November 15, 2024

लोकसन्त के दर्शनार्थ जापान से आया गुरुभक्तों का दल

सस्वर किया मंत्राधिराज नवकार का पाठ

रतलाम 21 सितम्बर(इ खबरटुडे)। जैनाचार्य, लोकसन्त श्रीमद् विजय जयन्तसेन सूरीश्वरजी म.सा. के भक्त पूरी दुनिया में बसे है। बुधवार को जापान से दर्शन-वन्दन करने 25 सदस्यीय जापानी गुरुभक्तों का दल जयन्तसेन धाम पहुंचा। आचार्यश्री से आशीर्वाद लेने के बाद दल के सदस्यों ने सस्वर मंत्राधिराज नवकार का पाठ कर जयन्तसेन धाम का अवलोकन किया। वीरेन्द्र भण्डारी (जोधपुर) के नेतृत्व में आए दल का स्वागत चातुर्मास आयोजक व राज्य योजना आयोग उपाध्यक्ष, विधायक चेतन्य काश्यप परिवार की ओर से श्रवण काश्यप ने किया। इससे पूर्व अगस्त माह में भी जापान से गुरुभक्तों का दल रतलाम आया था।

पर्युषण पश्चात आचार्यश्री से क्षमायाचना करने कई भक्त रतलाम आ रहे हैं।
बुधवार को अलीराजपुर व झालोद (गुजरात) से संघ आया। चातुर्मास आयोजक परिवार की ओर से पारसमल खेडावाला, अभय सकलेचा तथा हस्तीमल भंसाली ने अलीराजपुर के संघपति जवाहरलाल काकड़ीवाला का बहुमान किया। झालोद संघ के अनोखीलाल बम का बहुमान सुनील आंचलिया, मुकेश ओरा ने किया। अलीराजपुर के बाबूलाल प्यारचंद जैन ने श्रीमती तेजकुंवरबाई काश्यप व श्रवण काश्यप का बहुमान किया। दादा गुरुदेव की आरती का लाभ भंवरलाल बाबूलाल कटारिया (बैंगलोर) ने लिया।

युवाओं को दिया सेवा का संदेश –
जैनाचार्य, लोकसन्त श्रीमद् विजय जयन्तसेन सूरीश्वरजी म.सा. ने जयन्तसेन धाम में परिषद् परिवार रतलाम के सदस्यों को संबोधित करते हुए कहा कि प्रत्येक व्यक्ति को जब भी सेवा का सुअवसर प्राप्त हो, तब तत्पर रहना चाहिए। शुभ भावों से की गई सेवा निष्फल नहीं जाती। सेवा भाव का हृदय से जुड़ाव होना चाहिए, मात्र दिखाने के लिए सेवा करने से कोई लाभ नहीं होता। ये सभी पुण्य से ही मिलने वाले संयोग है जो चाहते हुए भी नहीं मिलते। उन्होंने कहा कि परिषद् का लक्ष्य ही सेवा है। अ.भा. श्री राजेन्द्र जैन नवयुवक, तरुण, महिला, परिषद् के 24-25 सितम्बर को आयोजित राष्ट्रीय अधिवेशन में अनेक शाखाओं के सदस्य यहां पहुंच रहे हैं जिनकी सेवा-स्वागत करना रतलाम परिषद् के सभी सदस्यों का कत्र्तव्य है।

धर्म ही रक्षक है: मुनिश्री निपुणरत्न विजयजी
मुनिराजश्री निपुणरत्न विजयजी म.सा. ने कहा कि धर्म श्रवण बिना तत्वज्ञान प्राप्त नहीं होता। बिना तत्वज्ञान के व्यक्ति परिस्थितियां अनुकूल होने पर सुख एवं प्रतिकूल होने पर दु:ख का अनुभव करता है। अज्ञानतावश संसार में अनेक बार ऐसी दु:खमय दरिद्रता को प्राप्त किया है। माता-पिता-भाई-पुर्त-पत्नी अनेक सम्बन्ध होने पर भी दु:खमय स्थिति में सच्चा रक्षक धर्म ही बनता है, अन्य कोई उसकी रक्षा करने में समर्थ नहीं है। धर्म की शक्ति, सामथ्र्य एवं विश्वसनीयता अजोड़ होती है।

उत्तराध्ययन सूत्र का वाचन करते हुए मुनिश्री ने कहा कि व्यक्ति को ऐसे दु:खमय बंधनों को त्यागकर संयम जीवन का अनुसरण करना चाहिए। इस आराधना का बल इस लोक एवं परलोक में भी हमारी आत्मा की रक्षा करता है। गलत रास्ते पर आगे बढऩे वाला जितना आगे बढ़ता है। उतना ही वापस मुडऩे का रास्ता लम्बा हो जाता है। जैसे रेत में से मलाई नहीं निकलती है वैसे ही आत्मिक सु:ख भी पदार्थों में से नहीं मिल सकता। मुनिश्री ने कहा कि धर्मश्रवण से 4 लाभ होते है। 1 संशय टल जाता है 2. श्रद्धा निर्मल बनती है। 3. चित्त तत्वज्ञान से भावित होता है और 4. दुर्मति दूर हो जाती है।

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