सरसी में लोकसन्तश्री की निश्रा में धूमधाम से हुई श्री कुंथुनाथ जिनालय की प्रतिष्ठा
रतलाम 19 नवम्बर (इ खबरटुडे)। सरसी में शनिवार सुबह शुभ मुहूर्त में बैण्डबाजों, ढोल और शहनाई की गूंज के बीच हजारों पुण्यशालियों की उपस्थिति में लोकसन्त, आचार्य, गच्छाधिपति श्रीमद् विजय जयन्तसेन सूरीश्वरजी म.सा. की निश्रा में श्री कुंथुनाथ जिनालय की प्राण प्रतिष्ठा की गई। जिनालय में श्री कुंथुनाथ परमात्मा के साथ गणधर गौतमस्वामी एवं श्री राजेन्द्र सूरि बिम्ब की प्रतिष्ठा हुई । लोकसन्तश्री ने इस मौके पर कहा कि प्रभु प्रतिष्ठा ने सरसी की प्रतिष्ठा को बढ़ाया है । पिछले 30 वर्षों की प्यास को बुझाने वाली यह प्रतिष्ठा सभी को सुख-शांति एवं प्रसन्नता प्रदान करने वाली होगी।
लोकसन्तश्री ने प्रतिष्ठा पश्चात आशीर्वचन में कहा कि वर्षा होते ही किसान का श्रम, परिणाम आते ही विद्यार्थी का श्रम और स्वस्थ होते ही डॉक्टर का श्रम सार्थक होता है, ऐसे ही परमात्मा की प्रतिष्ठा होते ही हमारे हृदय के भाव का श्रम सार्थक हो जाता है। वर्षों की कामना पूर्णता से परिणमित हो जाती है। साथ ही पानी से जैसे प्यास और भोजन से भूख मिटती है, वैसे ही प्रभु प्रतिष्ठा के साथ अन्तर्मन की अभिलाषारुपी प्यास मिट जाती है। प्रभु के प्रति हमारी निष्ठा ही प्रतिष्ठा के रुप में हमारी भावनाओं को फल देती है। इस प्रतिष्ठा महोत्सव से सरसी गौरवशाली क्षेत्र बन गया है। ग्राम की कीर्ति दूर-दूर तक फैलेगी।
धर्मसभा को आलोट विधायक जितेन्द्र गेहलोत, जावरा नपा अध्यक्ष अनिल दसेडा ने भी संबोधित किया। लोकसन्तश्री को काम्बली ओढ़ाने का लाभ डांगी परिवार ने लिया । प्रारम्भ में सरसी जैन श्रीसंघ द्वारा प्रतिष्ठा महोत्सव में आए सभी अतिथियों का स्वागत किया गया। श्रीसंघ द्वारा नगर चौरासी का आयोजन भी किया गया।
सरसी की भक्ति में दम – मुनिराजश्री
मुनिराजश्री निपुणरत्न विजयजी म.सा. ने कहा कि सरसी गांव दिखने में बहुत छोटा है, लेकिन प्रतिष्ठा करके श्रीसंघ ने यह साबित कर दिया है कि वह दिखने में भले ही कम है, लेकिन उसकी भक्ति में बड़ा दम है । इसी कारण इतना बड़ा कार्य करने में सब सफल हुए हैं। गुरुकृपा से बड़े से बड़े कार्य सहज हो जाते हैं । उन्होंने कहा कि किसी वस्तु या व्यक्ति का कद और रंग देखकर उसका, शक्ति का मापदण्ड नहीं हो सकता । माप और मूल्यांकन में बहुत अन्तर होता है। भगवान नेमिनाथ, कृष्ण, अनुपमादेवी का वर्ण काला था, फिर भी वे गुणवान थे। कस्तुरी भी काली होती है, लेकिन बहुत कीमती होती है। यही बात ग्राम सरसी पर भी लागू हो रही है।