लोकसभा चुनाव 2019: यूपी में खिलता है कमल, जब पश्चिम से पूरब की ओर चलती है चुनावी बयार
नई दिल्ली,11 मार्च(इ खबर टुडे)। चरण में क्या रखा है? उत्तर प्रदेश जैसे बड़े और विविधताओं से भरे राज्य में कई चरणों में होने वाला चुनाव बहुत अधिक मायने रखता है. उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों के लिए सात चरणों में चुनाव होंगे, जो पश्चिमी यूपी से शुरू होकर पूर्वी यूपी में अंत होगा. राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की सीमा से लगे निर्वाचन क्षेत्रों में सबसे पहले वोट डाले जाएंगे, वहीं बिहार की सीमा से लगे निर्वाचन क्षेत्रों में मई के मध्य में अंतिम चरण में वोट डाले जाएंगे.
पिछले 15 सालों के चुनावी नतीजों पर नजर डालने से ये बात निकलकर आती है कि लोकसभा और विधानसभा चुनाव के परिणाम (अन्य कारकों के साथ) इस पर भी निर्भर करते हैं कि राज्य में वोट पश्चिम से पूर्व की तरफ डाले जाते हैं या इसके विपरीत.
2014 के आम चुनाव के दौरान चुनाव प्रबंधन से जुड़े बीजेपी के एक पदाधिकारी पूरी तरह से अलर्ट मोड में थे. उन्होंने उस वक्त राहत की सांस ली जब आयोग ने पश्चिमी जिलों में मतदान की शुरुआत के साथ सात चरणों में चुनाव की घोषणा की.
पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान मतदान पश्चिम से पूर्व की ओर हुआ. वाराणसी (नरेंद्र मोदी) और आजमगढ़ (मुलायम सिंह यादव) में दो बड़ी दांव वाली सीटों के साथ पूर्वांचल क्षेत्र में इसका समापन हुआ.
पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान मतदान पश्चिम से पूर्व की ओर हुआ. वाराणसी (नरेंद्र मोदी) और आजमगढ़ (मुलायम सिंह यादव) में दो बड़ी दांव वाली सीटों के साथ पूर्वांचल क्षेत्र में इसका समापन हुआ.
बीजेपी के पदाधिकारी ने कहा, ‘अनेक चरणों वाले चुनाव में किसी पार्टी के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वह पहले होने वाले कुछ चरणों में अच्छा प्रदर्शन करे.’ उन्होंने आगे कहा, ‘दंगों के बाद पश्चिमी यूपी हमारा गढ़ था. यहां के अच्छे प्रदर्शन ने हमें उन क्षेत्रों में अपने विरोधियों को पछाड़ने के लिए हर गुजरते दौर के साथ गति प्रदान करने में मदद की, जहां हम पारंपरिक रूप से कमजोर रहे हैं.’
2017 यूपी विधानसभा चुनावों की तारीखों के ऐलान ने भी बीजेपी को उस वक्त खुश कर दिया जब चुनाव आयोग ने कहा कि चुनाव सात चरणों में होंगे और इसकी शुरुआत दिल्ली की सीमा से लगे गाजियाबाद से होगी. अंतिम चरण में चंदौली में वोट डाले गए थे जो राज्य के सुदूर पूर्वी छोर पर स्थित है.
2012 के विधानसभा चुनाव में ठीक इसके विपरीत हुआ था. यूपी में बहु-पक्षीय मुकाबला था और चुनाव कई चरणों में हुए. लेकिन इस बार चुनाव पूर्व से पश्चिम की ओर हुए. पूर्व में क्षेत्रीय पार्टियां परंपरागत रूप से अच्छा प्रदर्शन करती रही हैं.
उस चुनाव में सपा ने अच्छा प्रदर्शन किया था. मुलायम सिंह यादव ने पश्चिमी क्षेत्र में भी सीटें जीतने में कामयाबी हासिल की, जहां सपा का कोई आधार नहीं था अथवा बहुत कम था. कल्याण सिंह के साथ थोड़े समय के लिए ही सही, हाथ मिलाने से नाराज मुस्लिमों ने पहले चरण में कांग्रेस को वोट दिया था.
उदाहरण के लिए पार्टी ने कई साल बाद गोरखपुर के निकट महाराजगंज सीट पर जीत दर्ज की. यह सिलसिला तब तक जारी रहा जब तक कांग्रेस राज्य की लगभग दो दर्जन सीटें नहीं जीत गई. आने वाले चुनाव में भी इसी तरह पहले कुछ चरण अल्पसंख्यक वोटों के रुझान को निर्धारित करने में महत्वपूर्ण हो सकते हैं.
बसपा ने इस बार अपना पूरा दांव दलित-मुस्लिम गठजोड़ पर खेला. उदाहरण के लिए उत्तराखंड से सटे पश्चिमी उत्तर प्रदेश का आठ सीटों वाला बिजनौर जिला, आठ सीटों में से दो आरक्षित हैं अन्य सभी छह सीटों पर बीएसपी ने मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारा. अल्पसंख्यकों को टिकट देने में सपा भी पीछे नहीं रही. सपा ने पांच अल्पसंख्यकों को टिकट दिया.
इस बार लोकसभा चुनाव पश्चिम से पूर्व की ओर हो रहे हैं, इसलिए बिजनौर, सहारनपुर और रोहिलखंड जैसी जगहों पर मुस्लिमों को वोटिंग पैर्टन ट्रैंड सेट कर सकता है. और एक बार चुनाव शुरू हो गया तो फिर इसकी गति को रोकना मुश्किल है.
बीजेपी पश्चिम से पूर्व की तरफ होने वाली वोटिंग को पसंद करती है. पूर्व से पश्चिम की वोटिंग समाजवादी पार्टी को अपने अनुकूल लगती है. बीएसपी का वोट बैंक काफी फैला हुआ है, इसलिए पार्टी का प्रदर्शन आमतौर पर समान रहता है. लेकिन हर चुनाव अपने आप में अलग होता है. 2019 का चुनाव 2014 से इस मामले में अलग है, क्योंकि बीजेपी को इस बार ज्यादा मजबूत विपक्ष का सामना करना है. पार्टी केंद्र और राज्य दोनों जगह सत्ता में है और इसे मोदी सरकार के पांच साल और योगी सरकार के दो सालों के कार्यकाल का बचाव करना है.