सरदार पटेल भारत के प्रधानमंत्री होते तो…?
-डॉ.डीएन पचौरी
यह विवाद का विषय हो सकता है कि भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पटेल होते तो क्या नेहरु जी से अधिक सफल प्रधानमंत्री सिध्द होते? यह बात तो सर्वविदित है कि कांग्रेस दल का बहुमत यहां तक कि 16 स्टेट के प्रतिनिधियों में से 13 सरदार पटेल को इस देश का प्रधानमंत्री देखना चाहते थे,किन्तु गांधी जी की आज्ञा को शिरोधार्य करके पटेल ने यह पद नेहरु जी को सौंप दिया और गांधी जी को विश्वास दिलाया कि वो कभी पंडित नेहरु के मार्ग में नहीं आएंगे। डॉ.राजेन्द्र प्रसाद,उद्योगपति जमशेद जी टाटा,तथा समय समय पर कई इतिहासकार अपने विचार व्यक्त कर चुके है,कि यदि नेहरु जी की जगह पटेल इस देश की सत्ता संभालते तो अधिक सफल व अच्छे प्रधानमंत्री सिध्द होते तथा इस देश की हालत बेहतर होती। तत्कालीन वायसराय लार्ड वावेल,लार्ड क्रिप्स,माउण्टबेटन आदि ब्रिटिशर्स भी पटेल की बुध्दिमत्ता और नेतृत्व क्षमता के प्रशंसक थे। जो भी हो,किंतु कुछ तथ्य निर्विवाद है,और इनके परिवेश में इस प्रश्न का उत्तर ढूंढा जा सकता है कि दोनो में से कौन श्रेष्ठ प्रधानमंत्री कौन होता?
पहली बात तो यह कि सरदार पटेल जमीन से जुडे नेता थे। उनका जन्म डॉ.राजेन्द्र प्रसाद,लालबहादुर शाी,जगजीवनराम आदि की तरह गांव में हुआ था। जैसा कि गांधी जी का कथन था कि भारत की आत्मा गांवों में बसती है। अत: पटेल ने भारत की आत्मा का अनुभव किया था। उन्होने गरीबी,अशिक्षा,भूखमरी,बेरोजगारी,बीमारी आदि को करीब से देखा था,जिसे नेहरु जी ने कभी अनुभव नहीं किया था। क्योकि नेहरु जी बोर्न विद सिल्वर स्पून अर्थात धनाड्य परिवार में जन्मे थे। प्रारंभिक शिक्षा दीक्षा घर पर रहकर हुई और पन्द्रह साल की आयु में इग्लैण्ड में हैरो स्कूल में पढने चले गए और ला ग्रेजुएट होकर भारत लौटे। उनकी आंखों पर उम्र भर अंग्रेजी सभ्यता और संस्कृति का चश्मा चढा रहा। उन्होने स्वयं स्वीकार किया कि मै विचारों से अन्तर्राष्ट्रिय एवं शिक्षा से यूरोपियन हूं। स्पष्ट है कि पटेल इस देश के लिए बेहतर प्रधानमंत्री सिध्द होते।
दूसरे अक्टूबर 1947 में कबाइलियो और अन्य घुसपैठियों के कश्मीर में घुसने के बाद जब तक भारतीय सेना कश्मीर से हर हमलावर को बाहर नहीं खदेड देती,तब तक पटेल पाकिस्तान के साथ युध्द विराम के लिए किसी तरह राजी नहीं होते और पाक अधिकृत कश्मीर जैसी कोई चीज नहीं होती। इस विवाद पर संयुक्त राष्ट्र संघ का वह प्रस्ताव भी नहीं होता,जिसमें विवादित राज्य में जनमत संग्रह कराने की बात कही गई है। न धारा 370 होती,जिसके पीछे डॉ,श्यामाप्रसाद मुकर्जी 1953 में कश्मीर में यह कहते हुए शहीद हो गए कि एक देश में दो विधान,दो निशान और दो प्रधान नहीं चलेंगे। आज भारत का कोई नागरिक जम्मू कश्मीर में न जमीन खरीद सकता है,और न स्थायी रुप से वहां रह सकता है। पटेल प्रधानमंत्री होते तो ये सब झंझट नहीं होते और कश्मीर भारत का वास्तविक अविभाज्य अंग होता,जैसे अन्य प्रदेश है।
इसी प्रकार जब 1949 में चीन ने तिब्बत पर आक्रमण किया तो सरदार पटेल इस हमले का जवाब देने के लिए भारतीय सेना को भेजने का प्रस्ताव रखा,जिसे नेहरु जी ने ठुकरा दिया। क्योकि उन्हे अपनी विदेश नीति में किसी प्रकार का हस्तक्षेप पसंद नहीं था। वो इसे अपनी जागीर समझते थे। नतीजा ये निकला कि चीन भारत के और अधिक नजदीक आ पंहुचा। यदि उस समय चीन को करारा जवाब मिलता तो 1962 में चीनी आक्रमण का दर्द नहीं झेलना पडता। नेहरु जी ने स्वयं स्वीकार किया कि चीन ने विश्वासघात कर उनकी पीठ में छूरा घोंपा है। वो इस दर्द को सहन नहीं कर पाए और चीनी आक्रमण के 18 माह बाद ही इस दुनिया को अलविदा कह दिया।
गृहमंत्री और उप प्रधानमंत्री के रुप में सरदार पटेल ने विभिन्न रियासतों,रजवाडो को एकता के सूत्र में बांधकर भारत संघ में शामिल किया। उसकी जितनी तारीफ की जाए कम है। ये काम ऐसा ही था,जैसा जर्मनी में बिस्मार्क ने किया था। उनकी उपलब्धि विशेष रुप से इसलिए भी उल्लेखनीय है कि उन्होने हैदराबाद को भारत संघ में मिलाया। हैदराबाद का निजाम उस्मान अलीखान पाकिस्तान में शामिल होना चाहता था। लार्ड माउण्टबेटन के समझाने के बाद भी वह भारत संघ में शामिल होनेको राजी नहीं हुआ तो पटेल ने सेना भेजने की कोशिश की,जिसका नेहरु जी ने विरोध किया। उनका तर्क था कि इससे मस्लिम समुदाय में रोष उत्पन्न होगा,तथा जो हिन्दू मुस्लिम दंगे बंद हो चुके है,वे फिर भडक उठेंगे। हैदराबाद रियासत में आन्ध्रप्रदेश,कर्नाटक तथा महाराष्ट्र के भी कुछ भाग आते थे। अत: पटेल को लगा कि हैदराबाद का भारत में विलय आवश्यक है तथा पंजाब और पूर्वी बंगाल के बाद तीसरा पाकिस्तान नहीं बनने देना है। अत: जब नेहरु जी यूरोप की यात्रा पर गए तो सरदार पटेल ने भारतीय फौज की मदद से हैदराबाद पर अधिकार कर भारत संघ में मिला लिया। नेहरु जी की अनुपस्थिति में कार्यवाहन प्रधानमंत्री के रुप में पटेल ने जूनागढ और लक्षद्वीप पर अधिकार कर भारत में विलय कराया अन्यथा वहां भी पाकिस्तान का अधिकार होता।
सरदार पटेल ने 1950 में ही गोवा को पुर्तगालियों से मुक्त कराने की बात कही जिसे नेहरु जी ने नहीं माना और 1961 में गोवा पुर्तगालियों से मुक्त हुआ। पटेल की बात मान ली जाती तो गोवा 11 वर्ष पूर्व ही मुक्त होकर भारत का अंग बन जाता।
यदि सरदार पटेल भारत के प्रथम प्रधानमंत्री होते तो भारत एक शक्तिशाली राष्ट्र के रुप में विश्व के मानचित्र पर उभरता। प्रकृति का नियम है कि शक्ति का लोहा प्राणीमात्र मानता है। छोटे से राष्ट्र इजराईल का उदाहरण सामने है,जिसकी दबंगई के सामने अच्छे अच्छे राष्ट्र नतमस्तक है और इजराईल को अमेरिका जैसे बलशाली राष्ट्र का समर्थन प्राप्त है। पटेल सर्वप्रथण इजराइल को मान्यता देना चाहते थे व भारत को उसके जैसा राष्ट्र बनाना चाहते थे।
यदि पटेल जूनागढ को नवाब से मुक्त कराकर भारत संघ में शामिल न करते तो सबसे बडी हानि यह होती कि सोमनाथ का मन्दिर जो हिन्दूओं का एक बडा आराध्य स्थल हाथ से निकल जाता। सरदार पटेल की दूरदर्शिता एवं सूझबुझ का ही नतीजा है कि सोमनाथ का मन्दिर गुजरात राज्य को मिला। बाद में इसका जीर्णोध्दार हुआ और सुसज्जित मन्दिर का उद्घाटन तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ.राजेन्द्र प्रसाद ने किया।