार्ग में धारचूला भारतीय सीमा में अंतिम बडा कस्बा है,जहां फोन और मोबाइल सुविधाएं उपलब्ध है। धारचूला में नगर पालिका परिषद कार्यरत है। धारचूला नेपाल सीमा से सटा हुआ कस्बा है। काली नदी भारत और नेपाल को अलग करती है। नदी पर बने पुल की दूसरी और नेपाल का दारचूला कस्बा है। असल में इन्हे जुडवां शहर कहा जा सकता है।
धारचूला से आगे की यात्रा प्रारंभ होते ही भारतीय व्यवस्थाओं और बीएसएनएल की हकीकत यात्रियों के सामने आ जाती है। यहां से बुदी और गुंजी होते हुए यात्री नाबीडांग पंहुचते है,जहां से मात्र ९ किमी आगे लिपूलेख दर्रा पार करते ही चीनी क्षेत्र प्रारंभ हो जाता है। धारचूला से आगे मात्र करीब पचास किमी की सड़क बन पाई है। उससे आगे का तमाम इलाका सड़क सम्पर्क से अछूता है। इस क्षेत्र के सैकडों गांवों के हजारों लोग आज भी पैदल ही यात्रा करने के लिए अभिशप्त है। इतना ही नहीं इन इलाकों में अब तक संचार सुविधाएं भी उपलब्ध नहीं करवाई गई है। धारचूला से आगे के कुछ गांवों में सैटेलाइट फोन उपलब्ध कराए गए हैं,जो सीमित समय तक काम करते है। मोबाइल का नेटवर्क अब तक इन इलाकों में नहीं पंहुचा है।
ये पूरा इलाका नेपाल से सटा हुआ है। काली नदी नेेपाल और भारत के बीच की सीमारेखा का काम करती है। भारत की तुलना में नन्हा सा देश नेपाल संचार सुविधाओं के मामले में भारत से काफी आगे है। भारत से सटे इस पूरे नेपाली क्षेत्र में नेपाल का मोबाइल नेटवर्क अच्छे से काम करता है। इन सीमान्त गांवों में रहने वाले भारतीय नागरिकों को मजबूरी में नेपाली मोबाइल नेटवर्क से काम चलाना पडता है। अधिकांश लोग नेपाली सिम का उपयोग करते है। परिणाम यह है कि दूरसंचार से जो आय भारत को हो सकती है,वह नेपाल को हो रही है।
सीमान्त इलाकों की सुविधाओं के मामले में भारत की स्थिति बेहद दयनीय है। पडोस के देश चीन ने अपनी सीमा के तमाम क्षेत्रों को सड़कों से जोड लिया है। किसी भी आपातकालीन स्थिति में उनकी सेनाएं पलक झपकते ही सीमा के अंतिम छोर पर आकर खडी हो सकती है,लेकिन भारतीय सीमा के भीतर सैकडों किमी का यह इलाका अब तक सड़कों से नहीं जुड पाया है। भारत के लोग अपनी श्रध्दा के बलबूते कठिन पहाडी रास्तों पर पैदल चलते हुए चीनी सीमा तक पंहुचते है। लेकिन जैसे ही वे चीनी सीमा में प्रवेश करते है,उन्हे दोनो देशों की व्यवस्थाओं का अंतर साफ दिखाई देने लगता है। चीनी सीमा में लिपूलेख दर्रे से उतरते ही बेहतरीन सड़कें नजर आने लगती है और चीन की बसें पहाडी के उपर तक यात्रियों को लेने पंहुच जाती है।
क्षेत्र के नागरिकों का कहना है कि भारत सरकार को तत्काल पहल कर इस क्षेत्र में दूरसंचार सुविधाएं उपलब्ध कराना चाहिए। इससे जहां इस दुर्गम क्षेत्र के निवासियों को लाभ मिलेगा,वहीं यह देश की सुरक्षा की दृष्टि से भी लाभप्रद रहेगा। साथ ही जो राशि नेपाली दूरसंचार कंपनियों को मिल रही है,वह भारतीय कंपनियों को मिल सकेगी।

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