राष्ट्रसन्तश्री की प्रेरणा से तपोमय हुआ जयन्तसेन धाम
काश्यप परिवार ने किया तपस्वियों का बहुमान
रतलाम 6 सितम्बर (इ खबरटुडे)।राष्ट्रसन्त, वत्र्तमानाचार्य श्रीमद् विजय जयन्तसेन सूरीश्वरजी म.सा. की प्रेरणा से मंगलवार को जयन्तसेन धाम तपोमय हो गया । सामूहिक अठाई करने वाले तपस्वियों ने पारणा कर अपनी तप आराधना पूर्ण की। चातुर्मास आयोजक व राज्य योजना आयोग उपाध्यक्ष चेतन्य काश्यप परिवार ने अेाई करने वाले 216 और सिद्धितप करने वाले 25 तपस्वियों का बहुमान। साधु-साध्वी भगवन्त की भी तप आराधना पूर्ण हो गई । इस मौके पर क्षमापना पर्व भी मनाया गया ।
राष्ट्रसन्तश्री ने तप आराधकों एवं अन्य श्रद्धालुओं को सम्बोधन में कहा कि हमारी आत्मा, राग-द्वेष और विषय-कषाय से कलुषित होकर किसी शरीर का आश्रय लेकर संसार में भटकती रहती है । इसका भव-भ्रमण मिटाने के लिए शास्त्रों में दो उपाय संयम और तप बताए गए हैं। साधु-साध्वीजनों के मन निर्मल होते हैं और हृदय स्वच्छ होता है तो उसका कारण संयम और तप की विशेष साधना ही रहती है । इस साधना से उनकी आत्मा बुराईयों से रहित हो जाती है। मन, वचन और काया के संयम से वे अपने पापों पर जहां अंकुश लगाते हैं, वहीं कर्मों की निर्जरा भी करते हैं । जप-तप और संयम का अनुसरण कर हर व्यक्ति को करना चाहिए। इससे हमारी आत्मा को पवित्र करना चाहिए । रतलाम में सामूहिक अठाई की आराधना भी ऐतिहासिक हुई है । पर्वाधिराज पर्युषण के दौरान यह तप कर कई आत्माओं ने खुद को निर्मल किया है ।
राष्ट्रसन्तश्री की निश्रा में इस अवसर पर सभी तपस्वियों के पारणे हुए । चातुर्मास आयोजक परिवार की ओर से श्रीमती तेजकुंवरबाई काश्यप, चेतन्य काश्यप, नीता काश्यप, सिद्धार्थ काश्यप, पूर्वी काश्यप, श्रवण काश्यप, अमि काश्यप आदि ने तपस्वियों का बहुमान कर पारणा करवाया।
साधु-साध्वी भगवन्त ने की तप-आराधना –
राष्ट्रसन्तश्री की प्रेरणा से रतलाम में चातुर्मास हेतु विराजित साधु-साध्वी भगवन्तों ने भी आराधकों के साथ तप-आराधनाएं पूर्ण की। मुनिराजश्री प्रसिद्धरत्न विजयजी म.सा., श्री प्रत्यक्षरत्न विजयजी म.सा., श्री तारकरत्न विजयजी म.सा., साध्वीश्री राजयशाश्रीजी म.सा. द्वारा वर्धमान तप की ओली, 9 उपवास एवं अेाई की तपस्या पूर्ण की गई।
सर्वत्र गूंजा मिच्छामि दुक्कडम् –
पर्वाधिराज पर्युषण के समापन की बेला में क्षमापना पर्व उत्साह एवं उल्लास से मना। जयन्तसेन धाम सहित सर्वत्र मंगलवार को मिच्छामि दुक्कडम् की गूंज रही। चातुर्मास आयोजक चेतन्य काश्यप एवं परिजनों ने राष्ट्रसन्तश्री एवं अन्य सभी से वर्षभर में जाने-अनजाने में हुए अविनय के लिए क्षमायाचना की । श्रद्धालु एक-दूसरे से मिच्छामि दुक्कडम् कहकर क्षमायाचना करते नजर आए । राष्ट्रसन्तश्री ने कहा पर्युषण का एक नाम क्षमापना पर्व भी है, जिससे सिद्ध होता है कि यह पर्व क्षमा मांगने और क्षमा करने के लिए ही आयोजित होता है । क्षमा मांगना साहस का काम है । अहंकारहीन नम्र व्यक्ति ही क्षमायाचना कर सकता है और क्षमा करना वीरता का कार्य है । सभी तपस्याओं का मूल क्षमा ही है, इसलिए तपस्याओं से कर्मों की जो निर्जरा होती है, वह क्षमा से भी हो जाती है ।